नीति-नियंताओं को इससे अवगत होना चाहिए कि सेहतमंद नागरिक देश की सबसे बड़ी पूंजी है। मानकों की अनदेखी कर बने मिलावटी खाद्य पदार्थ देश को सेहतमंद बनाने के लक्ष्य में एक बड़ी बाधा हैं। यह बाधा दूर करने के लिए व्यापक स्तर पर अभियान छेड़ा जाना चाहिए…………
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से प्रायोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पिछले एक वर्ष से कोरोना संक्रमण का डटकर मुकाबला करने के बाद स्वास्थ्य के मोर्चे पर भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहने की जो जरूरत जताई, सेहतमंद लक्ष्य को पूरा करने के लिए सभी को आगे आना होगा। अब तक देखा गया है कि देश ने अन्य देशों की अपेक्षा कोरोना संकट का सही तरह सामना किया है और आगे भी गाइड लाइनों के साथ सतर्कता बरत रहा है। लेकिन केवल इससे ही यह साबित नहीं हो जाता कि स्वास्थ्य के मोर्चे पर देश में सब कुछ ठीक है। भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य महकमे में चाक-चौबंद व्यवस्थाएं होने के बाद भी यह सुनिश्चित नहीं होता कि देश को सेहतमंद बनाने का अभियान इतने से ही पूरा हो जाएगा। लोगों को सेहतमंद बनाने के लिए भारत सरकार बीमारियों को रोकने और गरीबों को सस्ता एवं प्रभावी इलाज देने समेत जिन मोर्चों पर काम कर रही है,उनमें राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र की भी सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए। यह समझने की भी आवश्यकता है,कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत कुछ करना शेष है। लोगों के स्वास्थ्य की चिंता इसलिए प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए, क्योंकि सेहतमंद नागरिक किसी भी देश के लिए एक बड़ी पूंजी होते हैं।
अगर देखा जाए तो भारत तमाम बीमारियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है। ऐसी पिछली कई बीमारियां रहीं हैं,जिन्होंने हमारे जागरूकता के अभाव में जीवनशैली को प्रभावित किया है। आज अगर सेहत के मोर्चे पर देश जिन तमाम समस्याओं से जूझ रहा है,उनमें पोषणयुक्त खाद्य पदार्थों की अनुपलब्धता या फिर उनके बारे में सही जानकारी न होना एक प्रमुख कारण भी है। गरीब तबका आज की मंहगाई में जैसे-तैसे अपना पेट तो अवश्य भर रहा है,लेकिन धन की कमी के कारण वह सही प्रोटीनयुक्त भोजन नहीं ले पाता। यह भी आवश्यक नहीं कि समर्थ वर्ग सेहत के अनुकूल आहार ले रहा हो। इस पर सोचा जाना चाहिए कि कमजोर और सक्षम,दोनों ही वर्गों को पर्याप्त पोषणयुक्त आहार कैसे मिले? यह सही है कि कुपोषण की समस्या से पार पाने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कई कार्यक्रम चल रहे हैं और इसकी भी चिंता की जा रही है कि दाल, सब्जियां, दूध आदि सभी लोगों और खासकर गरीबों को कैसे आसानी से प्रोटीनयुक्त आहार उपलब्ध हों, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत काम किया जाना है। इसके साथ खाद्य एवं पेय पदार्थों की गुणवत्ता के अभाव को भी दूर किया जाना बहुत आवश्यक है। हमारे नीति-नियंताओं को इससे अवगत होना चाहिए कि मिलावटी अथवा मानकों की अनदेखी कर तैयार किए जाने वाले खाद्य पदार्थ देश को सेहतमंद बनाने के लक्ष्य में एक बड़ी बाधा हैं। यह बाधा दूर करने के लिए कोई अभियान छेड़ा जाना चाहिए।
कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)