हरिद्वार। विकास और पर्यावरण एक दूसरे के विरोधी नहीं, एक दूसरे के पूरक हैं। भारत की संस्कृति हजारों साल पुरानी है। आज पश्चिम देश भारतीय ऋषि मुनियों की विधाओं पर शोध कर रहा है। तकनीकी, वैभव, व्यापार सभी मे हमारा प्रभाव था। बावजुद इनके कभी कोई पर्यावरण की समस्या नहीं हुई, लेकिन जब से हम दूसरों पर निर्भर होकर चलने लगे तभी से समस्याएं बढ़ने लगी हैं। रसायनिक खेती को छोड़कर अब लोग जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। कोरोना काल मे लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हुए हैं। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने हरिद्वार में दिव्य प्रेम सेवा मिशन में रविवार को पर्यावरण समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कही।
डॉ. मोहन राव भागवत ने कहा कि नीतियों में भी विकास और पर्यावरण का विरोध होता है। हमेशा से पर्यावरण का विकास में विरोध दिखता है लेकिन भारत का दृष्टिकोण किसी को एक दूसरे से अलग न मानने वाला है। भारत विविधता में एकता और एकता में विविध्ता वाला देश है। हमारी सृष्टि में पंच महाभूत है। कोई किसी से अलग नहीं है।
उन्होंने कहा कि पॉलीथिन के प्रयोग को रोकने के लिए हमें अपने व्यवहार में परिवर्तन की जरूरत है। हम पॉलीथिन के मकड़ जाल में फंस गए हैं अब जरूरत है इससे बाहर आने की।
उन्होंने सभी से आह्वान किया कि हमें मिलकर पर्यावरण युक्त पॉलीथिन मुक्त देश बनाना है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण हमे प्रकृति से मिला है और जो भी वस्तु हमे बिना प्रयास के मिलती है हम उसकी कद्र नहीं करते। इस मौके पर उन्होंने पर्यावरण समिति की पत्रिका का विमोचन भी किया। इससे पूर्व पर्यावरण गतिविधि के राष्ट्रीय सह संयोजक राकेश जैन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए पॉलीथिन के नुकसान को विस्तार से बताया जबकि सन्तों का परिचय समिति के संयोजक महन्त रूपेंद्र प्रकाश महाराज ने कराया।
कुम्भ के दौरान पर्यावरण समिति के कार्यों का विवरण समिति उपाध्यक्ष डॉ. रघुवीर सिंह रावत और संचालन डॉ. विनोद ने दिया। इस मौके पर निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाश नन्द गिरी विशेष रूप से उपस्थित थे।