-डा० राजेंद्र कुकसाल
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उत्तराखंड में शीतकाल में किसान भाई  जलवायु व समुद्र तल से ऊंचाई के आधार पर फल पौध का चयन करें। 1200-1600 मीटर के ऊचाई वाले स्थानों में आडू,प्लम, खुबानी का रोपण करें। 1600 मीटर से अधिक ऊचाई वाले स्थानों में आड़ू प्लम खुवानी नाशपाती व अखरोट के पौधे लगायें।
सेव उत्पादन के लिए राज्य के अधिक ऊंचाई वाले उत्तरी भाग जो 30 डिग्री उत्तरीय अक्षांश (Northern latitude) से ऊपर हों (जनपद उत्तरकाशी एवं टिहरी देहरादून के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र) जो हिमाचल प्रदेश के समीप है या 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र जो हिमालय के काफी नजदीक है तथा जिनका ढाल उत्तर दिशा को हो का ही चयन करें। उत्तराखंड भौगोलिक रुप से temperate zone नहींं है उत्तराखंड राज्य 28 – 31 डिग्री उत्तरीय अक्षांश पर है जबकि हिमाचल प्रदेश 30 – 33 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर है हिमाचल प्रदेश में जितनी ठंड 1500 मीटर पर पड़ती है उत्तराखंड में उतनी ही ठंड 2000 मीटर की ऊंचाई पर पड़ती है। यहां पर ऊचाई व बर्फीले पहाडों का लाभ लेते हैं। अब उतनी ठंड नहींं मिल पाती है जितनी सेव के पेडों के लिए आवश्यक है।
जहां पर पूर्व में सेव के बाग लगे हों उन स्थानों में नये सेव के बाग उगाने में सफलता नहीं मिलती है। उन स्थानों पर अखरोट व नाशपाती के फल पौधों का रोपण करें।

भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण-

फलदार पौधे पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में पैदा किये जा सकते हैं। परन्तु जीवाँशयुक्त बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है ।
जिस भूमि में उद्यान लगाना है उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा में कार्बन की मात्रा, पी.एच.मान (पावर औफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन) तथा चयनित भूमि में उपलव्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।
पी.एच. मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय)है तो मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलायें यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय) है, तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट (जिप्सम)। भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है साथ ही हानीकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अधिकतर फल पौधों के लिए 5.5 – 7.5 के पी. एच. मान की भूमि उपयुक्त रहती है ।

किस्मों का चयन-

आडू -अर्ली अलवर्टा,रेड जून, पैराडीलेक्स।
खुबानी–न्यू कैसल, रायल, चारमग्ज।
प्लम–सान्तारोजा, मैरी पोजा।
नाशपाती–रेड वार्टलेट, मैक्स रेड वार्टलेट।
अखरोट में प्रयास करें कि कलमी पौधे मिल जाए विभागों या परियोजनाओं में दिये गये अखरोट के बीजू पौधों की विश्वसनियता कम ही है।
सरकारी योजनाओं व परियोजनाओं में आड़ू व प्लम के पौधे सहारनपुर व मैदानी क्षेत्रों में स्थित पंजीकृत पौधशालाओं से क्रय किए जाते हैं मैदानी क्षेत्रों में इनके पौधे एक ही वर्ष में तैयार हो जाते हैं, जिससे इन के उत्पादन में लागत कम आती है। पहाड़ी क्षेत्रों में इन पौधों के रोपण के बाद मृत्यु दर बहुत अधिक होती है साथ ही ये लो चिलिंग किस्में हैं, जिनके फलों की बाजार में अपेक्षाकृत मांग कम रहती है।
सहारनपुर व अन्य मैदानी क्षेत्रों की पौधालयों में उगाये गये शीतकालीन फल पौधौं को पहाडी क्षेत्रों में कदापि न लगायें। शीतकालीन पौधे पहाड़ी क्षेत्रों की पंजीकृत पौधशालाओं से ही क्रय करें। बाग में 10% परागण किस्मों का रोपण अवश्य करें। बाग लगाने से पूर्व खेतों की सफाई करें तथा बाग रेखांकन (layout)कर ही लगायें।

पौधों का रोपण उचित दूरी पर करें-

आडू, प्लम खुवानी- 6×6 M
नाशपाती- 8×8M
अखरोट- 10×8M
पौधौ रोपण हेतु 1×1×1 मीटर के गड्डे खोदें।
शीतकाल में फल पौध रोपण हेतु गड्डे खोदने का यह उपयुक्त समय है। कुछ समय तक खुदे गडों को खुला छोड़ दें। पौध रोपण से पूर्व गढ्ढों को मिट्टी में खूब सड़ी गोबर की खाद मिलाकर भूमि की सतह से 2″ ऊपर तक भरें।
पौधों का रोपण गडें के बीचों बीच करें तथा उतनी ही गहराई में करें जितना पौधा नर्सरी में दबा था।
पौधे का कलम किया स्थान union भूमि से ऊपर रहना चाहिए। पौध लगाने के बाद उसके आस पास की मिट्टी को पैरों से खूब दबा देना चाहिए।
पौधे यदि दूर से लाये गये है तो लगाने से पूर्व उन्हें Trenching अर्थात गढ्ढे में कुछ समय के लिए दबा दें जिससे पूरे पौधे में पानी का संचार हो सके।
पौध लगाने से पूर्व पौधे को ग्राफ्ट से 45-50 सेन्टीमीटर पर अवश्य काट लें।
राज्य का अपना नर्सरी एक्ट लागू हो गया है जहां से भी पौधे लें कैस रसीद अवश्य प्राप्त करें, जिससे पौधों की गुणवत्ता कम पाये जाने पर आप अपना दावा कर सकें।