✍️ सुभाष चन्द्र जोशी ©


माँ बोली ‘‘बेटा तेरे बाबूजी कहाँ हैं ?’’ सुरेश अन्दर से बाहर आया और बोला ‘‘माँ बाबूजी अभी जंगल लक़ड़ी लेने गये हैं। आयेंगे तो हम दोनों नदी मछली पकड़ने जायेंगे।’’ रामदेई अपना चूल्हा-चौका का काम निपटाने में व्यस्त हो गयी। सुरेश ने मछली पकड़ने के लिए सभी सामान रख लिया था। बस काँटों पर लगाने के लिए गोलियाँ तैयार करने के काम में लग गया। काफी सारी गोलियाँ बनाकर थैले में रख ली थी सुरेश ने। इतने में उसके बाबूजी भी आ गये।

शिवचरण ने आवाज दी ‘‘बेटा सुरेश कहाँ हो। जरा एक गिलास पानी लाओ, बहुत प्यास लगी है।’’ भादो का महीना था और मौसम में बहुत उमस थी। जंगल से लकड़ी का गठ्ठर लेकर शिवचरण घर पहुँचा था। सुरेश एक गिलास पानी का लेकर आया। बोला ‘‘बाबूजी आपने बहुत देर कर दी। हमें मछली पकड़ने भी जाना है। शिवचरण बोला ‘‘हाँ बेटा थोड़ा साँस ले लूँ।’’ शिवचरण ने पानी का गिलास एक साँस में पी लिया और बोला भाग्यवान थोड़ा चाय पीला देती तो थकान दूर हो जाती।’’ शिवचरण के बोलते ही रामदेई चाय का गिलास लेकर आ गयी। उसे पता था, शिवचरण प्रतिदिन की तरह चाय पीने की इच्छा जतायेगा। शिवचरण चाय के साथ गुड़ लेता था। चीनी की चाय उसे पसन्द नहीं थी।

चाय पीने के बाद शिवचरण और सुरेश दोनों नदी की ओर निकल पड़े। एक पहाड़ी पार कर वह दोनों नीचे घाटी में उतर गये और नदी में जाकर मछली पकड़ने के लिए एक-एक कर काँटे डालने लगे। काफी देर तक काँटें लगाने के बाद दोनों एक पेड़ के छाँव में बैठकर मछली फँसने का इंतजार करने लगे। बहुत देर तक इंतजार करने के बाद शिवचरण नदी के किनारे पर मछली के काँटों को देखने लगा, लेकिन एक भी मछली नहीं फँसी थी। शायद आज दिन ज्यादा निकल गया था। वैसे बाप-बेटा सुबह आठ बजे तक नदी में मछली पकड़ने के लिए पहुँच जाते थे। पर शिवचरण आज लकड़ी लेने जंगल निकल गया था। फिर भी शिवचरण ने उम्मीद नहीं खोयी। थोड़ी देर बाद काँटे में एक मछली फंस गई। शिवचरण ने काँटा निकालकर मछली निकाल ली। सुरेश पेड़ के नीचे बैठा देख रहा था। वह बहुत इंतजार के बाद मछली न मिलने के कारण निराश हो गया। शिवचरण ने समझाया ‘‘बेटा निराश मत हो। आज नहीं तो कल मिल ही जायेगी मछली।’’ काम चलाने के लिए एक मछली मिल तो गयी है। पर सुरेश खुश नहीं था।

शिवचरण पेड़ के नीचे बैठ गया। सुरेश बैठे-बैठे ऊब गया था। वह नदी किनारे चहलकदमी करने लगा। तभी उसकी नजर एक डोरी पर पड़ी, जो बहुत लम्बी थी और उस पर मछली पकड़ने के लिए फँदा लगा था। पर यह इनकी डोरी नहीं थी। सुरेश ने इधर-उधर नजरें दौड़ाई पर वहाँ कोई नहीं दिख रखा था। यह डोरी शायद कोई बीते दिन लगाकर चला गया था। पर वह वापस नहीं आया। अब सुरेश के मन में डोरी को लेकर उत्सुकता बढ़ गई थी। वह डोरी के काफी नजदीक पहुँचा तो उसने देखा उसमें बहुत मछलियाँ फँसी हुई हैं। उसने शिवचारण को आवाज दी बोला ‘‘बाबूजी आओ देखो बहुत सी मछलियाँ फँसी हुई हैं यहाँ पर।’’ शिवचरण बोला ‘‘बेटा वह डोरी तो मैंने नहीं डाली है। वह किसी ओर की है। रहने दो। आओ चलते हैं। चलो आज ईश्वर ने जितना दे दिया वहीं बहुत है।’’

शिवचरण संतोषी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। पर सुरेश लालची स्वभाव का था। उसने कहा ‘‘बाबूजी कोई नहीं है यहाँ। फिर किसकी होगी। शायद कोई भूल गया है।’’ सुरेश ने शिवचरण की बात नहीं मानी और डोरी को खिंचने लगा गया। बहुत जोर लगाने के बाद भी डोरी नहीं निकल पा रही थी। पानी में उतरकर सुरेश ने डोरी खिंचने का प्रयास किया। डोरी थोड़ी-थोड़ी खिंच रही थी। फिर सुरेश ने डोरी जोर से खींची। डोरी तो खिंच गयी, पर डोरी को देखकर सुरेश की आँखें फटी की फटी रह गयी। उस डोरी में मछलियाँ नहीं फंसी थी बल्कि दो साँप फँसे हुए थे, जो अभी भी जिन्दा थे और छटपटा रहे थे। साँप इतनी जोर से झटपटाये कि सुरेश नदी की और खिंचता चला गया। वह गहरे पानी में कब उतर गया, उसे पता ही नहीं चला। इतने में शिवचरण भी आ पहुँचा। उसने देखा कि सुरेश नदी के गहरे पानी में फँस गया है। शिवचरण ने तेजी से सुरेश का हाथ पकड़कर पानी से बाहर निकाल दिया। नदी से बाहर निकलते ही सुरेश ने दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया। उसने यह कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था।

शिवचरण बोला ‘‘बेटा लालच नहीं करना चाहिए। मछली के लालच में तू नदी में डुबते-डुबते बच गया।’’ सुरेश बोला ‘‘बाबूजी उस डोरी में मछली नहीं दो साँप फँसें हुए थे।’’ शिवचरण ने सुरेश को समझाया और बोला ‘‘बेटा इसलिए वह डोरी किसी ने नहीं निकाली होगी और वह इसी तरह पानी में पड़ी है अब तक।’’ नहीं तो अब तक कोई भी निकालकर ले गया होता।’’ मछली के लालच में सुरेश ने अपने को दोहरी मुसीबत में फँसा दिया था। एक तो साँप हाथ लग ये दूसरी नदी में बहते बहते बच गया।