…कोरोना काल में राज्य के रिवर्स प्रवासियों के लिए रोजगार के संसाधन को गठित समिति ने जो आख्या राज्य सरकार को सौंपी है, उस आख्या में समिति ने संभावना जताई है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी देश के अन्य हिस्सों में रह रहे जो प्रवासी अपने गांव लौट रहे हैं, उनमें फिलहाल जो प्रवासी लौटे हैं उनमें 65 फीसद लोग विभिन्न राज्यों और पांच फीसद लोग विदेश से लौटे हैं। समिति ने दावा किया है कि इनमें से 30 फीसदी लोगों ने लॉकडाउन खुलने और स्थिति सामान्य होने के बाद गांव में ही रुकने की इच्छा जताई है…
उत्तराखंड देवभूमि के साथ-साथ सैन्य पृष्ठभूमि का प्रदेश है। यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां का हर परिवार से एक सेना में जवान होने के साथ-साथ यहां की बहुत बड़ी आबादी रोजगार के लिए देश और विदेशों में प्रवास पर है।
राज्य बनने के बाद यहां रोजगार के अपेक्षित साधन उपलब्ध न होने के कारण पलायन से अब तक करीब 17,000 गांव पूरी तरह जन-शून्य हो चुके हैं और स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार अनुपलब्धता के कारण लगातार पलायन बदस्तूर जारी है,
लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद स्थिति बदली हुई नजर आ रही है। गांव को छोड़ शहर में रह रहे लोग कोरोना के कारण बदली परिस्थितियों के बाद अपने मूल गाँव की ओर रुख कर रहैं हैं, जिसके चलते राज्य बनने के बाद विकास के अभाव में पूरी तरह से शून्य हो चुके गांव प्रवासियों के रिवर्स पलायन से पुनः गुलजार होने लगे हैं। जिन घरों में वर्षों से ताले लटके हुए थे,उनके किवाड़ खुल चुके हैं और वापस लौटे प्रवासी अपने खण्डर घरों को सजाने-संवारने में जुटे हैं। अगर कुछ अपवाद छोड़ दें तो पहाड़ में रह रहे लोग भी प्रवासियों की भरपूर मदद कर रहे हैं। इसकी एक झलक पौड़ी जिले के सुदूरवर्ती गांवों में देखी जा सकती है। यहां वीरान घरों के गुलजार होने से सबसे ज्यादा खुश वे ग्रामीण हैं, जो पहाड़ की विकटता में जीवन यापन करते आ रहे हैं। अब वे रिवर्स प्रवासियों के साथ मिलजुलकर गांवों को संवारने का सपना संजोये हैं। अगर उत्तरकाशी जिले के चिन्यालीसौड़ ब्लॉक के सुदूरवर्ती गांव गढ़वालगाड की बात करें तो इस कोरोना काल में यहां के ग्रामीणों और प्रवासियों के बीच सामूहिकता का भाव देखते ही बनता है। एक ओर गांव लौटे प्रवासी अपने खंडहर घरों को संवारने के साथ बंजर खेतों को आबाद करने में जुटे हैं, तो वहीं ग्राम के जनप्रतिनिधियों समेत अन्य ग्रामीण रिवर्स प्रवासियों की मदद में जुटे हैं।
राज्य के जिन जिलों में ये प्रवासी लौटे हैं उनमें पौड़ी, अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, टिहरी, उत्तरकाशी,बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, नैनीताल और चमोली शामिल हैं। पलायन आयोग कोरोना काल में वापस लौटी इस मानव संसाधन को प्रदेश में ही रोकने एवं उनके लिए रोजगार के साधन जुटाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण भी करा रहा है। राज्य सरकार ने आजीविका के संसाधनों में वृद्धि के उपाय सुझाने के लिए राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त सचिवों की एक समिति गठित का गठन किया है। यह समिति रिवर्स प्रवासियों का सर्वेक्षण कर यह पता लगायेगी कि ये लोग किन परिस्थितियों में पलायन को मजबूर हुए। समिति राज्य सरकार को यह भी सुझाव देगी कि पलायन पर आमादा इन लोगों को आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन की दिशा में इनके मूल गांवों में ही खेती-किसानी, पर्यटन व्यवसाय, होटल, होम स्टे समेत रोजगार के अनेक नए अवसरों का लाभ देकर इन्हें प्रदेश में ही योगदान देने के लिए किस तरह प्रेरित किया जाए।
हालांकि जो प्रवासी वापस लौटे हैं, वे राज्य गठन के बाद पलायन कर चुके करीब 15 लाख लोगों की आबादी का महज एक छोटा-सा हिस्सा हैं। कोरोना काल में राज्य के रिवर्स प्रवासियों के लिए रोजगार के संसाधन को गठित समिति ने जो आख्या राज्य सरकार को सौंपी है, उस आख्या में समिति ने संभावना जताई है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी देश के अन्य हिस्सों में रह रहे जो प्रवासी अपने गांव लौट रहे हैं, उनमें फिलहाल जो प्रवासी लौटे हैं उनमें 65 फीसद लोग विभिन्न राज्यों और पांच फीसद लोग विदेश से लौटे हैं। समिति ने दावा किया है कि इनमें से 30 फीसदी  लोगों ने लॉकडाउन खुलने और स्थिति सामान्य होने के बाद गांव में ही रुकने की इच्छा जताई है।
रिवर्स प्रवासियों के रोजगार के लिए बनी सेवानिवृत्त पूर्व की सचिवों की समिति मुताबिक जो आख्या राज्य सरकार को सौंपी है उसमें विस्तार से जानकारी देते हुए यह बताया गया है कि कोरोना काल में रिवर्स पलायन से बाद पहाड़ में प्रतिव्यक्ति आय में भारी कमी का अनुमान लगाया गया है। रिवर्स पलायन के बाद स्थितियां बदली हैं. राज्य में पर्यटन और तीर्थाटन से होने वाली आय पर भारी असर पड़ा है, तो वेलनेस सेक्टर का भी प्रभावित हुआ है। इसे देखते हुए प्रवासियों के आर्थिक पुनर्वास के अभियान को चलाने की जरूरत है। परन्तु समिति का कहना है कि ”राज्य से बाहर गए लोगों की संख्या के अनुपात में रिवर्स पलायन कर वापस लौटे लोगों की संख्या इतनी कम है कि यह अनुमान गलत है कि राज्य की प्रतिव्यक्ति आय और जीडीपी दर घट जाएगी.” हालांकि यह भी सच है कि राज्य के 40 फीसद से अधिक परिवारों की आर्थिकी आज भी मनीऑर्डर व्यवस्था पर टिकी है। आजीविका के लिए राज्य से बाहर गए ये लोग अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने परिजनों के भरण-पोषण के लिए भेजते थे। वैसे राज्य में पर्वतीय क्षेत्र की आबादी करीब 45 लाख है, ऐसे में करीब 60 हजार लोगों के आने से कोई विशेष अंतर आएगा, ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। जरूरी नहीं है कि माहौल सामान्य होने के बाद रिवर्स प्रवासी यहां टिके रहेंगे।
समिति की आख्या सरकार को मिलने के बाद बाद राज्य के मुख्यमंत्री का कहना है कि जो रिवर्स हुए प्रवासी गांव में रहकर कुछ करने के इच्छुक हैं, उन्हें सरकार पूरा सहयोग करेगी। प्रवासियों से सुझाव लेने के लिए एक फॉर्म भी भरवाया जा रहा है, जो इंटरनेट और सरकारी साइट्स पर उपलब्ध है। वहीं, उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड के चीफ एग्जीक्यूटिव रहे डॉ. कमल सिंह कहते हैं कि अगर सरकार प्रवासियों को भरोसा दिला सके कि सरकार उनको सहयोग करेगी तो गांवों में खाली पड़ी जमीन पर फिर से फसलें लहलहा सकती हैं। लोगों को औद्योगिकी के साथ ही ग्रामीण पर्यटन, साहसिक पर्यटन, एग्री पर्यटन आदि से भी जोड़ा जा सकता है। इससे पहाड़ पर आधुनिक तकनीकों द्वारा दुग्ध उत्पादन, पशुपालन और मछलीपालन जैसे कामों से उत्तराखंड का रिवर्स प्रवासी आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में स्वावलम्बी बन सकता है। इसके लिए सरकारी स्तर पर जो भी कार्ययोजना बनाई जा रही है,वह योजना सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्र के कार्यस्थल पर जाकर ही बनाई जा सकती है।

कमल किशोर डुकलान
प्रधानाचार्य, वासुदेव लाल मैथिल सरस्वती शिशु मंदिर, ब्रह्मपुर रुड़की (हरिद्वार)