–डॉ आदित्य कुमार पूर्व उपाध्यक्ष राज्य औषधीय पादप बोर्ड, उत्तराखंड सरकार
देवभूमि में गढवाल एवं कुमायूं में किंगोड़, किंगोड़ा, किलमोड़ा तथा जौनसार में काश्मोई आदि नामों से सुपरिचित बहुमूल्य वनौषधि “दारूहल्दी” पहाड़ों में 6 से 10 हजार फीट की ऊंचाई तक बहुतायत में प्राकृतिक रूप से उगी हुई मिलती है। दारूहल्दी की 6 से 10 फीट तक ऊंची कांटेदार झाड़ियों पर 1-3 इंच लंबे कांटेदार पत्ते होते हैं।
हर साल अप्रैल से जून माह में दारुहल्दी की झाड़ियां पीले- पीले रंग के फूलों से लद जाती है तथा जून के आखिर में इन पर नीले -बैंगनी रंग के छोटे-छोटे अंडाकार फल लगते हैं। हम से जिन लोगों का बचपन पहाड़ों में बीता है वो निश्चित रूप से प्रचुर मात्रा में सुलभ इन फलों के अद्भुत रसीले स्वाद से परिचित होंगे।
बचपन में इन फलों को खाने से किसका मुंह और जीभ जामुनी नहीं हुई है। पूरे भारत में दारुहल्दी की लगभग 13 प्रजातियों में से उत्तराखंड के पहाड़ों में मुख्यतः Berberis aristata, Berberis asiatica तथा Berberis lycium पाई जाती है। अपने अध्ययन में मैंने पाया कि उत्तराखंड के सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय लोग आज भी दारूहल्दी के औषधीय गुणों से भलीभांति परिचित हैं तथा पारंपरिक वैद्य इसकी जड़ोंं, तने, फलों एवं जड़ों को गाय या बकरी के दूध में विधिपूर्वक तैयार घनसत्व रसौंत के प्रयोग से विभिन्न रोगों की सफलता पूर्वक चिकित्सा करते हैं।
आयुर्वेद में ” दारुहरिद्रा” के नाम से अनेकों रोगों जैसे कई प्रकार के fever , नेत्ररोंगो , कान व गले के रोगों, स्त्रियों में leucorrhoea तथा मासिक स्राव की अधिकता, piles आदि विभिन्न रोगों की चिकित्सा में किया जाता है। दारूहल्दी के औषधीय गुणों की सूची बहुत लम्बी है।
Homoeopathy दवाओं के निर्माण में तथा यूनानी चिकित्सा में भी दारूहल्दी का उपयोग होता है। जड़ी बूटी तस्करों द्वारा पहाड़ों से दारूहल्दी का अंधाधुंध विदोहन होने के कारण आज ईश्वर प्रदत्त अमूल्य वनौषधि के अस्तित्व पर ही संकट आ गया है। एक औद्योगिक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड से हर साल 10 हजार कुंतल दारूहल्दी जड़ी बूटी व्यापारी एकत्र करके दिल्ली एवं पंजाब की मंडियों में बेचते रहे हैं। वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा इसे सख्तीपूर्वक प्रतिबंधित जड़ी बूटियों की सूची में डाल कर इसके अवैध विदोहन को रोकने के लिए सफलता पूर्वक अनेक प्रकार के कड़े कदम उठाये गये हैं।