डॉ.वीरेंद्र बर्त्वाल


एशियन पीएच-डी फेलोशिप प्रोग्राम के तहत आईआईटी के लिए चयन

नई दिल्ली। भारत में एक बार फिर सदियों पहले की ज्ञान देने की परंपरा लौट आएगी। बाहरी देशों के विद्यार्थी यहां के नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में ज्ञानार्जन के लिए आते थे, लेकिन अब विदेशी छात्र आईआईटी में शिक्षा ग्रहण करने आएंगे। एशियन पीएच-डी फेलोशिप प्रोग्राम (एपीएफपी) के तहत एशियायी देशों के 1000 छात्रों का चयन किया गया है। इन छात्रों की सुविधा के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में अलग से एशियायी सचिवालय बनाया गया है। भारत की इस पहल की एशियायी देशों में प्रशंसा की जा रही है। पीएचडी के पहले बैच के छात्रों के स्वागत में भारत की ओर से आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने उम्मीद जताई कि इससे एशियायी देशों के साथ भारत के संबंध और मजबूत होंगे और हमारे बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को गति मिलेगी।
प्रौद्योगिकी शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) का बड़ा नाम है। इनकी शिक्षा विश्वभर में प्रसिद्ध है। मुंबई, रुड़की, दिल्ली, वाराणसी, कानपुर इत्यादि 23 शहरों में स्थित इन संस्थानों में अध्ययन करना छात्र के लिए गौरव की बात होती है। आज से 64 साल पहले 15 सितंबर, 1956 में इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी एक्ट-1956 के तहत आईआईटी की स्थापना की गई थी। इन संस्थानों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी है। सरकार कमेटी की संस्तुतियों पर बंबई (मुंबई) परिसर की स्थापना 1958, मद्रास (चेन्नई) की 1959 कानपुर की भी 1959 तथा दिल्ली परिसर की स्थापना 1961 में की गई थी। आईआईटी में अध्ययन हेतु प्रवेश करने के लिए जेईई और गेट परीक्षाएं क्वालीफाई करनी पड़ती हैं।
भारत सरकार ने इस बार एशियायी देशों के एक हजार छात्रों का चयन इन आईआईटी में अध्ययन के लिए किया है। शिक्षा के ़क्षेत्र में भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की गई इस अभिनव पहल से भारत की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है। शुक्रवार को इन छात्रों के पहले बैच का स्वागत किया गया। एशियायी सदस्य दशों के प्रतिनिधियों, राजदूतों, भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा राज्यंत्री संजय धोत्रे, उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे की मौजूदगी में आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय वर्चुअल कार्यक्रम में सभी संबंधित देशों के प्रतिनिधियों ने भारत की इस पहल का स्वागत करते हुए आपसी संबंधों की मजबूती में इसे मील का पत्थर बताया। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने विदेशी छात्रों का स्वागत करते हुए और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 25 जनवरी, 2018 को इस योजना की घोषणा की थी, इसे क्रियान्वित करते हुए हमें गर्व हो रहा है।
डाॅ. निशंक ने कहा कि भारत की एशियायी देशों के साथ 25 वर्षों से भी अधिक समय से चल रही साझेदारी और भारत की ’लुक ईस्ट’ पाॅलिसी का ज्वलंत प्रमाण है। यह भारत सरकार द्वारा छात्रों के लिए चलाए जा रहे सबसे बड़े क्षमता विकास कार्यक्रमों में एक है। यह कार्यक्रम भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण तत्त्व ’अतिथि देवो भव’ तथा ’वसुधैवकुटुम्बकम’ का द्योतक है। यह भारत के वैश्विक प्रेम को दर्शाता है। हमारा उद्देश्य भारत को शिक्षा के क्षेत्र में ग्लोबल हब के रूप में विकसित करना है। शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण, स्टडी इन इंडिया, क्वालिटी एजुकेशन पर हमारा विशेष फोकस है। यह कार्यक्रम इस दिशा में उठाया गया सकारात्मक कदम है। एशियायी देशों में भारतीय फिल्मों की शूटिंग और रामलीलाओं का मंचन होता है। एशियायी देशों के साथ हमारे सांस्कृति, सामाजिक आदि घनिष्ठ संबंध हैं। अब ये संबंध और मजबूत होंगे। हम थ्री सी-कल्चर, काॅमर्स और कनेक्टिविटी को इन देशों के साथ मजबूत करेंगे। हमारे आईआईटी में शोध कर ये छात्र अपने देशों को उस ज्ञान से लाभान्वित करेंगे तो यह हमारे लिए गौरव की बात होगी।
केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री संजय धोत्रे ने कहा कि हम एशियायी देश आपस में सांस्कृति रूप से घनिष्ठता से संबद्ध है। दक्षिण पूर्व एशियायी देशों के साथ हमारे संबंध बहुत पुराने हैं। एशियायी छात्रों की हमारे यहां शुरू हो रही यह शोध यात्रा कई मायनों में हमारे और इन देशों के लिए महत्त्वपूर्ण और लाभदायक साबित होगी। इस मौके पर लाओस, इंडोनेशिया, कंबोडिया, ब्रूनिया, वियतनाम, सिंगापुर, मलयेशिया, म्यांमार, थाईलैंड, फिलिपींस के राजदूत और उच्चायुक्तों के साथ ही उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे, सचिव ईस्ट रीवा गांगुली दास, आईआईटी के निदेशक प्रो. रामगोपाल राव, समन्वयक नोमेश बोलिया आदि उपस्थित रहे।