कोरोना के बाद ब्लैक फंगस भारत में महामारी घोषित की गयी है, देश प्रतिदिन ब्लैक फंगस के कारण मौतें हो रही हैं। केंद्र सरकार ने राज्यों से इसे महामारी अधिनियम 1897 के तहत महामारी घोषित करने का आग्रह किया है। ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) एक ऐसा इंफेक्शन है, जो अब तक बहुत ही कम लोगों को होता रहा है। लाखों में किसी एक को यह संक्रमण होता था। लेकिन कोरोना से संक्रमित मरीजों में यह इंफेक्शन बड़ी तेजी से फैला है।
ब्लैक फंगस के सबसे अधिक मामले डायबिटिक लोगों में आ रहे हैं। ऐसे में इन्हें सबसे अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है और नियमित तौर पर अपना शुगर लेवल चेक करते रहना चाहिए।
इन मरीजों को है सबसे अधिक खतरा
डायबिटिज के मरीज में जिन्हें स्टेरॉयड दिया जा रहा है।
कैंसर का इलाज करा रहे मरीज।
अधिक मात्रा में स्टेरॉयड लेने वाले मरीज।
ऐसे कोरोना संक्रमित जो ऑक्सीजन मॉस्क या वेंटिलेटर के जरिए ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।।
ऐसे मरीज जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम है।
ऐसे मरीज जिनके किसी ऑर्गन का ट्रांसप्लांट हुआ हो.
ये लक्षण हो सकते हैं ब्लैक फंगस के
मुलुंड स्थित फोर्टिस अस्पताल की सीनियर कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ श्वेता बुडयाल ने बताया कि ब्लैक फंगस आमतौर पर साइनस, मस्तिष्क और फेफड़ों को प्रभावित करता है। हालांकि बुडयाल के मुताबिक ओरल केविटी या मस्तिष्क के ब्लैक फंगस से सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका रहती है लेकिन कई मामलों में यह शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है जैसे कि गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट, स्किन और शरीर के अन्य ऑर्गन सिस्टम्स. डॉ बुडयाल के मुताबिक अगर इनमें से कुछ भी लक्षण है तो ब्लैक फंगस को लेकर जांच कराना चाहिए।
नाक बंद होना या नाक से खून या काला-सा कुछ निकलना.
गाल की हड्डियों में दर्द होना, एक तरफ चेहरे में दर्द, सुन्न या सूजन होना।
नाक की ऊपरी सतह का काला होना।
दांत ढीले होना.
आंखों में दर्द होना, धुंधला दिखना या दोहरा दिखना. आंखों के आस-पास सूजन होना।
थ्रांबोसिस, नेक्रोटिक घाव
सीने में दर्द या सांस लेने में दिक्कत होना।
कोरोना संक्रमितों में बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मामले
देश के कई हिस्सों में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं और इस बीच ब्लैक फंगस के भी मामले बढ़ने लगे हैं। पुणे स्थित सह्याद्रि हॉस्पिटल्स के डायरेक्टर (डिपार्टमेंट ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज) और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट व डायबिटोलॉजिस्ट डॉ उदय फडके ने कहा कि पहले साल में एक या दो ब्लैक फंगस के मामले आते थे, लेकिन अब पुणे के सह्याद्रि हॉस्पिटल्स में ही एक महीने में 30-35 मामले आ रहे हैं।
इन कारणों से बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मामले
डॉ श्वेता के मुताबिक कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल हो रहा है जिससे शुगर का लेवल बढ़ रहा है। शुगर लेवल बढ़ने और फिजिकल एक्टिविटी न होने पर ब्लैक फंगस के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
स्टेरॉयड के इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कम होती है, जिससे ब्लैक फंगस के विरुद्ध शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पाता है।
चेन्नई स्थित डायबिटीज स्पेशिलिटीज सेंटर के चीफ कंसल्टेंट व चेयरमैन डॉ वी मोहन के मुताबिक डायबिटीज के अलावा हाईजीन और दूषित इक्विपमेंट के चलते भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़ रहे हैं। डॉ मोहन का कहना है कि कोरोना केसेज इतने अधिक आ रहे हैं कि अस्पतालों में सफाई पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके चलते इक्विपमेंट पर फंगस जमा होने की आशंका बढ़ती है।
ब्लैक फंगस के इलाज में सावधानी जरूरी
डॉ श्वेता के मुताबिक डायबिटिक मरीजों में ब्लैक फंगस का शुरुआती दौर में ही पता लगना बहुत जरूरी है। उनका कहना है कि डायबिटिक लोगों को ज्यादा स्ट्रॉन्ग दवाएं देने से उनकी किडनी या अन्य अंगों पर बुरा असर पड़ने का भी खतरा रहता है।
डॉ श्वेता के मुताबिक जिन कोरोना संक्रमितो को ब्लैक फंगस हो रहा है, उन्हें ट्रीटमेंट के समय और रिकवरी के बाद स्टेरॉयड की डोज बेहद सावधानी से दी जानी चाहिए।
डॉ फडके के मुताबिक ब्लैक फंगस का इलाज तीन चरणों में किया जाना चाहिए. पहले चरण में सिर्फ संक्रमण की वजह का पता लगाकर उसे दूर करना चाहिए और शुगर लेवल व एसिडोसिस चेक करना चाहिए। इसके बाद सर्जरी के जरिए एग्रेसिव तरीके से डेड टिश्यू हटाए जाने चाहिए, ताकि फंगस को अधिक फैलने से रोका जा सके। इसके बाद उचित दवाइयां दी जानी चाहिए।