हिंदी पत्रकारिता का सफर उदन्त मार्डण्ड से शुरू हुआ, आज भी अनवरत जारी है। प्रतिवर्ष 30 मई को पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने 1826 ई. में प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ’उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन कोलकता से आरम्भ किया था। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने ही की थी। जुगल किशोर शुक्ल ने काफ़ी दिनों तक ’उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन किया। लेकिन पर्याप्त धन न होने के कारण उदन्त मार्तण्ड’ को बन्द करना पड़ा था। उदंत्त मार्तण्ड’ को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है।
हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा। भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राममोहन राय ने कई पत्र शुरू किये, जिसमें अहम हैं- साल 1816 में प्रकाशित ‘बंगाल गजट’। बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है। इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे। इसके अलावा राजा राममोहन राय ने ’मिरातुल’, ’संवाद कौमुदी’, ’बंगाल हैराल्ड’ पत्र भी निकाले और लोगों में चेतना फैलाई।
हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा आचार्य शिवपूजन सहाय 1910 से 1960 ई. तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- ’आज’, ’सन्मार्ग’, ’आर्यावर्त’, ’हिमालय’ आदि में सारगर्भित लेख लिखते रहे। उस दौरान उन्होंने हिंदी पत्रों और पत्रकारिता की स्थिति पर भी गंभीर टिप्पणियाँ की थीं। अपने लेखों के जरिये वे जहाँ भाषा के प्रति सजग दिखाई देते थे, वहीं पूँजीपतियों के दबाव में संपादकों के अधिकारों पर होते कुठाराघात पर चिंता भी जाहिर करते थे। अपने लेख “हिंदी के दैनिक पत्र“ में आचार्य शिवपूजन सहाय ने लिखा था कि- “लोग दैनिक पत्रों का साहित्यिक महत्व नहीं समझते, बल्कि वे उन्हें राजनीतिक जागरण का साधन मात्र समझते हैं। किंतु हमारे देश के दैनिक पत्रों ने जहाँ देश को उद्बुद्ध करने का अथक प्रयास किया है, वहीं हिंदी प्रेमी जनता में साहित्यिक चेतना जगाने का श्रेय भी पाया है। आज प्रत्येक श्रेणी की जनता बड़ी लगन और उत्सुकता से दैनिक पत्रों को पढ़ती है। दैनिक पत्रों की दिनोंदिन बढ़ती हुई लोकप्रियता हिंदी के हित साधन में बहुत सहायक हो रही है। आज हमें हर बात में दैनिक पत्रों की सहायता आवश्यक जान पड़ती है। भाषा और साहित्य की उन्नति में भी दैनिक पत्रों से बहुत सहारा मिल सकता है।