कोरोना की दूसरी लहर ने भारतीय शिक्षा जगत के लिए अनेकों चुनौतियां बढ़ाई है। कहते हैं विपदाएं विकल्पों को सीमित एवं संकुचित जरुर करती हैं। परन्तु आदमी की जिजीविषा नई चुनौतियों के संदर्भ में अपने लिए नए विकल्प तलाश ही लेती है…….
दुनिया के महानतम कवि ब्रेख्त अपनी एक कविता में मशीन की शक्ति पर व्यंग्य करते हुए लिखा है कि तोप,मशीनें चाहे कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो, किन्तु उनको चलाने के लिए आदमी चाहिए। यह बात आज कोरोना की दूसरी लहर के इस विनाशकारी प्रसार में ज्यादा प्रासांगिक होकर हमारे सामने आ खड़ी है। जब कोरोना की पहली लहर आई थी,तब उस चुनौती का सामना करने के लिए भारतीय शिक्षा जगत ने ‘ऑनलाइन’ शिक्षा का विकल्प ढूंढ़ा था। कोरोना की दूसरी लहर में उस विकल्प को भी विकसित करना मुश्किल हो रहा है,क्योंकि ऑनलाइन बैठने, बोलने,उसे संयोजित करने,तकनीकी सहयोग प्रदान करने वाले ही कोरोना से ग्रसित हो महीनों कष्टकर जीवन बिताने को मजबूर हो रहे हैं।
कोरोना की इस महान विपदा में भी समस्त शिक्षण संस्थाएं,शोध संस्थाएं, उच्च शिक्षण संस्थाएं जीवन रेखा बनाए रखने के लिए कार्यरत हैं। ऐसे में अनेक ऐसी संस्थाएं नियंत्रित ढंग से ही सही अपनी भूमिका के निर्वहन में लगी हैं। उनमें लगे शिक्षक अधिकारी,कर्मचारी कोरोना से संक्रमित हो गिर रहे हैं,फिर उठ रहे हैं,कई काल कवलित भी हो रहे हैं। मंत्री से लेकर निचले कर्मचारी कोरोना से लगातार ग्रसित हो रहे हैं। ऐसे समय में शिक्षण संस्थाओं को बचाए रखने के लिए प्रतिबद्ध कर्मचारियों को भी नए ‘वैरियर’ के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।हमें उन्हें सलाम तो करना ही चाहिए। कोरोना के इस महासंहार ने भारतीय शिक्षा जगत में कई नई चुनौतियां पैदा की है। इसमें पहली चुनौती है- संक्रमण से परिसरों को बचाने के उपाय कैसे किए जाए। ऐसे परिसरों में जन सुरक्षा हेतु स्वास्थ्य सुविधा, हेल्थ सेंटर,कोविड वार्ड जैसी सुविधाओं को विकसित करना होगा।ये हेल्थ सेंटर भले ही छोटे हों,पर आपातकाल में इनमें अपने कर्मचारियों की जान बचा पाने की क्षमता हो। अनेकों शिक्षण संस्थाएं इस दिशा में प्रयासरत भी हैं। यह सुखद है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत के शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक कोरोना काल की इस नई आवश्यकता के बारे में संवेदनशील हैं। संभव है,शिक्षा के अगले बजट में शिक्षण संस्थाओं में संक्रमण प्रतिरोधी क्षमता वाले छोटे ही सही, किंतु प्रभावी स्वास्थ्य केंद्र एवं हॉस्पिटल के लिए प्रावधान हो पाएगा। साथ ही शिक्षा संस्थानों के छात्र,शिक्षकों एवं कर्मचारियों को संक्रमण से बचाव के उपायों के बारे में जनजागरण अभियान चलाना होगा। हमें शिक्षा संस्थाओं में टीकाकरण की अलग से मुहिम चलानी होगी। इनके लिए टीके की उपलब्धता भी केंद्र एवं राज्य सरकारों को सुनिश्चित करनी ही होगी।
कोरोना की इस दूसरी लहर ने हमें इतना तो चेताया है कि शिक्षा संस्थाओं के परिसरों में सतत सैनिटाइजेशन,स्वच्छता एवं सफाई बहुत जरूरी है। प्रायः शिक्षा संस्थाओं के परिसरों में सफाई एवं स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता नहीं दिखाई पड़ती थी। संक्रमण लक्षणों की जांच की व्यवस्था भी आज शिक्षा संस्थाओं के सामने एक बड़ी चुनौती की तरह खड़ी है।अभी तो पिछले दो माह से परिसर बंद हैं,छात्रावास खाली हैं,जब धीरे-धीरे परिसर खुलने शुरू होंगे,तो वहां संक्रमण के प्रसार को रोकने की वहां के प्रबंध तंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। कोरोना की पहली लहर के बाद शिक्षण संस्थानाओं ने कक्षा 6 से 12 तक एवं उच्च शिक्षण संस्थाओं का खुलना प्रारंभ ही हुआ था कि दूसरा लहर बनकर कोरोना फिर से छात्र अध्यापकों के शैक्षिक जीवन में आ बैठा है। यह जानना रोचक है कि पिछले ही दिनों यूजीसी ने स्वच्छ एवं हरे-भरे परिसर की संपूर्ण कार्ययोजना ‘सतत’ के नाम से देश के सारे शिक्षण संस्थानों, उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए प्रस्तावित की थी। अब पता नहीं, उस दिशा में किन संस्थानों ने कितना काम किया होगा। किंतु अब हमारी पूरी प्रतिबद्धता उन तमाम शिक्षण संस्थाओं को शुद्ध हवा,शुद्ध पानी एवं संक्रमण मुक्त परिवेश बनाने का रहना चाहिए। कहते हैं कि विपदाएं विकल्पों को सीमित एवं संकुचित कर देती हैं। किंतु आदमी की जिजीविषा नई चुनौतियों के संदर्भ में अपने लिए नए विकल्प तलाश ही लेती है।