कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
गीता भारत के उस वैचारिक स्वतन्त्रता और सहिष्णुता का भी प्रतीक है,जो हर व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण,अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है।गीता हर मानव के लिए ज्ञान का ग्रंथ,सांख्य का शास्त्र,योग का सूत्र एवं कर्म का पाठ है। जिसमें हर विचार,हर शक्ति के दर्शन किए जा सकते हो।
गीता हमारे ज्ञान और सोच एक ऐसा प्रतीक है।जो हमारे मनीषियों की अभिव्यक्ति की उस गहराई को प्रदर्शित करता है,जिस पर हमारे हजारों विद्वानों ने अपना पूरा जीवन दिया है। इसके वैश्विक रूप ने हर कालखंड में हमारे पथ प्रदर्शन किया है।
गीता भारत की उस वैचारिक स्वतन्त्रता और सहिष्णुता का भी प्रतीक है,जो हर व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण,अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है। भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले आदि शंकराचार्य ने इसे आध्यात्मिक चेतना के रूप में देखा। रामानुजाचार्य जैसे संतों ने गीता को आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में सामने रखा।स्वामी विवेकानंद के लिए यह अटूट कर्मनिष्ठा और अदम्य आत्मविश्वास का स्रोत रही है।
आजादी की लड़ाई में गीता से मिली ऊर्जा ने पूरे देश को बांध कर रखा है।आजादी की लड़ाई में हमें गीता से एक नई ऊर्जा मिली थी। अगर देखा जाए तो गीता श्रीअरविंदों के लिए तो ज्ञान और मानवता की साक्षात अवतार थी। महात्मा गांधी की कठिन से कठिन समय में गीता पथ प्रदर्शक रही। जहां गीता नेताजी सुभाषचंद्र बोस की राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की प्रेरणा रही है वहीं बाल गंगाधर तिलक की गीता पर की गई व्याख्या ने आजादी की लड़ाई को नई ताकत प्रदान की।
अगर देखें तो गीता संघर्षों का जीता-जागता शास्त्र है।कौरव-पाण्डवों के धर्म-अधर्म के कुरुक्षेत्र में स्वयं गुरु के रूप में विलक्षण भगवान श्रीकृष्ण हैं और शिष्य रुप में अर्जुन गीता में गुरू और शिष्य का संबंध अद्भुत है। मातृ-पितृ, बंधु एवं सखा के रूप में गुरू बन कर शिष्य अर्जुन काे मार्ग दिखाया है। गीता में मानव के कर्मों और समर्पण की व्याख्या की गई है।
जहां हमारा संविधान,हमारा लोकतंत्र हमें अपने विचारों की आजादी देता है,वहीं हमें अपने जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार भी देता है। हमें यह आजादी उन लोकतांत्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो हमारे संविधान की संरक्षक है। इसलिए जब भी हम अपने अधिकारों की बात करते है तो हमें अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों का भी स्मरण,बोध होना चाहिए।गीता में विचार एवं कर्म की स्वतंत्रता का संदेश ही देश के लोकतंत्र एवं संविधान का मूलमंत्र भी है।
कमल किशोर डुकलान
रुड़की (हरिद्वार)