देहरादून। भले ही सूबे की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा गैरसैंण को सूबे की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दो राजधानी के फार्मूले पर मुहर लगा दी गयी हो लेकिन उनकी इस पहल के साथ ही अब स्थायी राजधानी के मुद्दे पर महाभारत शुरू हो गयी है।
विशुद्ध रूप से सियासी नफा नुकसान का मुद्दा बन चुके इस राजधानी के मुद्दे पर भले ही किसी भी दल या सरकार द्वारा कोई भी फैसला लिया जाये उस पर सियासी घमासान होना तय है। सीएम त्रिवेन्द्र के इस फैसले का अब चैतरफा विरोध शुरू हो चुका है विरोध करने वालों का तर्क है कि कर्ज के बोझ में डूबा राज्य न तो कर्मचारियों को वेतन समय पर दे पा रहा है और न एक राजधानी के खर्चे वहन कर पा रहा है। फिर दो दो राजधानियों का खर्च वह कैसे उठायेगा। वहीं दूसरा सवाल है कि जब दून और गैरसैंण शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन राजधानी है तो स्थायी राजधानी कहां। विरोध का तीसरा पक्ष है कि आंदोलनकारियों और पहाड़वासियों की वह जनभावनाएं कहां हंै जिसमें पहाड़ की राजधानी पहाड़ में होने की बात कही जाती रही है। सीएम के निर्णय से राज्य आंदोलनकारी तो नाखुश हंै ही साथ ही कांग्रेस और यूकेडी भी इस फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे गलत फैसला बता रहे हंै। उनका साफ ऐलान है कि सत्ता में आते ही वह गैरसैंण को सूबेे की स्थायी और पूर्णकालिक राजधानी घोषित कर देंगे। लेकिन भाजपा की वर्तमान सरकार द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा को जनभावनाओं के अनुकूल बताया जा रहा है। सरकार ने इस घोषणा में एक संतुलन साधने की कोशिश की है। न मैदान को निराश किया गया है और न पहाड़ की उपेक्षा की गयी है। सरकार के इस निर्णय से कांग्रेस स्वंय को ठगा सा महसूस कर रही है। उसका कहना है कि गैरसैंण में राजधानी की आधारशिला कांग्रेस ने रखी, ढांचागत विकास के काम कांग्रेस ने किये लेकिन श्रेय भाजपा ले उड़ी। अब देखना है कि विपक्षी दल आगे क्या रणनीति बनाते हंै।