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भारतीय भाषा उत्सव में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में ’कृष्ण महिमा’ नाटक का मंचन
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केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में राज्यस्तरीय शास्त्रीय स्पर्धाओं का समापन
देवप्रयाग। ’जा पर कृपा कृष्ण की होई, ता को कष्ट न होये कोई’ ’कृष्ण महिमा’ नाटक में विद्यार्थियों ने यही संदेश दिया। छोटी-छोटी बातों पर गृह क्लेश होने के कारणों को साधारण शब्दों में बताकर बच्चों ने शृंगार और हास्य रस की सरिता बहा दी। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आयोजित भारतीय भाषा उत्सव में विद्यार्थियों ने गढ़वाली, कुमाउंनी, असमी, भोजपुरी, राजस्थानी, ब्रज, हिमाचली आदि भाषओं में प्रस्तुतियां देकर सम्पूर्ण भारत के दर्शन कराये। इस अवसर पर ब्रज क्षेत्र के बच्चों द्वारा मंचित नाटक ’श्रीकृष्ण महिमा’ ने खूब तालियां बटोरीं। नाटक में बताया गया कि नास्तिक हरिराम की पत्नी वृन्दावन जाकर श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती है, परंन्तु हरिराम को यह स्वीकार नहीं। वह एक पैर से अपाहिज है। अंत में त्रिया हट के आगे झुकने के बाद वह अपनी पत्नी को कृष्ण जी के दर्शन कराने जाता है। वह भी कृष्ण के दर्शन करता है तो उसका पैर ठीक हो जाता है। इस नाटक में मधु, माधुरी, श्रेष्ठा, जितेन्द्र, राम शर्मा, अंशुल पाठक इत्यादि ने प्रभावी अभिनय किया।
इस अवसर पर मोनिका नौगाईं ने ’भलु लगदू म्यरू मुलुक स्वाणू हे’ एकल गढ़वाली गीत गाया। सूरज पैन्यूली गु्रप ने ’धरती हमारा गढ़वाळै की’ गाया। त्रिलोकेश आचार्य ने असम की बाढ़ की विभीषिका के दौरान जनजीवन प्रभावित होने का वर्णन किया। श्रुति ने शिव महिमा को व्यक्त करता हिमाचली भजन प्रस्तुत किया। पतंजलि गुरुकुलम की छात्राओं ने राजस्थानी प्रस्तुति दी। रोहित शर्मा, मुकेश नौडियाल, अमन बहुगुणा, प्रियांशु उनियाल आदि ने हिमाचली-जौनसारी नृत्य किया तो शुभम-दिगम्बर गु्रप ने गढ़वाली नृत्य से समां बांधा।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री रघुनाथी कीर्ति संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. शैलेन्द्र नारायण कोटियाल ने भारतीय भाषा उत्सव के मनाए जाने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महाकवि सब्रमण्यम भारती की जयंती पर यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। वे महान विचारक और पत्रकार थे। अध्यक्ष रूप में निदेशक प्रो. चन्द्रशेखर ने बच्चों की प्रतिभा प्रदर्शन की सराहना की। संचालन अनिल भट्ट और दीपक नौटियाल ने किया।
गुरु के ऋण से उऋण हों छात्र
देवप्रयागः केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आयोजित तीन दिवसीय राज्यस्तरीय शास्त्रीय स्पर्धाओं में संस्कृत के विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की। इसमें 17 संस्थानों के 80 स्पर्धालुओं ने 20 स्पर्धाओं में भाग लिया। प्रथम स्थानों पर रहे विजेता अब अखिल भारतीय स्तर की स्पर्धा में प्रतिभाग करेंगे।
उत्तराखण्ड की राज्यस्तरीय शास्त्रीय स्पर्धाओं का समापन हो गया। इनमें प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थानों पर रहे प्रतिभागियों को स्मृतिचिह्न और प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड संस्कृत शिक्षा के उपनिदेशक पद्माकर मिश्र ने कहा कि विद्या अध्ययन में आगे बढ़ने के लिए स्पर्धाओं का बड़ा महत्त्व है। उन्होंने कहा कि गुरु बनना आसान नहीं है। गुरु को शिक्षण के साथ ही छात्र के भविष्य का निर्माण करना होता है। एक अच्छा गुरु हर समय अपने छात्र के उज्ज्वल भविष्य के विषय में चिन्तन करता रहता है। अतः छात्र को ऐसे गुरुओं के ऋण से उऋण होने के लिए उनका आदर करना चाहिए तथा उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना चाहिए। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जैसी भारत सरकार की नोडल एजेंसी संस्कृत शिक्षा के प्रचार-प्रसार और संरक्षण में महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है।