श्री धर्मवीर आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक हैं, पहाड़ के कई जिलों में वे संघ के प्रचारक रहे और आपातकाल में संघ के कार्य को निरंतर करते रहे और पुलिस की पकड़ में कभी नहीं आये, इनको पहाड़ पर साइकिल वाला प्रचारक भी कहा जाता है, क्योंकि पहाड़ पर कई जगह ये साइकिल द्वारा भी जाया करते थे। इन्होंने अपने आपातकाल के संस्मरण सुनाएं, जिसको हुबहू लिखने का प्रयास किया गया है…
-परिचय-
धर्मवीर सिंह
जन्मतिथि -२४ जुलाई, १९४७
मातेश्वरी – श्रीमती मूंगिया देवी
पिताश्री – श्री विश्वनाथ सिंह कृषक
ग्राम – अस्करीपुर (बिजनौर) उ प्र।
सरकारी सेवा – सिंचाई विभाग रामगंगा बांध परियोजना, कालागढ़ (पौड़ी गढ़वाल, उ प्र) के चिकित्सालय में १९६७ से ७१ तक फार्मेसिस्ट पद पर कार्य किया।
प्रचारक – जुलाई, १९७१ से १९७३ चमोली एवं कर्णप्रयाग, काशी प्रचारक बैठक के पश्चात मार्च, १९७३ से ७५ तक चमोली, कर्णप्रयाग एवं जोशीमठ तहसील का दायित्व।
संघ शिक्षा वर्ग, फिरोजाबाद १९७५ में चमोली जिला प्रचारक की घोषणा हुई, ४ जुलाई सायं गोपेश्वर पहुँचने पर रात्रि रेडियो द्वारा संघ पर प्रतिबंध की घोषणा,५ जुलाई रात्रि ११ बजे गोपेश्वर छोड़ा
आपातकाल में रज्जू भैया द्वारा सम्पूर्ण गढ़वाल का दायित्व।
आपातकाल की समाप्ति के बाद पुनः चमोली जिला प्रचारक १९७७ से ७८ तक।
उसके बाद मैदानी क्षेत्र में, १९८८ से ९० तक मेरठ जिला प्रचारक,
तत्पश्चात १९९० से मुरादाबाद विभाग सेवा प्रमुख, ०१ जनवरी, १९९८
लखनऊ बैठक में उत्तराखण्ड संभाग सेवा प्रमुख, १९९९ में मेरठ प्रान्त सह सेवा प्रमुख (उत्तराखण्ड सहित)
उत्तराखण्ड प्रान्त बनने पर २००७ तक उत्तराखण्ड प्रान्त सेवा प्रमुख, फिर २००७ से १२ तक प्रान्त कार्यालय प्रमुख, देहरादून।
२०१२ में दायित्व मुक्त होकर वरिष्ठ प्रचारक के रूप में केन्द्र केशव धाम, वृन्दावन (मथुरा), २०१३ में केन्द्र माधव कुञ्ज, शताब्दीनगर, मेरठ।
सन् २०१७ से केन्द्र प्रान्त कार्यालय शंकरआश्रम, शिवाजी मार्ग, मेरठ है।
सन् १९७५ के आपातकाल में मेरा चमोली जिले से गिरफ्तारी वारंट था। उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रो. राजेंद्र सिंह ‘रज्जू भैया’ ने मुझे गढ़वाल के सभी चारों जिलों का दायित्व सौंपा था। तब मैं गढ़वाल में एकमात्र प्रचारक, जो कि पकड़ से बच गया था, अन्य प्रचारक या तो पकड़े गये थे या गढ़वाल छोड़कर अन्यत्र चले गये थे। मैं आपातकाल में गिरफ्तार नहीं हुआ। बिजनौर जिले में मेरे पूज्य पिताजी की कुर्की चमोली का थानाध्यक्ष आर के टम्टा के नाम से आया था। गढ़वाल के चारों जिलाधिकारियों एवं चारों पुलिस अधीक्षकों के जबाब तलब हुए थे।
निचले स्तर पर तो पता नहीं कितनों के जबाब तलब हुए। मेरे न पकड़े जाने के कारण चमोली के आदित्य कुमार रस्तोगी एवं पौड़ी के देवमणि बनर्जी दोनों जिलाधिकारियों का स्थानांतरण भी हुआ था। मैं कई बार पकड़ते-पकड़ते बचा गया। मैं उन दिनों किसी न किसी तरह अपने मायावी खेल के कारण पकड़ने से बच जाता था। मेरी उपस्थिति के विषय में गुप्तचर कर्मियों की सूचना आपस में टकरा जाती थी, जिसके कारण उन पर बहुत डाँट पड़ती थी। पुलिस मुझे पहचान नहीं पाती थी। बिना बोले मुझे मेरे घर पर भी कोई नहीं पहचानते थे। माह में दो बार सम्पूर्ण गढ़वाल का प्रवास करके सवा सौ स्थानों पर मेरा यथावत सम्पर्क रहता था। माह में दो बार नीचे मैदान में बैठक के लिए आता था। उसमें चार दिन व्यय हो जाते थे। शेष २६ – २७ दिन बचते थे। इन १३-१४ दिनों में ८० + २० = १०० स्थान या ८० + २५ = १०५ स्थान। इनमें ८० स्थान ऐसे थे, जिनको मैं पन्द्रह दिन में एक बार जाकर आता था तथा २० + २५ = ४५ स्थान ऐसे थे जहाँ मैं माह में एक बार सम्पर्क करता था। इस प्रकार १२५ स्थानों पर हर माह मेरा सतत् सम्पर्क था। मैं एक दिन में समयाभाव के कारण ७ – ८ स्थानों को भागते-दौड़ते कबड्डी के पाले की तरह छूकर आता था। इस बीच किसी कार्यकर्ता परिवार में जल, दूध या भोजन करने के लिए कहा तो उतना भर करके घर छोड़ कर चला जाता था। तब मैं गढ़वाल के चारों जिलों के लिए बी एच ई एल, हरिद्वार से एक छोटा सा कापी के पन्ने के बराबर उसके दोनों ओर साईकिलोस्टाइल समाचार पत्र “गढ़वाल टाईम्स” निकालता था, जिसके लिए मैं बी एच ई एल के सहायक अभियंता सूरी का सहयोग लेता था। गढ़वाल टाईम्स में वे समाचार रहते थे जो सेंसरशिप के कारण किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं होते थे। सरकार एवं पुलिस-प्रशासन द्वारा जनता पर कैसे-कैसे अत्याचार किये जा रहे हैं। जेलों में कैदियों को कैसी-कैसी यातनाएं दी जा रही है। इसमें सबसे ऊपर अंकित रहता था पढ़िये! पढ़ाईये! पढ़कर सुनाईये! यह गढ़वाल टाईम्स उन सभी १२५ सम्पर्कित स्थानों पर मैं देकर आता था। इसके अतिरिक्त पैदल मार्गों के तिराहे-चौराहों पर छोटे से पत्थर से दबाकर या किसी कांटोंदार झाड़ियों कांटों में लगाकर १० – ५, १० – ५ छोड़ कर आता था। जिन्हें लोग अपने अपने ग्रामों में ले जाकर सबके बीच पढ़ सुनाते थे। इतना ही नहीं बल्कि चारों जिलों के जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षकों तथा कुछ परगनाधिकारियों को भी डाक के लिफाफे में २ – २ रखकर भेजता था। जब वे लिफाफे यथास्थान जाकर खुलते थे तो खलबली मच जाती थी। इस कारण गढ़वाल के चारों जिलों का पुलिस-प्रशासन बहुत परेशान था। मेरा नाम लेकर मुझे गाली देता था, क्योंकि उसे यह तो स्पष्ट हो ही चुका था कि यह सब धर्मवीर सिंह कर रहा है। ये कहाँ से आते हैं एवं कौन भेजता है। इसका कुछ पता ही नहीं लगता था। तब चमोली जिले में जेल नहीं थी, चमोली जिले के सभी बन्दी पौड़ी बन्दी गृह में बन्द रहते थे। सरस्वती शिशु मंदिर, जोशीमठ में आचार्य विद्यादत्त तिवारी रात्रि में (विद्यालय में ही रहते थे) बन्दी बना लिये गये। वे पौड़ी एवं बिजनौर जेल में रहे। मैं विद्यादत्त तिवारी से बिजनौर बन्दी गृह में उनके भाई के नाम से भेंट करके आया था। मेरे बिजनौर जेल से निकलने के बाद, मेरा नाम सुनते ही जेल में हड़कम्प मच गया। क्योंकि चमोली से बिजनौर वायरलेस गया था मुझे गिरफ्तार करने के लिए। तब बिजनौर जिले का पुलिस अधीक्षक कई स्थानों (रिश्तेदारियों) पर मुझे ढूंढने गया था। पुलिस स्वास्थ्य विभाग में गौचर (चमोली) में नियुक्त “बी सी जी टैक्नीशियन”, काकोरी (लखनऊ) निवासी रामजीवन शुक्ला को रात्रि एक बजे बंदी बनाकर ले गई। वे सम्पूर्ण आपातकाल (इक्कीस माह) पौड़ी एवं बरेली जेल में रहे। पुलिस उनके आवास पर मुझे ढूंढने गई थी। मैं अन्यत्र था। उन्हें मेरी जानकारी थी, परन्तु उन्होंने बताया नहीं। वे कर्णप्रयाग-गौचर के मध्य अलकनंदा किनारे बमोथ गाँव की दुकानों में किराये के मकान में रहते थे। वेतन मिला नहीं था, दो छोटे-छोटे बच्चे थे। शुक्ला जी की धर्मपत्नी किसी प्रकार लोगों से भीख (चन्दा) मांगकर, वहाँ से रामनगर तक का किराया जुटा कर, सेना से अवकाश प्राप्त अपनें पिताजी के पास रामनगर (बरेली) पहुँची थीं। इस बीच मैं उनको रामनगर जाकर मिल कर आया था। उन दिनों गढ़वाल के जो भी लोग जेल में थे, सभी के घर परिजनों से भी भेंट करके आता था। किसी परिवार को आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी, संगठन ने उसे सहायता दी। जिसको प्रत्येक माह मैं पहुँचाता था। यह संघर्ष इक्कीस माह तक चला। संघ कार्य ईश्वरीय कार्य है, धर्म का कार्य है। जहाँ है धर्म वही जीत संभल रे पाप अरे मृर्यमाण। नया युग करना है निर्माण पुरानी नीव नया निर्माण।। मिटाने माता के सब क्लेश हृदय में लिए अमर संदेश। नया युग करना है निर्माण पुरानी नीव नया निर्माण।।