प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम से स्पष्ट हुआ है कि अगर विश्व बाजार में चीन को पछाड़ना है, तो भारतीय खिलौना उद्योग और मोबाइल गेम्स के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने अपने मासिक मन की बात कार्यक्रम में एक बार फिर देश की आत्मनिर्भरता को रेखांकित करते हुए इस पर खासा जोर दिया कि अगर विश्व बाजार में चीन को पछाड़ना है, तो खिलौनों व्यापार और मोबाइल गेम्स के मामले में भारतीय खिलौना उद्योग को भी आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। उन्होंने जिस तरह यह कहा कि अब सभी के लिए देश में बने खिलौनों की मांग करने का समय आ गया है, इससे यही स्पष्ट होता है कि वह देश के खिलौना बाजार में चीन के वर्चस्व को समाप्त करना चाहते हैं। यह भारत की पूर्णतया आत्मनिर्भरता के लिए स्वाभाविक भी है। सच तो यह है कि खिलौनों के साथ-साथ वे सभी वस्तुएं भारत में बननी चाहिए, जो पहले यहां बनती थीं, लेकिन कालांतर में उन सभी वस्तुओं का चीन से आयात होने लगा। यह जिन भी कारणों से हुआ हो, लेकिन ऐसा होने देना एक भूल थी। इस भूल को सुधारने के लिए हरसंभव प्रयास भारत की ओर से होने चाहिए।
इन सभी प्रयासों को सफल बनाने में देशवासियों का योगदान मुख्य रुप से रहेगा, लेकिन असली काम तो उद्यमियों और सरकार को ही करना है। अगर भारत को विश्व व्यापार में चीन से आगे बढ़ाना है,तो सरकार की ऐसी नीतियां होनी चाहिए, जिससे हमारे उद्यमी चीनी उद्योगों को हर क्षेत्र में पछाड़ने के आत्मविश्वास से लैस हो सकें। आत्मविश्वास ही आत्मनिर्भरता की कुंजी है।
वर्तमान समय में दुनिया का खिलौना बाजार लगभग सात लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी नगण्य है। यह तब है जब देश के अनेको हिस्सों में खिलौने बनाने की समृद्ध परंपरा विकसित हुई है। भारत को खिलौना परंपरा को नए सिरे से बल देना होगा जिससे देश में बने खिलौने न केवल भारतीयों की मांग पूरी कर सकें, बल्कि विश्व बाजार में भी अपना स्थान बना सकें। यह तभी संभव होगा जब यहां के उद्यमियों द्वारा निर्मित खिलौनों की गुणवत्ता और उत्पादकता विश्व स्तर की होगी। यदि विश्व बाजार में चीन को पछाड़ना है तो भारतीय खिलौना उद्योग को चीन से बेहतर करना होगा। प्रधानमंत्री देश के खिलौना उद्योग को बेहतर काम करते हुए देखना चाहते हैं, इसका पता इससे चलता है कि चंद दिनों पहले उन्होंने स्वदेशी खिलौना उत्पादन को लेकर कई वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों के साथ एक बैठक की थी।
उम्मीद है कि कोई ऐसी रूपरेखा बन रही होगी, जिससे भारतीय खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन मिलना सुनिश्चित हो सकेगा। यह प्रोत्साहन उन्हें भी मिलना चाहिए, जो मोबाइल गेम्स बनाते हैं। मोबाइल गेम्स का भी एक बड़ा बाजार है और वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों चीनी एप्स पर पाबंदी के बाद भारतीय कंपनियां जिस तरह से भांति-भांति के एप बनाने के लिए प्रयासरत हैं, उसी तरह उन्हें मोबाइल गेम्स बनाने के लिए भी सक्रिय होना चाहिए। इस सक्रियता के बीच सरकार को यह देखना चाहिए कि हर मामले में आत्मनिर्भर बनने की सोच एक संकल्प का रूप ले सकें।
कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)