कोरोना काल के नये जनादेश ने मोटे तौर पर झारखंड और बिहार जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर राष्ट्रीय फलक पर भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ ने अपनी यात्रा विजय यात्रा जारी रखी है………
कोरोना संक्रमण के समय में पहले चुनावों ने यह बता दिया है कि राजनीति का जो सिलसिला इस देश में चल रहा था, जो अभी बहुत नहींं बदला है। बिहार जैसे बड़े राज्य के विधानसभा चुनाव और कई राज्यों में हुए उपचुनावों को लेकर एक आशंका यह व्यक्त की जा रही थी कि सरकारों को जनता के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। लेकिन इन चुनावों में ऐसा नहीं हुआ। जाहिर है, ये चुनाव महामारी से सरकार के निपटने की कहानी भी कहते हैं। बेशक इसमें कई तरह की खामियां गिनाई जा सकती हैं, यह भी हो सकता है कि लोग इससे पूरी तरह संतुष्ट न हों, लेकिन लोग इसे लेकर नाराज हैं,कम से कम मतों के रुझान को देखकर तो ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह माना जा रहा था कि कोरोना संक्रमण देश में बहुत कुछ बदल देगा, अब यह कहा जा सकता है कि कम से कम इससे भारत की राजनीति तो नहीं ही बदली है।
इन सारे परिणामों का जो निष्कर्ष कहता है वो यही कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ ने मोटे तौर पर अपनी यात्रा जारी रखी है। झारखंड और बिहार जैसे कुछ अपवाद जरूर हैं, जहां स्थानीय समीकरणों ने उसके सामने मुश्किलें खड़ी की हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश की बात करते हैं, जहां एक तो सबसे ज्यादा सीटों पर उपचुनाव हुआ और दूसरा यहां भाजपा ने अपनी सरकार दल-बदल से बनाई थी। दरअसल चुनाव दल-बदल के कारण खाली हुई सीटों पर ही हुए थे। लेकिन चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि जनता ने इस तरह से सरकार बनाने की भाजपा की कोशिशों पर अपनी मुहर लगा दी है। मध्य प्रदेश में ही नहीं, ये उपचुनाव अन्य ज्यादातर राज्यों में भी कांग्रेस के लिए बुरी खबर की तरह हैं। उत्तर प्रदेश में एक को छोड़कर बाकी सभी सीटों को जीत कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि वहां पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता कायम है। यही गुजरात में हुआ है और मणिपुर में भी। झारखंड में सत्ताधारी गठजोड़ ने अपनी बढ़त बरकरार रखकर इस बात पर मोहर लगा दी है कि महामारी के बाद भी इस देश की राजनीति जस की तस बनी हुई है।
बिहार का विधानसभा चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन अभी बिहार में जनादेश किसके पक्ष में जाता है ऐसा स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। बिहार में मतगणना का काम जारी है और स्पष्ट रुझान भले ही दिख रहे हों, लेकिन अभी जो स्थिति है, उसमें नतीजे कहीं भी जा सकते हैं। इस बार बिहार में दांव बहुत बड़े हैं। एक तरफ, 15 साल के अनुभव और उसके साथ ही इतनी लंबी एंटीइनकंबेंसी का मुकाबला करने वाली सरकार है, तो दूसरी तरफ,एक युवा नेता जिन्होंने दो दिन पहले ही अपना 31वां जन्मदिन मनाया है। अगर हम राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव के साथ ही चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन न कर पाने वाली लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को भी जोड़कर देखें, तो इन चुनावों ने बिहार को अगली पीढ़ी के राजनीतिज्ञ दे दिए हैं। ओपिनियन पोल से एक्जिट पोल तक जो अनुमान थे, इस बार बिहार के चुनाव नतीजे सभी को गलत साबित करने में जुट गए हैं। सरकार जिसकी भी बने, एक चीज स्पष्ट है कि इस बार बिहार के मतदाता स्थिर सरकार के साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी देने जा रहे हैं।