भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है, जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। कहा है कि चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्याेदये सति- ब्रह्म पुराण।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। वसंत ऋतु में वृक्ष, लता फूलों से लदकर आह्लादित होते हैं जिसे मधुमास भी कहते हैं। इतना ही यह वसंत ऋतु समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके समूची धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से अलंकृत कर जन मानस में नववर्ष की उल्लास, उमंग तथा मादकाता का संचार करती है।
इस नव संवत्सर का इतिहास बताता है कि इसका आरंभकर्ता शकरि महाराज विक्रमादित्य थे। कहा जाता है कि देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति और शांति को भंग करने के लिए उत्तर पश्चिम और उत्तर से विदेशी शासकों एवं जातियों ने इस देश पर आक्रमण किए और अनेक भूखंडों पर अपना अधिकार कर लिया और अत्याचार किए जिनमें एक क्रूर जाति के शक तथा हूण थे।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि का निर्माण हुआ था, इसलिए इस दिन हिन्दू नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन को संवत्सरारंभ, गुडीपडवा, युगादी, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन नामों से भी जाना जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं। हिन्दू नववर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, विक्रम संवत 2079 यानी 02 अप्रैल, 2022 से हिंदू नववर्ष नव संवत्सर 2079 आरंभ हो रहा है।
चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन अर्थात नववर्ष क्यों मनाए?
वर्षारंभ का दिन अर्थात नववर्ष दिन। इसे कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे- संवत्सरारंभ, विक्रम संवत् वर्षारंभ, वर्षप्रतिपदा, युगादि, गुडीपडवा इत्यादि।
वर्षारंभ मनाने का नैसर्गिक कारण
भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों के संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षाेऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।। (श्रीमद्भगवद्गीता दृ 10.35)
इसका अर्थ है, श्सामों में बृहत्साम मैं हूं। छंदों में गायत्री छंद मैं हूं। मासों में अर्थात महीनों में मार्ग शीर्ष मास मैं हूं और ऋतुओं में वसंतऋतु मैं हूं।
सर्व ऋतुओं में बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु। इस काल में उत्साहवर्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है। शिशिर ऋतु में पेडों के पत्ते झड़ चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडों में कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयल की कूक सुनाई देती है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है।
वर्षारंभ मनाने का ऐतिहासिक कारण
– शकोंने हूणोंको पराजित कर विजय प्राप्त की एवं भारतभूमि पर हुए आक्रमण को मिटा दिया – शालिवाहन राजा ने शत्रु पर विजय प्राप्त की और इस दिन से शालिवाहन पंचांग प्रारंभ किया
वर्षारंभ मनाने का पौराणिक कारण
– इस दिन भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया था
वर्षारंभ का अतिरिक्त विशेष महत्व
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुडी कहते हैं।
नववर्षारंभ दिन मनाने का आध्यात्मिक कारण
भिन्न-भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियों पर मनाया जाता हैं। उदाहरणार्थ, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् 01 जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। आर्थिक वर्ष 01 अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। इन सभी वर्षारंभों में से अधिक उचित नववर्ष का आरंभ दिन है, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
नववर्षारंभ दिन मनाने का आध्यात्मिक कारण
भिन्न-भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियों पर मनाया जाता हैं। उदाहरणार्थ, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् 01 जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। आर्थिक वर्ष 01 अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। इन सभी वर्षारंभों में से अधिक उचित नववर्ष का आरंभ दिन है, चौत्र शुक्ल प्रतिपदा।
ब्रह्मांड की निर्मिति का दिन
ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की। उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ। सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया।
सृष्टि के निर्माण का दिन
ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया। इसलिए ब्रह्मदेव द्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा।