लेखक-राम प्रकाश पैन्यूली,  महामंत्री उत्तरांचल उत्थान परिषद

उत्तराखण्ड देवतात्मा हिमालय की गोद में बसा एक पर्वतीय राज्य है, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। विषम भौगोलिक परिस्थिति एवं जन आकांक्षाओं के चलते यह पर्वतीय राज्य वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आया था। उत्तराखण्ड, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगा एक सीमान्त राज्य है। इस भू-भाग के आर्थिक पिछड़ेपन, विषम भौगोलिक परिस्थिति एवं सामरिक संवेदनशीलता के कारण ही उत्तरांचल उत्थान परिषद के मंच से सर्वप्रथम अलग पर्वतीय राज्य की सैद्धान्तिक सहमति राष्ट्रवादी विचार परिवार द्वारा व्यक्त की गयी और उस दिशा में सफलता भी प्राप्त हुई, किंतु अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में जिस प्रकार के विकास की कल्पना की गई थी, उसके अनुरूप उच्च एवं मध्य हिमालयी क्षेत्र के विकास की दशा और दिशा में कोई विशेष अन्तर दिखायी नहीं दिया।  राज्य में आज भी रोजगार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि कारणों से पलायन हो रहा है। उत्तरांचल उत्थान परिषद द्वारा विगत कई दशकों से ग्राम विकास की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।

विकास में समाज की सहभागिता

उत्तरांचल उत्थान परिषद की स्पष्ट मान्यता है कि विकास के लिए सरकार के साथ ही समाज की सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है, इसलिए उत्तरांचल उत्थान परिषद ने सामाजिक सहयोग पर आधारित ग्राम विकास को ही अपनी गतिविधियों के केन्द्र में रखा। उत्तराखण्ड के आर्थिक पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण सरकारी निर्भरता वाली मानसिकता रही है, यहां के युवाओं के जीवन की प्राथमिकता सरकारी नौकरी पाने की रहती है इसलिए यहाँ रोजगार नहीं है यह कह कर युवा शक्ति निरन्तर पलायन करती जा रही थी।

स्वावलम्बन की समृद्ध परम्परा

उत्तराखण्ड अतीत में सामाजिक एवं आर्थिक रूप में समृद्ध एवं स्वावलम्बी भू-भाग रहा है। इस समृद्धि में सरकार की भूमिका नगण्य थी। असंख्य सीढ़ीनुमा खेत, सड़कें, पुल, भव्य मन्दिर,  विद्यालय, नहरें तथा घराट इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। धर्मप्राण हमारे पूर्वजों ने हिमालय में जीवन को तरासा एवं तलासा था, उस समृद्ध परम्परा को भुला कर रोजगार का अभाव बता कर हमारे युवा देवभूमि को जनशून्य बनाने पर तुले हैं।

स्वावलम्बी रोजगार के अनेक अवसर

गौपालन, दुग्ध उत्पादन, भेड़-बकरी पालन, होम स्टे, पेइंग गेस्ट हाउस, होटल-ढ़ाबे, बागवानी, फल-सब्जी का उत्पादन, फल प्रसंस्करण इकाई, नकदी फसलें, टेलरिंग, कारपेंटरी, राजमिस़्त्री, बार्बर, ट्रैबलिंग, गाड़ी मरम्मत, ड्राइविंग, पर्यटन गाइड, जड़ी-बूटी का कृषिकरण, जैविक कृषि, पौरोहित्य,  आयुष एवं योग के माध्यम से अनेक अवसर हैं जिनको अपना कर हम खुद को तथा राज्य को भी आर्थिक-स्वावलम्बी बना सकते हैं। 

ग्राम विकास का मूलमंत्र ‘‘ मेरा गांव मेरा तीर्थ’’

 उत्तरांचल उत्थान परिषद प्रदेश से बाहर अन्य राज्यों में रह रही लाखों आबादी को गांव के विकास से जोड़ने की अभिनव योजना पर कार्य कर रहा है। प्रवासी उत्तराखण्डियों को प्रवासी पंचायतों एवं ग्रामोत्सवों के माध्यम से गाँव से जोड़ने का कार्य प्रगति पर है, वर्ष 2013 से देश के विभिन्न शहरों में अभी तक 07 प्रवासी पंचायतें क्रमशः हरिद्वार, दिल्ली, मुम्बई, चण्डीगढ़, मेरठ, लखनऊ तथा जयपुर में आयोजित कर चुकी है, इन पंचायतों के माध्यम से दस लाख प्रवासियों को प्रतिवर्ष ग्रामोत्सवों के निमित्त गांव बुलाने की योजना है। चलो गांव की ओर आह्वान इसी अभियान का अंग है, संयोग से कोरोना महामारी के कारण इस अभियान को कुछ अनुकूलता प्राप्त हुई  है। उत्तरांचल उत्थान परिषद द्वारा वर्षभर प्रदेश में ग्रामोत्सव, हरेला, हिमालय दिवस, राज्य स्थापना दिवस, प्रवासी पंचायत, ग्राम दर्शन एवं हित-चिन्तक योजना के माध्यम से प्रवासी उत्तराखण्डिओं को गांव के विकास के साथ जोड़ा जाता है।

समग्र ग्राम विकास के लिए सरकार एवं समाज की संयुक्त भूमिका

सरकारों की दूरदृष्टि एवं समाज की सजगता से ही विकास की गंगा बहायी जा सकती है। उच्च एवं मध्य हिमालयी पिछड़े ग्रामों के कारण ही इस राज्य का जन्म हुआ यह सदैव स्मरण रहना चाहिए, विकास की कसौटी भी इस विषम भौगोलिक क्षेत्र का विकास ही होना चाहिए। इसलिए ग्रामोन्मुखी योजनायें, देवभूमि की अवधारणा के अनुरूप विकास, तीर्थाटन, पर्यटन,भू-बन्दोवस्त, चकबन्दी, आई0 टी0 से जुड़े उद्योग, मेरा गांव मेरा तीर्थ अभियान, ग्रामोत्सव आदि उपक्रम इस नवोदित राज्य के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं। 

कोरोना महामारी से निपटने के प्रयास

उत्तरांचल उत्थान परिषद ने अपने सीमित साधनों के बाबजूद इस विश्वव्यापी महामारी में लाॅक डाउन के कारण प्रभावित परिवारों को राहत सामग्री प्रदान की। कुल 06 स्थानों पर 33 सेवाव्रती कार्यकर्ताओं ने 155 परिवारों को 2550 भोजन पैकेट्स की सेवा प्रदान की। 700 मास्कों का वितरण किया गया। प्रदेश से बाहर लगभग 100 लोगों को भोजन सामग्री प्रदान की गयी। 350 प्रवासी उत्तराखण्डियों को उनके गन्तव्य तक भिजवाने में सहयोग किया गया। इसके अतिरिक्त भोजनालय के माध्यम से 12780 भोजन कराया गया। कार्यकर्ताओं के सहयोग से 51000 की राशि  पी0 एम0 राहत कोश में भी भेजी गयी।

आर्थिक एवं सामाजिक सर्वेक्षण

उत्तराखण्ड में 02 लाख प्रवासी कामगारों का अपने गाँव लौटने का अनुमान है, इन युवाओं को स्वरोजगार अपनाने हेतु व्यक्तिगत सघन सम्पर्क अभियान एवं आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों के आलोक में  किया जाना प्रस्तावित है। उत्तरांचल उत्थान परिषद लौटे प्रवासी युवकों से आग्रह करती है कि उत्तराखण्ड में स्वरोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध हैं अपनी परिस्थिति के अनुसार उनका चयन कर सहयोग, स्वावलम्बन और स्वाभिमान के आधार पर  उत्तराखण्ड के समग्र विकास में अपना सहयोग प्रदान करें।

प्रवासी उत्तराखण्डी रोजगार सर्वेक्षण के लिए निम्नलिखित लिंक का उपयोग पर अपना विवरण दे सकते हैंः

https://forms.gle/UsqGigHHQB5tycB58