देहरादून। धामी कैबिनेट ने जिला स्तरीय विकास प्राधिकरणों को एक बार फिर क्रियाशील करने का निर्णय लिया है। कैबिनट में निर्णय लिया गया कि जिला स्तरीय विकास प्राधिकरणों के विकास क्षेत्रान्तर्गत मार्ग के मध्य से 50 से 100 मीटर हवाई दूरी तक ही मानचित्र की स्वीकृति अनिवार्य की जायेगी। पहले यह दायरा 200 मीटर था। साथ ही मानचित्र स्वीकृति करने का शुल्क भी घटाकर आधा कर दिया है। सरकार ने इन क्षेत्रों में 250 वर्गमीटर भूमि पर नौ मीटर ऊंचाई तक वाले एक आवासीय भवन या 50 वर्गमीटर जमीन पर छह मीटर ऊंचाई तक के भवनों के नक्शे स्वप्रमाणन से पास होंगे। इसके लिए लोगों को शपथ पत्र देना होगा।
बता देें कि त्रिवेंद्र सरकार में 13 नवंबर 2017 को सभी जिलों के स्थानीय प्राधिकरणों और नगर निकायों की विकास प्राधिकरण से संबंधित शक्तियां लेते हुए 11 जिलों में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण गठित किए थे। हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) में हरिद्वार के क्षेत्रों को शामिल कर लिया गया था, जबकि मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में दून घाटी विकास प्राधिकरण को निहित कर दिया गया था। इसमें स्पष्ट किया गया था कि सभी जिला विकास प्राधिकरणों में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के 200 मीटर दायरे में आने वाले सभी गांव, शहर शामिल होंगे। इनमें मानचित्र स्वीकृति अनिवार्य कर दिया गया था। बाद में इस पर भारी विरोध हुआ। जन प्रतिनिधियों ने भी खुलेतौर पर विरोध जताया था। तत्कालीन बागेश्वर विधायक चंदन रामदास की अध्यक्षता में गठित समिति ने विस को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए इन प्राधिकरणों को रद्द करने की सिफारिश की थी। बाद में तीरथ सरकार और फिर धामी सरकार ने सभी जिला विकास प्राधिकरणों को स्थगित कर दिया था। सरकार ने तीन महीने पहले इन प्राधिकरणों को नए सिरे से सक्रिय करने की कवायद शुरू की थी, जिसकी खबर अमर उजाला ने 18 जनवरी के अंक में प्रकाशित की थी। आवास विभाग से जो प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, उसमें विरोध के बिंदुओं (प्राधिकरण क्षेत्र, शुल्क आदि) में संशोधन भी किया गया था।