समाज में मानव की भौतिक उपस्थिति के अन्य पहलुओं की तरह एक सभ्य संस्कृति के अनुरूप पहनावे का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। भारतीय संस्कृति के अनुरूप सभ्य पहनावा प्रत्येक मानव के व्यक्तित्व संवारने में अहम भूमिका होती है। हमारी वेशभूषा प्राचीन काल से ही समाज में विशेष भूमिका अदा करती आ रही है। जिस प्रकार राजा और उसके दरबारियों की वेशभूषा विशेष होती थी। जो लोग साधारण थे उनकी आभा साधारण होती थी।

वेशभूषा हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमारे बारे में नहीं बल्कि हमारे पारिवारिक संस्कारों के बारे में भी बताती है। वेशभूषा के माध्यम से हमें पता चलता है कि हम कैसे परिवार से सम्बन्ध रखते हैं और हमारे परिवार का स्तर क्या है। वेशभूषा का चयन करने में परिवार की प्रथम शिक्षिका अयाज में हमारा आइकन मां की अहम भूमिका होती है। हमारा पहनावा हमारी शिक्षा,अनुशासन और शिष्टाचार के साथ समाज की दशा और दिशा का पता चलता है। हमें समाज के प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते नई पीढ़ी को सभ्य समाज में आगे लाना है तो उसके लिए हमें चिंतन करने की जरूरत है। एक सैनिक अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी उस वर्दी को नहीं छोड़ता जिसमें उसने सेवाएं दीं। विद्यालयों और कारपोरेट क्षेत्रों में वर्दी की अनिवार्यता समानता का आभास कराती है। उसी प्रकार सामान्य दिनचर्या में भी वर्दी का आइकन बरकरार रखना चाहिए।

विगत दिन देहरादून राजधानी में बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक कार्यशाला के उद्घाटन के अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने हमारी भावी पीढ़ी के संस्कार पक्ष पर अपनी बात रखते हुए कहां था कि पश्चिमी देश भारतीय संस्कृति की महानता को समझ चुके हैं। जिस कारण से वे देश हमारी संस्कृति, हमारे खान-पान और यहां की वेशभूषा को अपना रहे हैं।लेकिन चिंता की बात ये है कि हमारी जिन बातों से आज पश्चिमी देश प्रभावित हो रहे हैं दुर्भाग्य से हमारे देश की युवा पीढ़ी संस्कृति,खान-पान,और पहनावे में पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित हो रही हैं। बात भी सही है एक श्रेष्ठ भारत के निर्माण में हमारी युवा पीढ़ी को तमाम विकृतियों से बचना होगा तभी हमारी युवा पीढ़ी संस्कारित होगी और जीवन के हर क्षेत्र में सफल होगी। निश्चित रुप से फटी हुई जींस जैसा पहनावा हमारे वैभव और सनातन संस्कृति के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश है जिसे भारतीय सिनेमा और हमारी हीन मानसिकता जो कि पश्चिमोन्मुखी रही है जिसके सहारे हमारी नव दुर्गा रुपी आदि शक्ति युवा पीढ़ी पर थोपा जा रहा है। अगर देखा जाए तो मुख्यमंत्री के बयान पर आधुनिक अभिभावकों की खुले विचार नहीं अपितु सनातन वैभवशाली संस्कृति के प्रति एक प्रकार से अनभिज्ञता ही है।

एक प्रकार से अच्छे सभ्य वेशभूषा पहनने से समाज में हमारा आत्मविश्वास ही बढ़ता है। क्योंकि इससे हमारे काम व सोच पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारी अच्छी सोच और आत्मविश्वास के कारण ही हम जिंदगी के हर लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। आजकल हमारा समाज हमारे बच्चों के लिए प्रतिस्पर्धा का विषय बन गया है। ऐसा लगता है कि उनकी वेशभूषा प्रतिदिन उनपर क्या प्रभाव डाल रही है।

समाज में विशेषकर बच्चों में पहनावे को लेकर काफी बदलाव आ रहा है। टीवी सीरियलों और फिल्मों के साथ खेलों में प्रसिद्ध शख्सियतों की तरह दिखना चाहता है। अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए पारिवारिक और सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन किए बिना ही जिद कर बैठते हैं। कलाकारों और खिलाड़ियों के जैसा दिखने के चक्कर में पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी ख्याल नहीं रखते। ऐसे में हमें विशेषकर माता पिता,शिक्षक और समाज के लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है। आज के बच्चे कम कीमती कपड़ों को छोड़कर फैशन को देखते हुए महंगे कपड़ों को ज्यादा महत्व देते हैं। बच्चों में इस तरह की भावनाओं को सुधारने के लिए माता पिता,शिक्षक गण और समाज के नागरिकों को अहम भूमिका निभानी होगी।

बच्चों और युवा वर्ग में दूसरों से अच्छा और अपनी पसंद के कलाकार, खिलाड़ियों जैसे दिखने की चाह ज्यादा रहती है। टीवी और फिल्मों में दिखने वाले कलाकारों के पहनावे को देखकर आकर्षित होना स्वाभाविक है। सोशल साइट्स में बढ़ते फैशन के दौर में अभिभावकों को विशेष सावधानी सावधानी बरतने की जरूरत है। बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ पहनावे के प्रति भी जागरूक करने की जरूरत है। समाज में घटित हो रही आपराधिक घटनाओं के लिए कुछ हद तक हमारे बच्चों का पहनावा भी एक कारक बन रहा है। सभ्य समाज में सभ्य पोशाक भी व्यक्ति के व्यक्तित्व प्रभाव डालता है। विद्यार्थी के लिए जीवन में अध्यापक और माता पिता भगवान के रूप होते हैं। स्कूल पहनावा समानता का सूत्र माना जाता है। स्कूल पहनावे में न तो गरीब अमीर का भेद होता है और न ही विद्यार्थियों में हीन भावना आती है। सभ्य पहनावा न केवल एकता का प्रतीक माना जाता है बल्कि व्यक्ति के व्यक्तित्व से दूसरों को भी प्रभावित करता है।

बदले परिवेश में अगर बच्चों को सभ्य वेशभूषा के लिए प्रेरित करना है तो शिक्षक और घर के बड़े लोगों को भी आदर्श बनना होगा। एक शिक्षक की पहचान उसके बौद्धिक ज्ञान के साथ उसका व्यक्तित्व के साथ पहनावे के कारण समाज में अलग करती है। शिक्षकों के पहनावे की बच्चे घर और साथियों के बीच चर्चा करते हैं। अच्छे व्यक्तित्व वाला शिक्षक होगा तो बच्चे न केवल प्रभावित होंगे बल्कि उनके जैसा बनने के लिए अनुसरण भी करेंगे। छोटे बच्चों में यह परंपरा अधिक रहती है। एक शिक्षाविद होने के नाते समाज में उसका व्यक्तित्व आदर्श बनता है। सामाजिक प्राणी होने के नाते हमारा पहनावा हमारी संस्कृति को दर्शाता है। विविधताओं में एकता और अनेकता में एकता का संदेश देने वाले इस देश की पहचान हमारा पहनावा है। अलग अलग देशों के पहनावे अलग हैं। हमारी संस्कृति, वेशभूषा,त्यौहार में पहनावे अलग अलग हैं। हमारे पहनावे की चर्चा विदेशों में होती है। पश्चिमी संस्कृति का पहनावा हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाता। इसमें सभ्यता का अभाव देखने को मिलता है। हमें सभ्य समाज के निर्माण के लिए हमारी युवा पीढ़ी को जागरूक और आदर्श उदाहरण बनकर प्रेरित करना होगा।
कमल किशोर डुकलान
रुड़की (हरिद्वार)