शास्त्रों में कहा भी गया है,कि जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नहीं होता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।
नारीशक्ति को कोमलता, क्षमाशीलता, सहनशीलता की मूर्ति माना जाता है। भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है। भगवान शिव भी शक्ति के बगैर मृत शव के समान माने जाते हैं। स्त्री को सृजन की शक्ति मानते हुए प्रकृति में वंश वृद्धि की जिम्मेदारी नारी को ही प्रदान की है, वह न केवल नारी का उत्तरदायित्व है, बल्कि एक चमत्कार भी है। नारी हमारा पालन-पोषण करती है। इसलिए उसका पालन करना हमारा कर्तव्य है। वेदों में नारी को सत्याचरण अर्थात धर्म का प्रतीक कहा गया है, हिन्दू धर्म में नारी के बिना कोई भी धार्मिक कार्य उसके बगैर पूरा नहीं माने जाते हैं।
स्त्री को सृजन की शक्ति मानते हुए भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 8 मार्च को नारी के सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिला दिवस मनाने का उद्देश्य समाज में महिलाओं और पुरुषों में समानता दिलाने के लिए जागरूकता लाना तथा उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करना है। आज भी विश्व के अनेक देशों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त नहीं हैं। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं को समाज की कुरीतियों से बाहर निकालकर उसे विकसित करने का सुअवसर प्रदान करता है।
सृष्टि में नारी शक्ति के इन तमाम श्रेष्ठ गुणों के कारण प्राचीन समय में परिवार की मुखिया माता रुपी स्त्री ही हुआ करती थी,लेकिन आज बदलते समय में आज परिवार का मुखिया पुरुष बना दिया है। इसके साथ ही आज दुनियाभर में महिलाओं के ऊपर अनेक प्रकार के अत्याचार,उत्पीड़न बढ़ते जा रहे हैं। इन अत्याचार,उत्पीड़नों ने महिलाओं को संकुचित बनाकर रख दिया है। महिलाओं की सहजता, क्षमाशीलता और सहनशीलता को उनकी कमजोरी समझा जा रहा है,जबकि बदले परिवेश में पुरुषों से महिलाएं किसी भी तरह कमजोर नहीं हैं। हालांकि नारी अपने आत्मविश्वास के बल पर अब दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हो रही है।
अगर देखा जाए तो बदले परिवेश में आज की नारी सामाजिक,राजनैतिक,सांस्कृतिक,आर्थिक सभी क्षेत्रों में पूर्णरूप से आत्मनिर्भर हुई है तथा शिक्षा में महिलाओं के बढ़ते प्रभाव के कारण पहले की तुलना में नारी ज्यादा सशक्त,जागरूक हुई है।शिक्षा के क्षेत्र में नारियों के बढ़ते प्रभाव के कारण नारी न केवल आत्मनिर्भर हुई है,बल्कि रचनात्मकता में भी वे पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्रों में अपनी बुलंदी का झंडा फहरा रही हैं।आज कोई सिर्फ यह कहकर उनके आत्मविश्वास को ठेस नहीं पहुंचा सकता है कि वह केवल नारी है। समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारी अपनी काबिलियत और साहस के दम पर वह कामयाबी की बुलंदियों को ही नहीं छू रही है,बल्कि आज वह ज्ञान-विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के बराबर कदम से कदम बढ़ा रही है। मुगलों के आक्रमण के समय से ही हम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्राक्रम से परिचित हैं। साथ ही इस आधुनिक भारत के युग में सरोजिनी नायडू,इन्द्रिरा गांधी,कल्पना चावला,मदर टेरेसा,बच्छेद्री पाल आदि महिलाओं ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति में भागीदार बनकर भारत की सर्वश्रेष्ठ महिलाओं में अपना स्थान बनाया है। उन्होंने ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठतम उपलब्धियों से भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का इतिहास बदला है। जिस कारण आज महिलाएं पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।
बीते वर्ष वैश्विक संक्रामक महामारी कोविड-19 के कहर से भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। इस महामारी के दौर में कोरोना योद्धाओं ने अग्रिम पंक्ति में खड़े रहकर मानवीय सेवा की एक अद्भुत मिसाल भी पेश की। इस मिशाल में इन कोरोना योद्धाओं के रुप में नारीशक्ति ने आगे बढ़कर अग्रिम मोर्चे पर खड़े होकर जो अभूतपूर्व सेवाएं देकर जिस प्रकार अपनी नेतृत्व क्षमता का विश्व स्वास्थ्य संगठन में अपना लोहा मनवाया उसमें भी हमारी मातृशक्ति का ही योगदान रहा। हम कह सकते हैं,कि भारतीय नारीशक्ति की कामयाबी के बिना श्रेष्ठ भारत के निर्माण की संकल्पना अधूरी सा लगती है।आज भारतीय महिलाएं समाज-संस्कृति,राजनीति हो या शिक्षा,साहित्य,उद्योग,खेल,सिनेमा, खेती-किसानी आदि अनेकों क्षेत्रों में अपना परचम लहराए हुए हैं। हमें अपने देश की इस आधी आबादी पर निश्चित रूप से गर्व होना चाहिए।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नारी को शिक्षा एवं सम्मान देने से ही मजबूत राष्ट्र और मजबूत समाज की कल्पना साकार की जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से भी इस बार के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को को मातृशक्ति के नेतृत्व को समर्पित किया है।