27 Apr 2025, Sun

नवरात्रि आध्यात्मिक एवं सामाजिक एकजुटता का उत्सव

-कमल किशोर डुकलान ‘सरल’


हिंदुओं का एक प्रमुख उत्सव नवरात्रि देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें शक्ति या देवी के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान, भक्त देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। नवरात्रि का इतिहास प्राचीन काल से ही है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर राक्षस से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसलिए, नवरात्रि को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें अच्छाई की शक्ति पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है। यह एक समय है जब लोग अपनी आध्यात्मिकता को विकसित करते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

नवरात्रि के दौरान, लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, जो शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं। इससे लोगों को आध्यात्मिक विकास करने और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद मिल सकती है। नवरात्रि एक ऐसा उत्सव है जो लोगों को एक साथ लाता है। यह एक समय है जब लोग एक साथ मिलकर देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और अच्छाई की शक्ति पर विश्वास करते हैं। नवरात्रि के दौरान, कुछ लोग उपवास रखते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इससे उन्हें आत्म-शुद्धि करने और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद मिल सकती है। नवरात्रि एक ऐसा उत्सव है जो लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद कर सकता है। यह एक समय है जब लोग आध्यात्मिक रूप से विकसित होते हैं, सामाजिक रूप से एकजुट होते हैं और आत्म-शुद्धि करते हैं।

मानव चेतना के अन्दर सतोगुण रजोगुण और तमोगुण तीन गुण व्याप्त हैं। मानव चेतना के इन्हीं तीन गुणों का प्रकृति के साथ उत्सव को नवरात्रि कहते है। संकल्प और साधना के लिए ही वर्ष में दो बार नवरात्र का प्रावधान किया गया है। परब्रह्म की प्रकृति स्वरूपा शक्ति आह्लादित होती है। इसीलिए हम नवरात्र में शक्ति की आराधना करते हैं। आदि शक्ति स्वरूपा स्त्री, लक्ष्मी, गौरी, सरस्वती का रुप धारण करती है। दुर्गा, काली, शिवा, धात्री आदि अनेक रूपों में हम अखिल ब्रह्माण्ड में मातृतत्व के रूप में व्याप्त इसी एकमात्र शक्ति का नवरात्र में हम आह्वान करते हैं और इस भाव से भरते हैं कि इस धरती पर मां की तरह कोई दूसरी शक्ति निरंतर हमारा सृजन और पालन करती रहें। हम सब उसकी संतानें हैं,परंतु जब कभी हम अहंकार में उस शक्ति को नकारने का उपक्रम करने लगते हैं या सृष्टि को बाधा पहुंचाते हैं तो वह शक्ति रणचंडी का रूप धारण कर हमें रोकती है। दुर्गा स्तुति में कहा भी गया कि ‘या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते..’ नवरात्रि का पर्व माँ के अलग-अलग रूपों को निहारने और उत्सव मनाने का पर्व है। जिस प्रकार शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता है, वैसे ही हर मानव अपने आप में परा प्रकृति में रहकर-ध्यान में मग्न होने का नवरात्र का महत्व है। जब हम दसवें दिन परा प्रकृति से बाहर निकलते है तो सभी जीव-जंतुओं में नव चेतना का सृजनात्मक प्रस्सपुरण जीवन में आने लगता है। आखिरी दिन जब हम मां दुर्गा के दसवें रुप सिद्धिदात्री के रूप में हम विजयोत्सव मनाते हैं तो चेतना के तीनो गुणों के परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। हमारे अन्दर काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृति के दुर्गुण हैं उनका हनन करके विजय रूप में उत्सव मनाते है। रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता है उसमें से कुछ समय मन को हटा करके जीवन का जो उद्देश्य व आदर्श हैं उसको निखारने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। एक तरह से हम अपने मन के अन्दर की सकारात्मक ऊर्जा को पुनः रिचार्ज करते हैं। जब व्यक्ति अपने काम करते-करते थक जाता है तो इस थकान से मुक्त होने के लिए इन 9 दिनों में शरीर, मन, बुद्धि की शुद्धिकरण का पवित्र पर्व का नाम मां दुर्गा की स्तुति नवरात्रि है।

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