27 Aug 2025, Wed

टी.एच.डी.सी के विनिवेश के विरोध में वाम दलोंं ने फूका बिगुल

देहरादून। टी एच डी सी के विनिवेश के विरोध मेें तीनों वाम दलोंं एक साथ आ गये हैं। वाम दलों ने केन्द्र के  खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजा दिया है। टी एच डी सी के विनिवेश की मोदी सरकार की कोशिशों के खिलाफ कल 13 दिसंबर को तीन वामपंथी पार्टियों- भाकपा,माकपा और भाकपा(माले) ने ऋषिकेश स्थित टी एच डी सी मुख्यालय पर धरना दिया.सपा और बसपा भी इस धरने में शरीक हुए. वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार टी एच डी सी में केंद्र के 75 प्रतिशत शेयर एन टी पी सी को बेचने वाली है. देश भर में सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का जो खेल केंद्र सरकार ने शुरू किया है,यह भी उसी का हिस्सा है. कल ही अँग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में खबर थी कि 100 रेलवे ट्रैक निजी हाथों में देने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है.
टी एच डी सी का गठन टिहरी बांध के निर्माण के लिए हुआ था. वर्तमान में यह मुनाफे में चलने वाला सार्वजनिक उपक्रम है,जिसे मिनी रत्न का दर्जा प्राप्त है. बीते दिनों विधानसभा के सत्र में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि टी एच डी सी को यदि बेचा जाना होता तो केंद्र सरकार,उत्तराखंड सरकार से जरूर पूछती. चूंकि उत्तराखंड सरकार से केंद्र ने इस बारे में कुछ नहीं पूछा है,इसलिए टी एच डी सी के बिकने की बात सही नहीं है. मंत्री जी या तो सदन को गुमराह कर रहे थे या फिर वे स्वयं ही जानकारी के अभाव के शिकार हैं. टी एच डी सी एक सार्वजनिक उपक्रम है,जिसमें केंद्र की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश सरकार की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है. उत्तराखंड सरकार का जब उसमें शेयर ही नहीं है तो उससे पूछना कैसा !
जब उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग हुआ तो परिसंपत्तियों के बँटवारे में हमारे साथ जो छल हुआ,उसका जीता-जागता उदाहरण है-टिहरी बांध और टी एच डी सी. बांध हमारी जमीन पर है,डूबे हमारे शहर और गाँव,विस्थापित हुए यहाँ के लोग,पर टी एच डी सी में राज्य का हिस्सा नहीं है और टिहरी से बनने वाली बिजली में बहुत छोटा अंश उत्तराखंड को मिलता है. उत्तराखंड के साथ हुए इस अन्याय के लिए भाजपा जिम्मेदार है,जिसकी तत्कालीन केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकार ने परिसंपत्तियों का ऐसा बंटवारा किया,जिसमें उत्तराखंड अपनी जमीन पर मौजूद संसाधनों से महरूम हो गया. कॉंग्रेस की भी आंशिक हिस्सेदारी ऐसा करने में है क्यूंकि उत्तर प्रदेश की विधानसभा और देश की संसद में उसने उत्तराखंड के साथ हो रही इस नाइंसाफी के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई.
टी एच डी सी को बचाने की लड़ाई को राज्य में मौजूद संसाधनों पर जनता के अधिकार की लड़ाई के रूप में भी देखा जाना चाहिए.

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