देहरादून। उत्तराखंड की ग्रीष्मकाल की राजधानी गैरसैंण बनानेे की मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा विधानसभा में घोषणा की गयी है जबकि राजधानी चयन आयोग ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में गैरसैंण को 17 आधारों पर राजधानी के लिये अनुपयुक्त बताया है। इन आधारों के विपरीत कोई तथ्य प्रस्तुत किये बिना तथा दीक्षित आयोग की रिपोर्ट न मानने का कोई कारण दिये बिना उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण बनाना जनहित विरोधी व अवैध है।
गैरसैंण को राजधानी बनाने के पीछे सबसे बड़ा तर्क इसके समर्थन में जनभावनायें होना दिया जा रहा है जबकि दीक्षित आयोग को प्राप्त कुल सुझावों में से आधे से भी कम सुझाव गैरसैंण के पक्ष में मिले है ऐसी स्थििति में इसके साथ जनमत कैसे कहा जा सकता है। सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट की अपील पर उत्तराखंड सूचना आयोग के आदेश पर राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट उत्तराखंड की वेबसाइट पर सार्वजनिक की गयी है तथा श्री नदीम को इसी प्रति भी उपलब्ध करायी गयी है।
श्री नदीम को उपलब्ध करायी गयी उत्तराखंड राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आयोग को कुल 268 सुझाव प्राप्त हुये थे। इसमें 192 व्यक्तियों के, 49 संस्थाओं के तथा 15 राजनीतिक दल व संगठन के सुझाव शामिल हैं। लेकिन किसी भी स्थान के पक्ष में सुझावों का बहुमत नहीं था। गैरसैंण के पक्ष में केवल 126 सुझाव प्राप्त हुये जिसमें 86 व्यक्तियों के, 32 संस्थाओं तथा 06 राजनीतिक संगठनों व दलों के सुझाव शामिल है। यह सही है कि सर्वाधिक सुझाव गैरसैंण के पक्ष में प्राप्त हुये लेकिन कुल सुझावों के आधे भी इसके पक्ष में प्राप्त नहीं हुये। इसलिये जनमत इसके पक्ष में नहीं कहा जा सकता। दूसरे शब्दों में आधे से अधिक सुझावोें ने गैरसैंण का समर्थन नहीं किया हैै। इसलिये जनमत गैरसैंण के विरूद्ध है।
राजधानी चयन आयोग ने गैरसैैंण में राजधानी न बनाने के लिये 17 आधार दिये है जबकि पक्ष में केवल 4 आधार ही दिये हैै। पक्ष में दिये आधारों में जिले से पहंुच, स्थानीय लोगों को कम से कम हटाने की आवश्यकता, भौगोलिक दुष्टि से मध्य में स्थिित तथा राजधानी चयन आयोग द्वारा लिये गये जनमत में सर्वाधिक मत शामिल है। लेकिन विरोध में दिये गये 17 आधारों में पहुंच की अत्याधिक खराब स्थििति, (रेल,बस, हवाई सेवा का अभाव) सम्पर्क की खराब स्थििति, राष्ट्रीय राजधानी से अधिक दूरी, वर्तमान तथा भविष्य के विकास के लिये अपर्याप्त भूमि, अपर्याप्त जल, भौतिक विकास के लिये मिट्टी का अनुकूल न होना, स्लोप्स का अधिक होना, फाल्टाना व सैस्मिक जोन होना, बाढ़ व भूकम्प की संभावनाओं वाला क्षेत्र होना, खराब मौसम (वर्षा, बर्फबारी), मूलभूत सुविधाओं का अभाव (बिजली, सड़क, पानी), आवश्यक भौैतिक सुविधाओं का अभाव (बिजली, पानी, सड़क, सीवेज, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि), जनमत (अरिजिता बंसल द्वारा लिया गया) का विरूद्ध होना, पर्यावरण पर नकरात्मक प्रभाव, सुरक्षित वनों तथा सुरक्षित वन्य जीवों को (वाइल्ड लाइफ सैक्चरी) को नुकसान, जनसंख्या के अनुसार मध्य में स्थिित न होना, अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के अत्यन्त करीब होने से असुरक्षित होना शामिल हैं।
गैरसैंण को राजधानी बनाने के विरूद्ध जो आधार राजधानी स्थल चयन आयोग ने दिये हैं उसे आसानी से नकारा नहीं जा सकता है। एक छोेटे से राज्य की दो राजधानियां बनाने का तर्क तो केवल गलत ही नहीं बल्कि जनता पर दोहरा भार डालने वाला है। देश में जिन भी राज्यों की दो राजधानियां है वहां उसके पीछे बहुत बड़े कारण है। प्रदेश की दो राजधानियांे से जहां पर्यावरण व वनों को नुकसान होगा वहीं दोनों राजधानियों में कार्य करने के लिये कर्मचारियों, अधिकारियों के परिवहन पर अत्याधिक धन की फिजूलखर्ची होगी जिससे जनता को कुछ नहीं मिलेगा। पूर्व में जब उत्तराखंड गठन का प्रस्ताव रखा गया था तक उसमें केवल पर्वतीय क्षेत्र शामिल होना था तब गैरसैंण को राजधानी बनाना कुछ हद ठीक हो सकता था लेकिन अब जब प्रदेश की 70 प्रतिशत जनसंख्या प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में नहीं रहती है तो इसकी राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में बनाना जनता पर अत्याचार ही कहा जायेगा। गैरसैंण में राजधानी बनाने से उस क्षेत्र के पर्यटन, वन, जड़ी बूटी विकास कर संभावनायें तोे समाप्त होगी ही वहीं कहा भी कंक्रीट के जंगल बन जायेंगे अभी तक पर्वतीय जनता बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं के कारण पहाड़ों की घाटियों को जल सागर बनाने की विडम्बना ही झेल रही है, फिर इन कंक्रीट के जंगलों के कारण जो पर्यावरण को नुकसान होगा उसकी विडम्बना भी झेेलनी पड़ेगी। कुल मिलाकर भ्रष्ट अधिकारियों , ठेकेदारों के अतिरिक्त किसी को कोई लाभ नहीं होगा।