14 Mar 2025, Fri

विश्व पशु दिवस सप्ताह को मनाने को लेकर पेटा इंडिया ने जेडी इंस्टीट्यूट में कार्यशाला का आयोजन किया

देहरादून। विश्व पशु दिवस सपताह के उपलक्ष्य में, पेटा इंडिया ने जेडी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी में एक टॉक सेशन का आयोजन किया, जिसमें पेटा इंडिया ने छात्रों से भविष्य में पर्यावरण के अनुकूल फैशनेबल कपड़ो को डिजाइन करने को कहा। पेटा इंडिया ने छात्रों को चमड़े, पंख, ऊन, या जानवरों पर क्रूरता कर निकाली गयी अन्य सामग्री के बदले कपड़ो को उपयोग करने के लिए कहा।
आम तौर पर, चमड़े के लिए मारे गए जानवरों को अक्सर बड़े पैमाने पर ट्रकों में ठूस-ठूस कर ले जाया जाता है, जिससे उनकी हड्डियां टूट जाती हैं, या दम घुटनें से उनकी मौत रास्ते में ही हो जाती हैं। भेड़ो से ऊन निकालने के लिए उन्हें पिट-पिट कर मारा जाता है। खरगोश की तरह फर के लिए मारे जाने वाले अधिकांश जानवरों को तंग पिंजरों के अंदर अपना जीवन बिताना पड़ता है, जहां इतनी भी जगह नहीं होती की वे आगे और पीछे हिल सकें। इस कारण वे बदहवास हो कर सलाखों को कुतरने लगते हैं और खुद को काटने लगते हैं। पंखो के लिए पक्षियों का गला काटा जाता हैं। कुछ पक्षियों के पंख निकालने उन्हें जिन्दा ही डीफैदरिंग टैंक में डाला जाता है जिससे उनकी मौत हो जाती हैं। रेशम के लिए उपयोग किए जाने वाले रेशम के कीड़ों को उनके कोकून के अंदर जिंदा उबाला जाता है,  जिससे कोकून को सुलझाया जा सकें ताकि श्रमिक रेशम के धागे प्राप्त कर सकें। जानवरों की खाल से बने चमड़े को आसानी से प्रकृति में मौजूद चीजों से बदला जा सकता है – जैसे कि अनानास के पत्ते, अंगूर, सेब, मशरूम, या कॉर्क जैसे अनगिनत अन्य पौधे के उपयोग से हम चमड़े के उपयोग को पूरी तरह बंद कर सकतें हैं। जेडी  इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी के कार्यकारी निदेशक, रूपल दलाल ने कहा, ष्जागरूकता फैला कर हम बड़ा परिवर्तन ला सकतें है। तीन दशकों से अधिक समय से  फैशन डिजाइन इंस्टिट्यूट होने के नाते, हमारे छात्रों को फैशन के क्षेत्र के दिग्गजों द्वारा फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षित और कुशल बनाया जा रहा  है। महान डिजाइनरों के साथ महान जिम्मेदारियां आती हैं, यही कारण है, हमारे छात्रों द्वारा ग्रेजुएशन के दौरान तैयार किये गए कलेंक्शन में कभी भी कोई पशु-व्युत्पन्न सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता है। यदि हम जानवरों  के साथ होनी वाली क्रूरता को समाप्त करना चाहते हैं, तो हमें पहले छात्रों को शिक्षित कर उन्हें जानवरों के प्रति संवेदनशील बनाना होगा।”

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