• कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)
नई शिक्षा नीति भारत को पुनःविश्वगुरु बनाने तथा भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन का नया सवेरा लाने एवं बच्चों के सर्वागीण विकास और भारतीय संस्कृति के साथ आने वाले भविष्य की रूपरेखा पर नीति आधारित है।
शिक्षा एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। कई लोगों का मानना है कि किताबी ज्ञान से अधिक बच्चे परिवेशीय घटनाओं और अनुभवों से सीखते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था में परिवेशीय घटनाओं के आधार पर परिवर्तन नहीं हुए। निश्चित रूप से यह विचार अधिकांश लोगों के मन में आज भीआता है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के रूप में इसी प्रश्न का समाधान होता दिखाई पड़ रहा है। विगत 34 वर्षोंं से चली आ रही भारतीय शिक्षा व्यवस्था में परिवेशीय ज्ञान के आधार पर अंतत: आमूलचूल परिवर्तन करने वाली नई शिक्षा नीति हमारे सामने है।
भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने के उद्देश्य के साथ शिक्षा के क्षेत्र में सर्वांगीण विकास और भारतीय संस्कृति के साथ आने वाले भविष्य की रूपरेखा पर यह शिक्षा नीति आधारित है।
प्रजातांत्रिक मूल्यों को पूरा सम्मान देते हुए वर्तमान शिक्षा नीति सवा सौ करोड़ भारतीयों के सुझावों एवं प्रश्नों के समाधानों पर आधारित है। इस नीति में आत्मा भविष्यपरक शिक्षा और भारतीय मूल्यों का सुंदर गठबंधन दिखाई देता है।
नई शिक्षा नीति को अंकपरक की बजाय ज्ञानपरक बनाने के लिए कई सार्थक प्रयास किए गए हैं। नई शिक्षा नीति चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है- स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, प्रशासन या नियामक एवं शोध। हर स्तंभ से जुड़े कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जो इस नीति को विशिष्ट करते हैं। हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं की पहचान कर उसके विकास हेतु प्रयास, बुनियादी साक्षरता पर जोर, लचीलापन, बहु-विषयक शिक्षा तथा शोध पर केन्द्रित, रचनात्मकता को बढ़ावा, भाषा की शक्ति को प्रोत्साहन, नैतिकता और मानवीय मूल्यों पर ध्यान, जीवन कौशल, शिक्षकों की भर्ती और निरंतर विकास पर पूरा ध्यान, शैक्षिक प्रणाली में अखंडता, पारदर्शिता और संसाधन कुशलता,उत्कृष्ट स्तर का शोध और भारतीय जड़ों से बंधे रहने की भावना इस नीति के मूल सिद्धांत हैं।
इस नीति के अनेकों प्रावधान ऐसे हैं, जिसमें मेरा ध्यान बार बार आकर्षति किया, वह है शिक्षा का समावेशी स्वरूप। नीति के पहले ही अध्याय में जहां वर्तमान की विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था में बड़े परिवर्तनों का उल्लेख है, उसमें इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ग्रामीण तथा आदिवासी बाहुल्य इलाकों में इन तमाम परिवर्तनों और नई व्यवस्था का समुचित प्रबंध हो, चाहे वह शिक्षा की नियमावली से जुड़ी व्यवस्थाएं हों या शिक्षा मद में खर्च होने वाली फंडिंग से हो। नई विद्यालयी शिक्षा में जहां प्राथमिक स्तर पर बालवाटिकाओं की बात की गई है, वहीं आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इसे लागू करने की व्यवस्था भी स्पष्ट की हुई है। इस व्यवस्था में महिला एवं बाल विकास तथा जनजातीय मंत्रलयों की भूमिका जोड़ दी गई है।
इसी तरह अलग-अलग स्थानों और बिंदुओं के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ गया है कि इस नीति का विशेष ध्यान महिलाओं,अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों, आदिवासी समुदायों तथा दिव्यांगों पर रहेगा। यह शिक्षा नीति कहीं न कहीं इस तथ्य को भली-भांति समझती है कि भारत में समग्र रूप से समतामूलक और समावेशी शिक्षा की व्यवस्था किए जाने की आवश्यकता है। नीति में इस बात का साफ उल्लेख है कि किस प्रकार विभिन्न आíथक तथा सामाजिक कारणों से अनुसूचित जाति-जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के बच्चों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों तथा दिव्यांगों का प्राथमिक से क्रमश: उच्च शिक्षा तक पहुंचते पहुंचते प्रतिशत बहुत कम हो जाता है। इसी दृष्टि से खंड छह में दिव्यांगों के लिए महिलाओं के लिए, आदिवासी समुदाय के बच्चों के लिए, अल्पसंख्यकों के लिए, पिछड़े समाज से आने वाले बच्चों के लिए, ट्रांसजेंडर विद्याíथयों के लिए और आíथक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए कई प्रकार की सुविधाओं व छात्रवृत्तियों के प्रावधानों का उल्लेख निश्चित ही इस नीति को समावेशी बनाता है।
भारत को पुनः विश्वगुरु और आत्मनिर्भर भारत को पाने का स्वप्न हम सभी देख रहे हैं, उसके लिए अत्यंत आवश्यक है एक ऐसा स्वस्थ समाज जहां किसी प्रकार के पूर्वाग्रहों के लिए कोई स्थान न हो। भारत की नई शिक्षा नीति इस बिंदु को, एक उद्देश्य के रूप में समाहित किए नजर आती है।
आवश्यकता इसके पूर्ण रूप से लागू किए जाने की है, ताकि भारतीय समाज का हर सदस्य शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ा रह सके।आज इस बात की आवश्यकता है कि शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर समाज में लैंगिक भेदभाव को भी खत्म किया जाए और उस मानसिकता से भी मुक्ति पाई जाए जो मनुष्य को धर्म, जाति या उसकी शारीरिक संरचना के आधार पर विभक्त करके भेदभाव पैदा करती है। नई शिक्षा नीति इसी उद्देश्य को प्रेरित करती है। यदि इसे इसी स्वरूप में लागू कर पाने में हमारे शिक्षा संस्थान सफल रहते हैं तो निश्चित ही यह भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन का नया सवेरा लाने में सक्षम साबित हो सकती है।