-कमल किशोर डुकलान (हरिद्वार)
अखाड़ों की पेशवाई का आशय ऐसी शोभायात्रा से है, जिसमें अखाड़ों के आचार्य,पीठाधीश्वर एवं नागा संन्यासियों का कारवां शाही रूप में राजा-महाराजों की तरह हाथी, घोड़ों और रथों से बने भव्य सिंहासनों पर बैठकर कुंभ क्षेत्र में बने अपने-अपने मठों में प्रवेश करता हैं….
मायापुरी हरिद्वार में कुंभ महापर्व की रौनक शुरू हो गई है पूरा कुंभ क्षेत्र सजने लगा है। अखाड़ों की पेशवाईयों का सिलसिला शुरू हो गया। एक प्रकार से कुंभ नगरी देवलोक जैसी नजर आने लगी है। दरअसल किसी भी अखाड़ें के लिए पेशवाई बहुत खास होती है।अखाड़ों के नागा संन्यासियों की पेशवाई का आशय ऐसी शोभायात्रा से है, जिसमें राजसी शानो- शौकत के साथ अखाड़ों के आचार्य,पीठाधीश्वर,शंकराचार्य,महामंडलेश्वर,साधु-संत और नागा संन्यासियों का कारवां शाही रूप में राजा-महाराजों की तरह हाथी,घोड़ों और रथों से बने भव्य सिंहासनों पर बैठकर कुंभ क्षेत्र में बने अपने-अपने मठों में प्रवेश करते हैं। और श्रद्धालु, दर्शनार्थियों द्वारा पेशवाई का स्वागत एवं सम्मान किया जाता है।
आजादी से पहले जब देश अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था और धर्म संस्कृति पर खतरे मंडरा रहे थे,तब राजा महाराजों ने धर्म,संस्कृति और देश की रक्ष के लिए साधु संतों से आग्रह किया था।संतों ने धर्म प्रचार के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्रों द्वारा इस देश और धर्म संस्कृति की रक्षा की थी। तभी से जहां भी कुंभ पर्व होता था वहां साधु संतों को राजा महाराजा अपने रथ हाथी घोड़ों से बने सिंहासनों पर बैठाकर शाही रूप में कुंभ में पेश कराते थे।
चौदहवीं शताब्दी में राजाओं को पेशवा भी कहा जाता था,इसलिए संतों के कुंभ में प्रवेश को पेशवाई कहा जाता है। अंग्रेजों ने भी पेशवाई का सम्मान किया है और ब्रिटेन की संसद में पेशवाई को लेकर बहस की गई और उन्होंने भी माना था कि अगर भारत पर राज करना है तो वहां की जन भावनाओं का ख्याल रखना होगा। क्योंकि प्राचीन काल से ही भारत की जन भावनाएं संतों के साथ जुड़ी हुई है।
पेशवाई शब्द फारसी शब्द है और इसका अर्थ होता है कि अपनी सेना और परंपराओं के साथ नगर में निकलना इसी को पेशवाई कहां जाता है। एक प्रकार से यह अनोखी परम्परा है। पेशवाई को भारतीय परंपरा में इसको शुभ माना जाता है।अखाड़ों द्वारा आयोजित पेशवाई में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के विविध देखने को मिलते हैं। इससे समस्त श्रद्धालु,देशवासियों में अध्यात्म के साथ-साथ शौर्य ,वीरता और देशभक्ति का जज्बा पैदा होता है।आस्था, सौहार्द और उत्तराखंड की संस्कृति की झलक भी पेशवाई में देखने को मिलती है।