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✍️ डॉ. बसुन्धरा उपाध्याय,
असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी विभाग लक्ष्मण सिंह महर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ, उत्तराखंड।


हिंदी को आज हम विश्व नेतृत्व करने वाली भाषा के रूप में देखते हैं। संभावनाओं से भरी है अगर इसे बोलने की आधार पर देखते हैं, तो दुनिया की आबादी के हिसाब से हर छठा व्यक्ति हिंदी बोलता है और समझता है। इसने अपने अंक में कई भाषाओं को अपनाया है। हिंदी जन-जन की भाषा कही जाती है। हिंदी को समृद्ध करने में लोकभाषाओं का भी बहुत बड़ा योगदान है। महात्मा गांधी जी ने भी हिंदी को जनसंचार व संवाद की सबसे सशक्त भाषा माना है। आज हिंदी रोजगार की दृष्टि से भी समृद्ध हो रही है क्योंकि अधिकांश हिंदी भाषी लोग अपनी इच्छा हो या ना हो पर अंग्रेजी को अपना ही लेते थे पर आज ऐसा नहीं है हिंदी को भी लोग रोजगार का माध्यम बना रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि हिंदी बहुल क्षेत्र में बिना हिंदी को अपनाए बाज़ार व रोजगार में सेंध नहीं लगा सकते।
आज हिंदी में बात करने से गौरव और आत्मविश्वास बढ़ता है। यही कारण है कि यह भाषा लोकप्रिय हो रही है। यह समय के साथ चल रही है। परिवर्तन अवश्य हो रहे हैं परंतु चुनौतियां आज भी वही है। कहा जाता है अगर किसी की राष्ट्र को नष्ट करना हो तो सबसे पहले उसकी भाषा खत्म कर दीजिए राष्ट्र स्वयं ही नष्ट हो जाएगा। हमें अपनी भाषा का सम्मान करना चाहिए अगर हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? आज हम 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं पर भाषा की दृष्टि से देखा जाए तो आज भी हम स्वतंत्र नहीं हुए हैं। अंग्रेजी की जंजीरों ने आज भी हमें जकड़कर कर रखा है। मैं यह नहीं कहती कि अंग्रेजी अच्छी नहीं है पर उसे अपने सर का ताज नहीं बनाया जा सकता।
आप सभी को विदित है कि भारत को विश्व गुरु कहा गया तो क्या अंग्रेजी के कारण ? नहीं, बल्कि भारत या भारतीय विश्व में स्थान रखता है तो अपनी मौलिक भाषा के कारण। उसकी अपनी भाषा संस्कृति है जिसके बल पर विश्व गुरु बना। आज भारत के आध्यात्मिक पराकाष्ठा को पूरी दुनिया मानती है। उसे सभी अपना रहे हैं। यह सब हमारी अपनी भाषा का प्रभाव है। हिंदी के तत्सम शब्दों को किलिष्ट कहकर उसे नकार देते हैं तो क्या अंग्रेजी के शब्द सरल होते है ? नहीं, वह भी कठिन होते हैं। हिंदी हमारे अंदर रची बसी है। हिंदी भारत की ही नहीं बल्कि विश्व के बहुत बड़ा बड़े भूभाग की भाषा है। मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिनाड, टोवैगो, कम्बोडिया, सूरीनाम, पोलैंड, नेपाल आदि देशों में हिंदी बोली जाती है। दुनिया के 40 से भी अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन अध्यापन हो रहा है। अमेरिका के 24 के अतिरिक्त ओटावा (कनाडा) मास्को (रूस) ओस्लोर (नॉर्वे) टोक्यो (जापान), पेइचिंग (चीन), यारसा (पोलैंड), बर्लिन (जर्मनी), ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड), कोपेनहेगन (डेनमार्क, वेनिस (इटली), वुडापेस्ट (हंगरी) आदि विश्वविधालय में हिंदी का अध्ययन अध्यापन हो है। इन सभी में शोध कार्य भी हो रहे हैं। विश्व के अनेक देशों में हिंदी की पत्रिकाएँ भी प्रकाशित हो रही हैं। हिंदी हम भारतीयों की संवेदनाओं की संवाहिका के रूप में है इसलिए हिंदी का आकाश बहुत विशाल है। भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी और अधिक सशक्त एवं समृद्ध हो रही है।
यदि हिंदी को और समृद्ध हम बनाना चाहते हैं तो हमें हमारी भाषा की अस्मिता को बचाने के लिए संघर्ष करने की जगह उसे आत्मसात करना होगा और अपनी सोच में शामिल करना होगा। हिंदी के लिए हिंदी तो ठीक है लेकिन अनुदित सामग्रियों को और ज्यादा समृद्ध करना होगा। हिंदी के पाठ, पाठ्यचर्या और जीवन में हिंदी का उत्सर्ग जब जीवनचर्या बन जाएगा तो हिंदी के लिए कोई रोना रोने की आवश्यकता नहीं होगी। यह बहुत सुखद है कि संयुक्त राष्ट्र ने हिंदी को प्रमुखता से अपनाया है और अब बहुत सी सामग्री संयुक्त राष्ट्र के भी ई-प्लेटफॉर्म पर भी हमें मिल रही हैं।