मेरठ/बरेली/देहरादून। प्रज्ञा परिषद, प्रज्ञा प्रवाह, ब्रज तथा प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र, महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली, तपोभूमि विचार परिषद मेरठ एवं देवभूमि विचार मंच उत्तराखंड के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘युवा संवाद से समाधान’ वेब परिचर्चा श्रृंखला के द्वितीय व्याख्यान का आयोजन प्रज्ञा परिषद ब्रज द्वारा रविवार को आयोजित किया गया | इस परिचर्चा के अध्यक्ष गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय पंतनगर के कुलपति प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह थे तथा सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि के प्रवर्तक व कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री श्री सुभाष पालेकर मुख्य वक्ता व विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ रतन कुमार जी, संयुक्त निदेशक, बागबानी गढ़वाल मंडल, पौड़ी, उत्तराखंड जी रहे | कार्यक्रम को प्रोफेसर अनिल शुक्ला , कुलपति महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली व भगवती प्रसाद राघव क्षेत्र संयोजक पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रज्ञा प्रवाह का संरक्षण एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह ने कहा कि इस तरह की खेती का विचार सर्वप्रथम 2002 में सुभाष पलेकर ने ही उन्हें पालमपुर में बताया था | उस समय प्राकृतिक कृषि एक नया विषय था| उन्होंने सुरक्षित भोजन व जैविक भोजन को सही माना और वैदिक कृषि के बारे में प्रतिभागियों को बताया | तत्पश्चात कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पद्मश्री श्री सुभाष पालेकर ने सर्वप्रथम रासायनिक खेती को पूर्णतया बंद करने की बात कही | उन्होंने जनसंख्या, बढ़ते तापमान व घटती जैव विविधता पर ध्यान आकर्षित कराया और कहा कि आज की इस वैश्विक समस्या के परिदृश्य में यह माना कि कोरोना से संबंधित स्थितियाँ स्व-उत्पादित या मानव निर्मित भी है | उन्होंने कहा कोरोना से संबंधित दवाइयां उपचार हो सकती हैं पर समाधान नहीं | भले ही भारत में कोरोना मृत्यु दर कम होने से भारतीयों में शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने का पता चलता है पर इन स्थितियों में हमें अपनी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए जिससे जीवन पर्यंत हमें दवाइयों की आवश्यकता ना पड़े | इसके लिए उन्होंने प्राकृतिक साधनों को उत्कृष्ट माना उन्होंने कहा कि 2 सप्ताह तक जन्म उपरांत यदि शिशु मात्र अपनी मां का दुग्धपान कर ले तो जीवन पर्यंत उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है | पर रासायनिक कृषि हमारे जीवन में विष घोल रही है | शरीर किसी भी बाहरी तत्व हेतु कोशिकीय प्रतिरोधकता उत्पादित कर उसे स्वयं नियंत्रित करने का प्रयास करता है जिसे हमे बढ़ाना है| उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को जनसंख्या वृद्धि के विषय में कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है क्योंकि संसाधन सीमित है, हम भूमि को कारखाने में पैदा नहीं कर सकते बढ़ती जनसंख्या के कारण हमें निश्चित भूमि पर ही अधिक उत्पादन करना होगा जो कालांतर में अधिक दूर होता चला जाएगा उन्होंने कहा आज खेती में हम रासायनिक खाद बिना सोचे समझे प्रयोग कर रहे हैं जिससे वातावरण में कार्बन उत्सर्जन की वृद्धि होती चली जा रही है जो पृथ्वी के सामान्य तापमान को बढ़ा रहा है उन्होंने कहा प्रकृति ईश्वर का संविधान है प्रकृति ईश्वर से निर्मित है जो मानव के लिए है पर मानव द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, व मीथेन गैस द्वारा ‘हरित गृह प्रभाव’ लाकर पृथ्वी को संकट में डाल रहे हैं| पालेकर जी ने बताया कि उनकी खेती में कोई लागत भी नहीं लगती, उत्पादन बढ़ता है और उत्पाद की पौष्टिकता भी उत्कृष्ट होती है और साथ ही साथ इस खेती से वातावरण पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव भी नहीं होता| इनकी खेती से मृदा की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है क्योंकि वह इस खेती में किसी प्रकार का अप्राकृतिक खाद प्रयोग नहीं करते बल्कि देसी गाय का गोबर प्रयोग कर कृषि की उत्पादन बढ़ाते है| पालेकर कृषि पद्धति द्वारा कृषि कर हम कम समय में निश्चित भूमि में ‘मल्टी स्तर खेती’ द्वारा अधिक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं| उनका दावा है कि बड़े शहरों से वापस लौटे अपने घरों में युवा सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि का प्रयोग कर प्रतिमाह ₹25000 आसानी से कमा सकते हैं और साथ ही न केवल स्वयं रोजगार प्राप्त कर सकते हैं वरन अन्य कई लोगों को रोज़गार भी दे सकते हैं| उन्होंने कहा आप खेत से सीधे प्रयोगकर्ता से जुड़ कर लाभ लेते हुए नागरिकों को ऐसे फल व सब्जियों की आपूर्ति कर सकते हैं जो दो हफ्तों तक खराब नही होती और उनका पौष्टिक स्तर भी बना रहता है| अंत में पालेकर ने आध्यात्मिक जीवन प्रयोग करने की बात कही उन्होंने लाभ छोड़ नैतिक आवश्यकताओं पर बल दिया हमें जितनी आवश्यकता है हम उससे अधिक प्रयोग नहीं कर सकते| उनका मानना है की गेहूं चावल की जगह हमें अपने पुराने मोटे अनाज को जैसे ज्वार बाजरा को पुनः प्रयोग करना आरंभ करना पड़ेगा|
उनके उपरांत कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता डॉ रतन कुमार ने फल ,पुष्प, मौन पालन को युवाओं द्वारा अंगीकार कर बढ़ावा देने की बात कही | उनका कहना था कि अगर युवा आगे आएं तो इस क्षेत्र में बहुत काम किया जा सकता है| उन्होंने मशरूम उत्पादन, सब्जी उत्पादन, मसाला उत्पादन, पुष्प उत्पादन व् फल उत्पादन पर प्रतिभागियों का ध्यान आकर्षित किया| उन्होंने बताया कि पॉलीहाउस, पॉलीमल्चिंग का प्रयोग करते हुए अगर युवा इस क्षेत्र में कार्य करना चाहे तो सरकार द्वारा उन्हें सहायता प्राप्त भी हो सकती है| उन मानना था की परिणाम अधिक पाने के लिए अगर युवा प्रशिक्षण प्राप्त कर लें तो बेहतर होगा |उन्होंने इस प्रशिक्षण हेतु उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के विभिन्न केंद्रों का उदाहरण दें युवाओं को इन प्रशिक्षण केंद्रों से प्रशिक्षण देने की सलाह दी|
इस कार्यक्रम में युवा उद्बोधन में शिक्षा शास्त्र के परास्नातक विद्यार्थी नितेश कुमार ने भी अपने विचार रखें |
इस युवा संवाद से समाधान श्रृंखला का संपूर्ण संयोजन डॉ प्रवीण कुमार तिवारी , सह आचार्य शिक्षा विभाग रोहिलखंड विश्वविद्यालय, प्रांत संयोज-प्रज्ञा परिषद के निर्देशन में हो रहा है | इस द्वितीय व्यख्यान कार्यक्रम का संयोजन डॉ गौरव राव एवं श्री आदर्श कुमार चौधरी द्वारा किया गया |
कार्यक्रम का संचालन आयोजन सचिव श्री शुभ गुप्ता एवं आयोजन सह- सचिव श्री अनुराग विजय अग्रवाल द्वारा किया गया | कार्यक्रम को गूगल मीट पर पंजीकृत प्रतिभागियों के साथ साथ प्रज्ञा परिषद के यूट्यूब चैनल पर भी देखा जा सकता है|
यह परिचर्चा युवा संवाद से समाधान वेब परिचर्चा श्रृंखला की द्वितीय कड़ी है, जो अनवरत 15 परिचर्चा का एक समूह है जो युवाओं में उद्यमिता व भारतीय युवा को स्वावलंबी बनाने में केंद्र में रखकर नव भारत निर्माण की संकल्पना करता है|