12 Mar 2025, Wed

संयुक्त राष्ट्र में भारत के अधिकारों की जोरदार पैरवी



भारत वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखता है, जो कि संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य से तनिक भी अलग नहीं है। हम जन कल्याण से जग कल्याण चाहते हैं। भारत हमेशा से ही दुनिया की शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है……..



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में देश-दुनिया का ध्यान खींचने वाले भाषण से अपनी सशक्त आवाज में विश्व के सामने जोरदार पैरवी की। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र संघ के मंच से जिस आत्मविश्वास से भारत के अधिकारों की बात रखी,वह अपने आप में अभूतपूर्व है। मोदी ने कोरोना के इस संकट काल में जिस अंदाज में संयुक्त राष्ट्र की अकर्मण्यता पर खरी-खरी सुनाई,उसने दुनिया के अनेक देशों की आवाज बुलंद की है। सच्चे अर्थों में यह 130 करोड़ भारतीयों की मजबूत आवाज बनकर उभरी। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि जिस संगठन के निर्माण और उसके मकसद को कामयाब बनाने में भारत ने हर कदम पर अपना भरपूर योगदान दिया हो, उसे संयुक्त राष्ट्र की संरचना और निर्णय-प्रक्रिया से कब तक बाहर रखा जा सकता है? मुझे लगता है कि आज तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इतनी सशक्त आवाज को शायद ही विश्व के सामने रखी होगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 75 साल पहले जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र का निर्माण हुआ, उस समय दुनिया एकदम अलग थी,उसके समीकरण, मुद्दे और जरुरते भी अलग थी, दुनिया दूसरे महायुद्ध की विभीषिका से उबर रही थी, नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु हमले से न सिर्फ जापान, बल्कि सारी दुनिया में डर का माहौल था।युद्ध के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई थी। दुनिया के मानचित्र से उपनिवेशवाद खत्म हो रहा था। भारत अपनी आजादी के लिए निर्णायक मोड़ पर खड़ा था। ऐसे समय संयुक्त राष्ट्र की जरूरतें एकदम अलग थीं। तब से अब तक दुनिया काफी बदल चुकी है। पिछले 75 वर्षों में हमने शीतयुद्ध का द्विध्रुवीय दौर भी देखा और उसका अवसान भी। भारत और चीन जैसे देशों का उभार भी देखा। सोवियत संघ का विघटन और जर्मनी का एकीकरण भी देखा। अनेक गुलाम देशों को आजाद होते भी देखा। इस कालखंड में अनेक देशों ने गृहयुद्ध झेले। दो या दो से अधिक देशों के बीच अनेक छोटे-बड़े युद्ध भी हुए।
1945 में जब संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ था, तब उसके चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले मात्र 50 देश थे। आज उनकी संख्या 193 हो गई है, लेकिन उसकी संरचना में कोई बदलाव नहीं आया है। सुरक्षा परिषद के वीटो शक्ति संपन्न पांच देश आज भी वही हैं, जो 1945 में थे। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पिछले सात महीनों से सारी दुनिया कोरोना की विभीषिका से जूझने पर भी संयुक्त राष्ट्र उदासीन है। उसका एक आनुषंगिक संगठन विश्व स्वास्थ्य संगठन कुछ भी निर्णय नहीं ले पा रहा है। आज वह विश्वास के संकट से गुजर रहा है। लंबे अरसे से उसमें सुधार का इंतजार हो रहा है। इसी कारण पीएम मोदी ने कहा कि कम से कम 75वें साल में संयुक्त राष्ट्र को ऐसे पुनर्गठित किये जाने की आवश्यकता है, जिससे दुनिया में संतुलन कायम हो सकें।
भारत के पक्ष को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर मजबूती से रखते हुए मोदी ने कहा कि हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखते हैं, जो कि संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य से तनिक भी अलग नहीं है। हम जन कल्याण से जग कल्याण चाहते हैं। भारत दुनिया की शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए हमेशा से ही प्रतिबद्ध है। साथ ही वह मानवता के दुश्मनों के समाप्ति के लिए भी संयुक्त राष्ट्र के साथ है। एक संस्थापक देश होने के नाते भारत संयुक्त राष्ट्र पर अगाध विश्वास रखता है। दुनिया में खुशहाली कायम करने के लिए जब भी जरूरत हुई, भारत ने हमेशा से ही आगे बढ़कर साथ दिया। संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर भारत ने कम से कम 50 बार अपनी शांति सेनाएं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भेजीं। दुनिया में भारतीय वीरों ने सबसे अधिक कुर्बानियां दीं हैं।
भारत ने पिछले छह वर्षों में जिस तरह विश्व में अपनी जगह बनाई और अपनी जनता के हित के लिए सैकड़ों जन-कल्याणकारी योजनाएं चलाई, उसकी झलक भी प्रधानमंत्री ने दुनिया के सामने रखी। देश की तरक्की के लिए प्रधानमंत्री ने रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म का नारा दिया। इसका आशय है-पहले सुधारों की परिकल्पना, उसके बाद उन्हें लागू करना और फिर बदलाव करना। भारत ने सात सालों में स्वच्छता के लिए देशव्यापी अभियान चलाया है। आज देश टीबी से लगभग मुक्त होने के रास्ते पर चल पड़ा है। करोड़ों लोग मुफ्त चिकित्सा का लाभ ले रहे हैं। गरीबों को सस्ती दरों पर औषधियां उपलब्ध कराई जा रही हैं। और भी तमाम तरह की देशव्यापी योजनाएं हैं जिनका अभी उल्लेख करना सम्भव नहीं है।
आत्मनिर्भर भारत का सपना देश के प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाने का सपना है। इसी में दुनिया की भी भलाई है। भारत की तरक्की में दुनिया की तरक्की है। इसीलिए भारत संयुक्त राष्ट्र की तरक्की के लिए अपने योगदान के बदले उसकी प्रक्रिया में अपनी भूमिका मांग रहा है। 2021 से वह सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनेगा। वह आठवीं बार अस्थायी सदस्य चुना गया है। दुनिया में भारत की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अस्थायी सदस्य चुने जाने के लिए 190 देशों में से 187 ने भारत के पक्ष में मतदान किया।
जितनी तेजी से भारत ने संयुक्त राष्ट्र की समृद्धि और विकास योजनाओं को देश में लागू किया है, उतना शायद ही किसी अन्य देश ने किया हो। भारत दुनिया के परमाणु संपन्न देशों में है। साथ ही वह परमाणु अप्रसार के लिए भी वचनबद्ध है। दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र होने के नाते आज दुनिया के तमाम ताकतवर आर्थिक संगठनों का वह सक्रिय सदस्य है। दुनिया के 18 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य देशों में सबसे अधिक यूरोप के हैं, जबकि उनकी कुल आबादी दुनिया की पांच प्रतिशत है। अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीपों का कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है। इसीलिए जी-4 सहित कई ताकतवर संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग की है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात रखी,उसका दुनिया के अनेक देशों ने समर्थन किया है।अमेरिका और यूरोप जैसे देश आज भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। वो भी एक ऐसे समय में जब कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को सचेत कर दिया है, तब संयुक्त राष्ट्र में सुधार होना ही चाहिए।
-कमल किशोर डुकलान
रुड़की (हरिद्वार)

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