30 मई 1930 भारत के इतिहास में काला दिवस के रूप में अंकित किया जाता है। इस दिन उत्तराखंड के जनरल डायर, दीवान चक्रधर जुयाल ने यमुना घाटी के आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा कर जिस प्रकार से यमुना नदी को खून से लाल कर दिया था, वहां की जनता आज भी उस घटना को याद कर सिहर उठती है। उत्तराखंड के इतिहास से लेकर लोकगीतों में इसका सविस्तार विवरण मिल जाता है। इस घटना को इतिहास में तिलाड़ी काण्ड के नाम से जाना जाता है।
उस समय उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में टिहरी के राजा नरेंद्र शाह का शासन था और शेष उत्तराखंड ब्रिटिश शासन के अधीन था। लेकिन ब्रिटिश शासकों की नजर टिहरी शासक पर लगी रहती थी और इसीलिए उन्होंने उस समय के विख्यात वजीर पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी और दीवान श्री भवानी दत्त उनियाल जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचकर अपने पिछलग्गू चक्रधर जुयाल को दीवान बनवा दिया। चक्रधर धूर्त व्यक्ति था। वह जनता के साथ अन्याय करता था। उसने पशुओं के जंगल में चरने और लकड़ियां काटने पर भी कई सारे कर लगा दिए, जिसके विरोध में वहां की जनता ने वर्तमान उत्तरकाशी जिला के बड़कोट क्षेत्र में आंदोलन कर दिया। अब राजा को इसकी भनक न लग सके, इसलिए जब राजा टिहरी गढ़वाल से बाहर थे उस समय दीवान चक्रधर ने सैनिकों के साथ मिलकर व अपनी पिस्तौल से भी गोली चलाकर ग्रामीण जनता को लहूलुहान कर दिया। कहते हैं कि सौ से अधिक लोग तो गोलियों की बौछार से छलनी हो गए थे तथा कईयों ने यमुना नदी में कूदकर अपनी जान दे दी।
श्री विद्यासागर नौटियाल के उपन्यास यमुना के बागी बेटे में इसका सविस्तार वर्णन मिलता जाता है। हालांकि कहा जाता है कि जब राजा को सच्चाई पता चला तो उन्होंने एक दिन अपने दीवान से पूछा कि दीवान साहब यदि कोई व्यक्ति अपने राजा को अंधेरे में रखकर प्रजा के साथ अन्याय करे तो उसके साथ क्या करना चाहिए, तो दीवान चक्रधर जुयाल ने सुझाव दिया कि मान्यवर उसकी दोनों आंखें फोड़ देनी चाहिए। कहा जाता है कि राजा ने अपनी दोनों उंगलियों से उसी समय दीवान चक्रधर की दोनों आंखें फोड़ दी।
स्वतंत्रता के बाद टिहरी रियासत का भी भारत में विलय हो गया और पहले महाराजा मानवेंद्र शाह और अब उनकी बहू माला राज्यलक्ष्मी शाह टिहरी रियासत से सदैव सांसद चुने जाते रहे हैं। हमारा इतिहास में हमेशा राजा को ही अन्यायी बताया गया है, लेकिन कई बार तो देखा गया है कि राजा की क्रूरता से अधिक उसके मंत्री, संतरी व दीवान और सेनापतियों ने ही जिस प्रकार से आम जनता के साथ क्रूरता की हैं वह राजाओं के अध्यायों व अत्याचारों को काफी पीछे छोड़ देता है