आये दिन वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की पाबंदी की जरूरत है। फिर भी समय रहते राज्य सरकारों को दीपावली के समय पर बड़े पैमाने पर चलने वाला पटाखा उद्योग का ध्यान भी रखना चाहिए……

दीपावली की पहचान बन चुके पटाखों का शायद विदाई का वक्त अब आ गया है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र में तो कम से कम इस दीपावली पर पटाखों की न तो आवाज सुनाई देगी और न ही चकाचौंध दिखाई देगी। राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा यह पाबंदी 30 नवंबर तक जारी रहेगी। यानी इस बीच दीपावली, छठ और गुरु पर्व जैसे कई पर्व आ रहे हैं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा यह पाबंदी सिर्फ दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों के लिए ही नहीं है, बल्कि उन सभी क्षेत्रों के लिए है, जहां हवा की गुणवत्ता बहुत खराब है। जिन शहरों में हवा की गुणवत्ता मध्यम दर्जे की है, वहां पटाखे चलाने की छूट सिर्फ दो घंटे ही है। प्राधिकरण ने इसका भी समय निर्धारित किया है। और कहां कि लोग कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल करें। राजधानी क्षेत्र दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को देखते हुए इस तरह की पाबंदी की जरूरत भी थी। यहां वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर को भी पार कर रहा है।वैसे देश के अन्य बड़े शहरों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। दिल्ली समेत कई राज्यों की सरकारें पहले ही पटाखों और आतिशबाजी पर पाबंदी लगाने की घोषणा कर चुकी हैं। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के फैसले ने पाबंदी के इस तर्क को और मजबूत कर दिया है।

दीपावली अब सिर्फ पांच दिन दूर है और इस लिहाज से यह दुरुस्त फैसला भी देर से आया हुआ फैसला ही लगेगा। इस समय तक पटाखे बाजारों में पहंुच चुके हैं और उनसे सज चुकी दुकानों की तस्वीरें भी अखबारों में छपने लगी हैं। ये दुकानें तो अब बंद हो जाएंगी,लेकिन मुमकिन है कि दुकानदार किसी न किसी रूप में इन्हें खपाने की कोशिश करेगा। देर से लगी पाबंदी अब प्रशासन के लिए अलग तरह की चुनौतियां भी पेश करेगी। यह समस्या हर साल इसी तरह से आती है और पाबंदी के बावजूद हर बार दीपावली की रात रह-रहकर पटाखों की आवाज सुनाई देती है। पाबंदियों को कड़ाई से लागू करना चाहिए। ऐसे फैसले अगर समय से आ जाएं, तो बहुत सारी चीजों से बचा जा सकता है।

इसके साथ ही ग्रीन पटाखों की चर्चा भी जरूरी है। पिछले काफी समय से ऐसे पटाखों की बहुत चर्चा रही है, जिनसे परंपरागत पटाखों के मुकाबले प्रदूषण कम होता है। प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे राज्यों की सरकारें ऐसे पटाखों के इस्तेमाल की बार-बार अपील करती भी दिखाई देती हैं। हालांकि, बहुत से लोगों का अनुभव यही है कि चर्चा के बावजूद इस तरह के पटाखे बाजार में आसानी से नहीं मिलते। एक शिकायत यह भी है कि ऐसे पटाखे परंपरागत पटाखों के मुकाबले महंगे और कम आकर्षक वाले होते हैं। जब तक एक साथ दोनों ही तरह के पटाखे बाजार में उपलब्ध न हो जाएं, ग्रीन पटाखे बाजार में अपनी पकड़ नहीं बना सकेंगे।ऐसे में दीपावली के समय पर पूरे पटाखा उद्योग पर एक साथ पाबंदी लगाना शायद उचित नहीं है, लेकिन फिर भी प्रदूषण फैलाने वाले परंपरागत पटाखे बनाने वाले उद्योगों पर सख्ती से पाबंदी लगाई जानी चाहिए।ऑटोमोबाइल क्षेत्र में इस तरह की पाबंदियां लगाने में हम प्रदूषण मुक्त भी रहेंगे। कुछ ऐसी प्रदूषण मुक्त गाड़ियां भी आ रही हैं, जो पहले से कम प्रदूषण करती हैं। अगर यह काम गाड़ियों के मामले में किया जा सकता है, तो पटाखों के मामले में क्यों नहीं हो सकता?

कमल किशोर डुकलान, रूड़की (हरिद्वार)