✍️ सुभाष चन्द्र जोशी ©

रामेश्वर को शिक्षक की सरकारी नौकरी मिल गयी। उसे एक गाँव के प्राथमिक विद्यालय में पहली नियुक्ति मिली। सरकारी नौकरी मिलने से रामेश्वर बहुत खुश था। उसे घर से दूर एक गाँव में ज्वाइनिंग देने जाना था, बस उसकी यही एक चिन्ता बनी हुई थी। रामेश्वर अभी अविवाहित था। सरकारी नौकरी मिलना उस समय बड़ी बात थी। रामेश्वर की जाने की पूरी तैयारियां हो गयी थी। माता-पिता से आज्ञा लेकर रामेश्वर जाने ही वाला था। माँ बोली ‘‘दही मीठा खाकर जाओ।’’ मान्यता है कि जब भी कहीं अच्छे काम के लिए जाते हो तो मिठी दही रखा कर जाओ। रामेश्वर ने दही खाई और बस स्टेशन की और चल दिया। बादलपुर जाने वाली बस की जानकारी ली और टिकट लेकर बस में बैठ गया। आधे घण्टे बाद बस चल पड़ी और लगभग पाँच घण्टे की यात्रा के बाद रामेश्वर बादलपुर पहुंच गया। वह सीधे विद्यालय की ओर चल दिया। विद्यालय के हेडमास्टर से मिलकर ज्वाइनिंग दे दी। हेडमास्टर ने रामेश्वर का परिचय अन्य शिक्षकों से करवाया। उस विद्यालय में तैनात शिक्षक बादलपुर के आस-पास के कस्बों में रहते थे और प्रतिदिन विद्यालय के लिए भी वहीं से आते जाते थे। हेडमास्टर गाँव में ही रहते थे। एक रसोई और एक कमरा था हेडमास्टर के पास, जिसमें वे अकेले ही रहते थे। हेडमास्टर ने रामेश्वर से पूछा ‘‘रहने का प्रबन्ध हो गया। कहाँ रहोगे। गाँव में ही रहोगे या कहीं ओर।’’ रामेश्वर ने हेडमास्टर के प्रश्नों को सुनकर गहरी साँस ली और बोला ‘‘जी, इच्छा तो गाँव में ही रहने की है। बस अच्छा घर मिल जाए।’’ रामेश्वर की बातों को सुनकर हेडमास्टर ने कहा ‘‘ये गाँव है, यहाँ अच्छा खराब क्या है ? जब तक ठीक से रहने की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक मेरे साथ रह सकते हो।’’ रामेश्वर गाँव में अभी किसी को नहीं जानता था। इसलिए उसने हेडमास्टर के साथ ही रहने में भलाई समझी। हेडमास्टर के साथ रहे एक सप्ताह बीत गया था। कई घर देखे रामेश्वर ने पर उसको कोई भी अच्छा नहीं थी। विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों से रामेश्वर को जानकारी मिली कि एक घर है, जहाँ मात्र पति-पत्नी रहते थे। रामेश्वर विद्यालय की छुट्टी होते ही छात्रों द्वारा बताये घर को देखने निकल पड़ा। रामेश्वर उस घर पहँुचा। रामेश्वर ने देखा कि मकान का मालिक एक कुर्सी में शांत बैठा था और उसकी पत्नी इधर-उधर के काम निपटा रही थी। रामेश्वर ने आवाज दी, तो मकान मालिक ने पूछा ‘‘कौन हो क्या काम है ?’’ रामेश्वर ने अपना परिचय दिया और रहने के लिए घर किराये पर लेने की इच्छा बतायी। रामेश्वर को वह जगह पसन्द आ गयी थी वहाँ शांत वातावरण था और रहने के लिए भी खुली खुली जगह थी। रामेश्वर ने मकान मालिक से परिवार के बारे में जानना चाहा तो वह आदमी बोला ‘‘मेरा नाम गोपालराम है और यह मेरी धर्मपत्नी रूकमणी है और मेरा एक बेटा है जो सेना का जवान है।’’ अपनी बात बोलकर गोपालराम शांत बैठ गया। रामेश्वर किराये के बारे में पूछा तो गोपालराम ने कहा ‘‘जो चाहे दे देना। बताओ कब आओगे। क्योंकि उन कमरों की साफ-सफाई भी करवानी है।’’ रामेश्वर ने कहा ‘‘काका कल आऊँगा।’’ अगले दिन रामेश्वर अपना सारा सामान लेकर रहने के लिए आ गया। एक कमरा, रसोई और शौचालय के अलावा बैठने के लिए छज्जा भी था। रामेश्वर ने अपना सारा सामान लगाया सब कुछ करने में सायं हो गयी तो मकान मालिक से मिलने का ज्यादा समय नहीं मिला। उस दिन थकान के कारण रामेश्वर जल्दी सो गया था।

अगले दिन दिन सुबह जल्दी उठकर रामेश्वर ने अपने सारा काम निपटाया। रविवार था उस दिन। इसलिए विद्यालय तो जाना नहीं था। इसलिए रामेश्वर ने सोचा आज काका और काकी के साथ चाय पी ली जाए। अच्छी सी चाय बनाकर तीन गिलास चाय लेकर रामेश्वर चौक में बैठे गोपालराम और रूकमणी के पास पहुँचा और चाय पीने का आग्रह किया। गोपालराम असहज महसूस कर रहा था। उसने रामेश्वर को बैठने के लिए नहीं कहा। पर रूकमणी काकी चाय की प्लेट पकड़कर बोली ‘‘बेटा आओ यहाँ बैठो। बेटा तुमने बहुत अच्छी चाय बनायी है। मेरा ‘किशन’ भी ऐसी ही चाय बनाता है।’’ रामेश्वर ने पूछा ‘‘काकी किशन की ‘‘पोस्टिंग कहाँ है आजकल।’’ रूकमणी बोली ‘‘बेटा वह कश्मीर बॉर्डर पर तैनात है।’’ रामेश्वर ने कहा ‘‘काकी किशन का विवाह हो गया।’’ वो बोली ‘‘बेटा अभी नहीं वो 25 वर्ष का है अभी। सोच रहे है जल्द उसका विवाह कर ले। पर वह बहुत समय से घर ही नहीं आया।’’ रामेश्वर ने पूछा ‘‘क्यों काकी ?’’ रूकमणी काकी बोली ‘‘क्या बताऊँ बेटा। किशन के पिताजी की किसी बात को लेकर किशन से अनबन हो गयी और वो नाराज हैं। अब वह न तो पत्र भेजता है और नहीं फोन ही आता है उसका। उसकी कोई खबर नहीं है।’’ गोपालराम भी सेना में था। सेवानिवृत्त हो गया था। इसलिए वह बहुत कड़क स्वभाव का था। रामेश्वर ने सोचा शायद बाप-बेटे की किसी बात को लेकर अनबन हो गयी होगी। पर माँ से तो किशन की कोई नाराजगी नहीं थी। तो फिर एक वर्ष से किशन ने कोई खोज खबर क्यों नहीं की। उस दिन वो बात आयी गयी हो गयी। एक सायं गोपालराम चुपचाप कोने में बैठे कुछ चिन्तित लग रहे थे। रामेश्वर ने हिम्मत कर पूछ ही लिया ‘‘काका क्या हुआ ? परेशान लग रहे हो। गोपालराम ने कहा कुछ नहीं बेटा थकान हो गयी है। बस और कुछ नहीं।’’ रामेश्वर ने गोपाल काका के चेहरे के भाव पढ़ लिए थे। गोपाल काका अन्दर ही अन्दर किसी उलझन में थे। उनकी चिन्ता उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। कई बार पूछने के बाद भी गोपाल काका ने कुछ नहीं कहा। बहुत दिनों बाद गोपाल काका किसी काम के सिलसिले में बाहर गये थे।

पोस्टमैन ने आवाज दी ‘‘काकी पत्र ले लो।’’ रूकमणी काकी ने पोस्टमैन से पत्र लिया। वह पत्र अंग्रेजी में था। रूकमणी काकी अंग्रेजी ठीक से नहीं समझ पाती थी। सो काकी ने रामेश्वर को पत्र देकर कहा ‘‘बेटा देखों इस पत्र में क्या लिखा है ?’’ रामेश्वर ने पत्र लिया वो पत्र सेना से आया था और गोपाल काका के नाम था। पत्र खोला और पूरे पत्र को पढ़ने के बाद रामेश्वर के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। उस पत्र में क्या लिखा है यह काकी को कैसे बताऊँ यहीं सोच रहा था रामेश्वर। खबर सुनकर कहीं काकी अपनी हिम्मत न खो दे। तभी गोपाल काका आ पहुँचे। रामेश्वर के हाथ में पत्र देखकर काका ने पूछा ‘‘किसका पत्र है।’’ रामेश्वर ने कहा ‘‘आपके नाम आया है। काकी ने पढ़ने को कहा था।’’ पूछने लगे क्या लिया है पत्र में ? रामेश्वर ने पत्र काका के हाथ में दिया और चुप हो गया। काका ने पत्र पढ़ा और नीचे बैठ गये। उनका शरीर पत्थर सार हो गया था।  रूकमणी काकी बोली ‘‘क्या हुआ ? किशन का पत्र है। इसलिए कुछ नहीं बता रहे हो। इतनी भी क्या नाराजगी है ? आखिर बेटा है वह हमारा बोलकर काका के बगल में बैठ गयी।’’ पत्र में जो लिखा था उसने काका को तोड़ दिया था। काका ने हिम्मत जुटाई और काकी से बोले ‘‘किशन अब कभी नहीं आयेगा।’’ काकी ने पूछा क्यों ? क्या हुआ ? काका चुप हो गये। काका की साँस तेज होने लगी चेहरा लाल हो गया और आँखें सूख गयी। गोपाल काका ने कहा किशन नहीं रहा। वो भगवान के पास चला गया। काकी काका की बात नहीं समझ पायी। रामेश्वर से पूछा ‘‘बेटा क्या कह रहे हैं तुम्हारे काका।’’ रामेश्वर चुप रहा। काका ने कहा ‘‘रूकमणी किशन अब कभी नहीं आयेगा। वो भगवान के पास चला गया।’’ काका की बात सुनकर काकी दीवार के सहारे नीचे बैठ गयी। काकी को विश्वास नहीं हो पा रहा था। पर काका को पहले से सब पता था कि किशन बॉर्डर पर गुम है। दरअसल किशन अपने कुछ साथियों के साथ बॉर्डर पर गुम हो गया था। पर काका ने काकी से कहा कि किशन से उनकी अनबन हो गयी है इसलिए वो पत्र नहीं भेज रहा है। किशन और उसके साथियों के साथ क्या हुआ था किसी को पता नहीं चला। किशन और उसके साथी ग्लेशियर टूटने से दब गये थे। सेना ने एक वर्ष बाद सभी जवानों के शवों को बड़ी कोशिश के बाद ढंूढ निकाला था। काका को विश्वास था कि कभी न कभी किशन मिल ही जायेगा। पर अब सेना ने पत्र में सारा विवरण लिखकर भेजा था। काकी ने काका को झकझोरा और बोली ठीक से पढ़ो क्या लिखा है ? फिर रामेश्वर की ओर मुड़कर बोली बेटा तुम्हीं बताओ क्या लिखा है पत्र में। सच बताओ। रामेश्वर ने कहा काकी किशन शहीद हो गया बॉर्डर पर। रामेश्वर की बात सुनकर काकी जमीन पर चुप बैठ गयी। रामेश्वर ने काकी को उठाकर अन्दर ले जाने का प्रयास किया पर काकी पत्थर की मूर्ति की तरह हो गयी थी। उसकी आँखें रास्ते की ओर ही थी। उसे लग रहा था कि उसका किशन आ रहा है। काकी की आँखें सुख गयी। दिल बैठ गया था। क्यों न बैठता एक मात्र सहारा था उनका किशन। बात धीरे-धीरे गाँव में फैल गयी और गाँव वाले गोपाल काका के घर पर एकत्रित होने लगे। पर काकी की हालत वैसी ही थी। दो दिन तक काकी ने कुछ नहीं खाया था। तीसरे दिन सेना के वाहन में किशन का पार्थिव शरीर गाँव पहुँचा। तिरंगा झण्डे से लिपटा ताबूत में किशन को लाया गया था। लम्बी गाड़ियों की कतार लगी थी। हजारों की भीड़ किशन अमर रहे के नारे लगा रहे थे। किशन का पार्थिव शरीर दर्शन के लिए आँगन में रखा गया। गोपाल काका ने किशन के दर्शन किये और ताबूत पकड़कर वहीं बैठ गये। किसी ने रूकमणी काकी से कहा किशन आ गया है। काकी गिरती पड़ती आँगन में आयी और किशन को देखकर जोर-जोर से रोने लगी और किशन के मृत शरीर पर लिपट गयी। बहुत देर तक काकी रोती रही। तब किसी तरह लोगों ने काकी को संभाला। पूरा गाँव शोक में था। सब को ऐसा लग रहा था कि उनका ही बेटा शहीद हुआ है।

किशन को श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ा हुजुम उमड़ा। बड़े-बड़े सेना के अधिकारी से लेकर राजनैतिक एवं सामाजिक लोग गाँव पहुँचे। किशन का अन्तिम संस्कार सैन्य परम्परानुसार किया गया। किशन के शहीद होने के बाद से ही काकी चुप रहने लगी। दिन बीतते गये पर काकी हमेशा किशन के चित्र और उसके कमरे को देखती रहती थी। गाँव के विद्यालय का नाम शहीद किशन के नाम रखा गया। सरकार ने काकी के नाम शहीद किशन  पेट्रोल पम्प भी आवंटित किया, वह गाँव के बाहर मुख्य मार्ग पर लगाया।