देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा में बुधवार को समान  नागरिक संहिता विधेयक (uttarakhand Uniform Civil Code Bill) ध्वनिमत से पारित हो गया। बुधवार को सदन शुरू होने के बाद समान नागरिक संहिता विधेयक पर विधानसभा में चर्चा हुई वहीं, इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संबोधन हुआ।

मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सदन में इस विधेयक को पेश किया था। समान  नागरिक संहिता विधेयक के विधानसभा में पारित होने के बाद उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। गोवा में यूसीसी आजादी से पूर्व से ही लागू है। यूसीसी के उत्तराखंड में लागू होने के बाद यह एक मॉडल के रूप में देश के अन्य राज्यों में भी लागू किए जाने की संभावना है।

यूसीसी  में 392 धाराएं हैं, जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 है। विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। कुल 192 पृष्ठों के विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है।

विधेयक के पारित होने के बाद इसे राजभवन और फिर राष्ट्रपति भवन को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। जाति, धर्म व पंथ के रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ नहीं की गयी है। विधेयक में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को ही शामिल किया गया है। खासतौर पर विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्राविधान बनाए गए हैं, उनमें जाति, धर्म अथवा पंथ की परंपराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धार्मिक रीति-रिवाज जस के तस रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

विधेयक में 26 मार्च वर्ष 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण का प्रावधान। पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25 हजार रुपये का अर्थदंड का प्रावधान। पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे। विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष तय की गई है। महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं। हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त किया गया है। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी। कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा। एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा। पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी। संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे। जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा। नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा। टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे। किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है। समान नागरिक संहिता में गोद लेने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है।

लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा। युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे। लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे। लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे।