1 Aug 2025, Fri

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामाजिक रिश्तों की अहमियत

-कमल किशोर डुकलान ‘सरल’


वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से पोषित भारतीय संस्कृति में आज संयुक्त परिवार व्यवस्था टूट रही है जिस कारण आधुनिक समाज में हमारे रिश्ते नाते धीरे-धीरे अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं…..

वर्तमान समाज में मानवीय मूल्य तथा पारिवारिक भाव धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। ज़्यादातर अपने निहित स्वार्थों के लिए रिश्ते निभाने का प्रचलन आम होता जा रहा है,आजकल हर कोई अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से मिलना-जुलना तथा नाते- रिश्तेदारों का सम्मान करने का प्रचलन बढ़ रहा हैं,जबकि गरीब रिश्तेदारों से कतराते हैं। केवल स्वार्थ सिद्धि की अहमियत भर रह गई है।

अगर आज के आधुनिक जीवन का कोई सर्वाधिक उपयुक्त पर्याय है तो वो आत्मकेन्द्रित होता मनुष्य है। शहरों व महानगरों का समाज भी इस आत्मकेन्द्रित होती भावना से अछूता नहीं रहा। देखा जाएं तो मानव सभ्यता की सारी विकास यात्रा उसके नजदीकी रिश्तों-नातों एवं समाज से ही निर्मित हुई है। अगर मनुष्य अपने सुख-दुःख,जीने-मरने को मात्र अपने तक सीमित किये रहता तो उससे ना परिवार बनता ना समाज, ना ही राष्ट्र आज मनुष्य की रिश्ते- नाते उसकी ज़रूरत बनकर रह गये हैं। आज के अन्तराष्ट्रीय युग-संसार में जहाँ मनुष्य का जीवन और परिवेश संपन्न और विस्तृत हो रहा है वहीँ उसका व्यवहार अत्यंत सीमित और एकांगी होता चला जा रहा है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका रिश्ते-नाते निभाना सामाजिकता के नियम का अनिवार्य हिस्सा है।

मनुष्यता की जीवंतता के लिए रिश्ते-नातों को जीवित रखना ही होगा। किन्तु आज देखा जा रहा है कि दिन प्रतिदिन आवश्यकता और उपयोग के आधार पर बढ़ते संबंध विच्छेद के किस्से,विलुप्तप्राय होते संयुक्त परिवार और बेतरह बढ़ते वृद्धाश्रम एवं झूलाघर आज यही बयान करते हैं कि आधुनिक समाज में रिश्ते नाते धीरे-धीरे अपनी अहमियत खोते जा रहे हैं । वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से पोषित भारतीय संस्कृति आज अपने ही परिवार के सम्बन्धों से कटता जा रहा है रक्त सम्बन्धों से बने रिश्ते एक तरह के ऐसे रिश्ते हैं जो हमारे रक्त से बंधे होने से हमें जन्म के साथ हीं मिलते हैं इस तरह के रिश्तों पर हमारा कोई वश नहीं होता माता-पिता, भाई-बहन,चाचा-ताऊ, नाना-नानी इत्यादि। कई बार इस तरह के रिश्तों में मतभेद होने के बावजूद ये रिश्ते अटूट रहते हैं।

आज का विश्व कुछ सदियों पहले वाला एकाकी और एकांगी विश्व नहीं रहा। वैश्वीकरण के इस समय को अन्तराष्ट्रीय युग-संसार कहना आज के समय में ज्यादा उचित रहेगा। आज हमारा जीवन और परिवेश साधन संपन्न और विस्तृत हो गया है। आज अधिकांश व्यक्ति शिक्षित हैं और अपने जीविकोपार्जन के लिए घर-परिवार-समाज से दूर रहना सामान्य माना जाने लगा है । लम्बी दूरियों एवं अवकाश के अभाव में ऐसे लोगों के पास सारे के सारे सगे-सम्बन्धियों से मिलना-जुलना मुमकिन नहीं हो पाता।ऐसे में रिश्ते फ़ोन या ईमेल के सहारे बस जैसे-तैसे चल रहे हैं ।

मन पसंद के वे रिश्ते हैं,जो हम स्वयं अपनी मर्ज़ी से बनाते है। इसमें ना तो हमारी किसी प्रकार की मजबूरी होती है और ना हीं मन-पसंद के रिश्ते जबरन थोपे हुए होते हैं। ये रिश्ते अधिकतर ऐसे रिश्ते हैं जिनमें बनते-बिगड़ते में कोई समय नहीं लगता है। कई बार अपनी मर्ज़ी से बनाए गए ये रिश्ते आजीवन भी चलते हैं फ़िर भी इन रिश्तों में आत्मीयता समाप्त नहीं होती,तो कई बार बीच सफ़र में हीं इनमें दरारें पड़ जाती हैं। चूँकि ये रिश्ते हम स्वयं की मर्ज़ी से बनाते हैं इसलिए इससे मिलने वाली कड़वाहटों को भी हमें अकेले हीं झेलना पड़ता है ।

सामाजिक रीति-रिवाज़ों के अनुसार माता-पिता अथवा परिवार,गांव समाज से जुड़े हुए कुछ रिश्ते होते हैं जिनमें पति पत्नी के रिश्ते में सबसे अधिक चुनौतियाँ होती हैं। आजकल के भौतिकवाद में अधिकांशतःपति-पत्नी अर्थाेपार्जन के कारण दोनों ही कामकाजी होने से घर की जिम्मेदारी और ऑफिस का कार्यभार मिश्रित होकर तनाव के स्तर को उच्च बनाए रखता है। जो छोटी-छोटी बात पर एक-दूसरे के ऊपर हावी होना,क्रोध और चिड़चिड़ापन आदि आम बातें हो गई हैं। अगर परिवार में कोई सुलह-समझौता,बीच-बचाव करवाने वाला न हो तो ब्रेकअप और तलाक़ भी सामान्य-सी बात हो चली है। अगर किसी कारणवश संबंध आगे चलता भी है तो ष्इमोशनल ब्रेकअपष् होना तय सी बात हो गई है । इसके आलावा आजकल कुछ इन्टरनेट पर बनने वाले आभासी संसार के नए प्रकार के रिश्ते भी काफ़ी दिलचस्प होते हैं। जो फेसबुक के माध्यम से अनजान व्यक्तियों के बीच कभी-कभी परिचित रिश्तों से भी अधिक नजदीकियाँ बना देती हैं। कार्यक्षेत्र में साथ-साथ काम करते हुए कभी-कभार दो लोगों के बीच बेहद आत्मीय रिश्ते बन जाते हैं। और जब स्थान परिवर्तन तो ये रिश्ते समाप्त भी हो जाते हैं और कभी-कभी लम्बे समय तक भी साथ चलते हैं। खैर रिश्ता चाहे कोई भी हो वह टिकता केवल परस्पर आदर,स्नेह,विश्वास, आत्मीयता एवं प्रतिबद्धता की सतह पर हीं है।रिश्तों में अगर स्नेह-प्रेम की ऊष्मा और आदर-विश्वास की संजीवनी हो तो इसके रेशमी धागे में इतनी ताकत होती है कि यह दो विपरीत विचारधारा,दो विपरीत परिवेश वाले व्यक्तियों को भी अटूट मधुर बंधन में बाँध देती है।किन्तु आज के हाईटेक ज़माने की गति इतनी तेज़ है कि व्यक्ति के पास रिश्तों का आत्मीयतापूर्ण भाव को महसूस करने और उसे ख़ूबसूरती के साथ जीने का समय हीं नहीं है।

आधुनिक समय की भाग- दौड़ भरी ज़िंदगी के बीच रिश्तों को समझने,बातचीत करने का अवसर हीं नहीं मिलता ऐसे में रिश्तों का संतुलन बिगड़ जाता है और ग़लतफ़हमियाँ,क्रोध और फ्रस्ट्रेशन सर उठाने लगते हैं । सम्बन्धों में इस तरह की नकारात्मक भावनाओं का उत्पन्न होना इस बात का संकेत है कि रिश्तों के इस पड़ाव को आपके ध्यान, आपके केयर की ज़रूरत है। जो व्यक्ति समय रहते यह समझ गया उसके संबंध बच जाते हैं,अन्यथा सम्बन्धों को ध्वस्त होने में कोई समय नहीं लगता है।

आजकल की मूल समस्या यह है कि लोग दूसरे प्रेम पूर्वक व्यवहार तो चाहते हैं, किन्तु देना नहीं चाहते। दूसरों से उम्मीद तो करते हैं पर स्वयं उम्मीदों पर खरा उतरना ज़रूरी नहीं समझते।स्वयं तो अपेक्षाएँ रखते हैं पर दूसरा भी कुछ अपेक्षाएँ रखे यह उन्हें मंज़ूर नहीं । वैसे रिश्ता चाहे जन्म का हो या हमारी पसंद का ज़रूरत से ज्यादा अपेक्षाओं से भी रिश्तों का दम घुट जाता है ।
बदलते युग के साथ रिश्तों की परिभाषा चाहे बदल जाए, परन्तु रिश्तों की अहमियत आज भी उतनी हीं है जितनी पहले थी। यह ना कभी समाप्त हुई थी,और ना कभी समाप्त होगी । यह एक कटु सत्य है कि आजकल अधिकांश व्यक्तियों में सहनशीलता का घोर अभाव हो चला है।ऐसे में झुकना, सहना,समझौता करना,रिश्तों को जीवित रखने के लिए ख़ुशियों का परित्याग करना ये सब बीती बातें हो चुकीं हैं । रिश्ते नाते जिनके बगैर मनुष्य अधूरा है आज अपना महत्व और आत्मीय भाव खोते जा रहे हैं तो ऐसी परिस्थिति में मुझे तो यही लगता है कि आज के परिपेक्ष्य में रिश्ते-नाते निभाना मात्र एक मजबूरी बन के रह गयी है ।

बदलते युग के साथ रिश्तों की परिभाषा चाहे बदल जाए, पर रिश्तों की अहमियत आज भी उतनी हीं है । यह ना कभी ख़त्म हुई थी, ना कभी होगी । यह एक कटु सत्य है कि आजकल अधिकांश व्यक्तियों में सहनशीलता का घोर अभाव हो चला है । ऐसे में झुकना, सहना, समझौता करना, रिश्तों को जीवित रखने के लिए ख़ुशियों का परित्याग करना ये सब बीती बातें हो चुकीं हैं । रिश्ते नाते जिनके बगैर मनुष्य अधूरा है आज अपना महत्व और मिठास खोते जा रहे हैं तो ऐसी परिस्थिति में मुझे तो यही लगता है कि आज के परिपेक्ष्य में रिश्ते-नाते निभाना मात्र एक मजबूरी बन के रह गयी है।
-ग्रीनवैली गली नं-5 सुमन नगर,सलेमपुर,बहादराबाद (हरिद्वार)

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