भारतीय मूल की कमला हैरिस का अमेरिका में उप-राष्ट्रपति बनना न सिर्फ भारतीयों, बल्कि दुनिया के अश्वेतों के लंबे संघर्ष का जीता-जागता प्रमाण है।इससे उन्हें आतंकवाद व पूंजीवाद के मोर्चे पर खड़ा होकर मानवता की सेवा का बेहतरीन मौका मिला है…….
अमेरिका में सत्ता परिवर्तन का न केवल स्वागत, बल्कि अनुकरण भी होना चाहिए। स्वागत इसलिए कि एक अपेक्षाकृत उदार, समावेशी, लोकतांत्रिक राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका की कमान संभाली है और अनुकरण इसलिए कि अमेरिका में देश व व्यक्ति के हित में लोकतंत्र में असीम संभावनाएं फिर प्रबल हुई हैं। सत्ता हस्तांतरण में हुई दुखद समस्या के बावजूद अमेरिकी के इतिहास में सबसे वरिष्ठतम या बुजुर्ग राष्ट्रपति ने अपने विरोधियों को भी गले लगाने और साथ लेकर चलने का जो अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। ऐसा शायद सिर्फ लोकतंत्र में ही संभव है कि हम किसी असभ्यता को पूरी सभ्यता के साथ प्रतिउत्तर दे सकते हैं। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में प्रेरणा के सशक्त शब्दों का जो अकाल पड़ गया था,उसे दूर करने के प्रति बाइडन ने जो भाव प्रदर्शित किए हैं,उनकी व्यंजना दुनिया के तमाम देशों तक पहुंचेगी और तमाम लोकतंत्रों की बुनियाद मजबूत करने में अपनी विशेष भूमिका निभाएगी। हम शायद नहीं भूल सकेंगे कि डोनाल्ड ट्रंप ने कैसे अमेरिका और भारत जैसे लोकतंत्रों का मखौल उड़ाने वालों को मौका दिया था। लोकतंत्र पर हंसने वालों को बाइडन ने अपने भावपूर्ण उद्बोधन से ऐसा माकूल जवाब दिया है कि आज गैर-लोकतांत्रिक देश अचंभित व लज्जित होंगे। बाइडन का आना लोकतंत्र की खूबसूरती है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि राजनीति में सेर भर आक्रामकता का मुकाबला सवा सेर आक्रामकता करती है और व्यवस्था दिनों-दिन बिगड़ती-अभद्र होती चली जाती है। लेकिन अमेरिका में दुनिया ने देख लिया कि आक्रामकता का मुकाबला उदारता भी सफलतापूर्वक कर सकती है। बाइडन ने जिस भावना का प्रदर्शन राष्ट्रपति बनने के बाद किया है,उसकी जरूरत उन्हें कदम-कदम पर पड़ने वाली है। आतंकवाद से लेकर प्रदूषण तक और फलस्तीन से लेकर चीन तक अनगिनत चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। बाइडन को अपनी पूरी टीम के साथ मिलकर अमेरिका को व्यवस्थित करना है। कोरोना से लड़ते हुए अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान की जो कमजोरियां सामने आई हैं, उनका इलाज प्राथमिकता से होना चाहिए और अमेरिका को इस मोर्चे पर आदर्श बनकर उभरना चाहिए। अमेरिकी पूंजीवाद पर भी बाइडन की उदारता के छींटे पड़ने चाहिए। दुनिया को ऐसे सच्चे पूंजीवाद की जरूरत है, जिसमें लाभ साझा करने का भाव हो। यह अवसर है, जब भारतीयों को अनायास खुशी की अनुभूति हो रही है। अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस अपने आप में एक इतिहास हैं। भारतीयों को भूलना नहीं चाहिए कि करीब सौ साल पहले कैसे भगत सिंह थिंड ने अमेरिकी नागरिकता के लिए संघर्ष किया था। किस संघर्ष से नागरिकता पाने के बाद दलीप सिंह सौंद अमेरिका में भारतीय मूल के पहले सांसद बने थे। ऐसे बहुत से भारतीय हैं, जो अमेरिकी नागरिकता के इंतजार में ही दुनिया से विदा हो गए। अब कमला हैरिस का उप-राष्ट्रपति बनना न सिर्फ भारतीयों, बल्कि दुनिया के अश्वेतों के लंबे संघर्ष का जीता-जागता प्रमाण है। बाइडन की पूरी टीम के लिए पद पाने की सार्थकता सिद्ध करने का यह सही समय है। लंबी-चौड़ी भारतीय मूल की टीम को मानवता की सेवा का बेहतरीन मौका मिला है, वह हाथ से जाना नहीं चाहिए। यह टीम अमेरिका को आतंकवाद व पूंजीवाद के मोर्चे पर महज न्यायपूर्ण भी रख पाई, तो दुनिया का भला हो जाएगा।