कमलकिशोर


आजकल जिस तरह से रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों पर हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि रामचरित मानस की समग्रता पर विचार करने की आवश्यकता है।
पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस की जिन चौपाई की भावार्थ के कारण हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था पर जो विवाद पैदा हुआ है इससे तो यही लगता है कि जिस चौपाई पर अर्थ का अनर्थ करने वाले शायद रामचरित मानस की समग्रता को नहीं जानते जिस कारण से हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था में भेद पैदा कर गलतफहमी पैदा की जा रही है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने मुगल काल में वाल्मीकि रामायण,आनंद रामायण और कबंद रामायण सहित अनेकों रामायणों के अध्ययन पर आधारित अवधी भाषा में रामचरित मानस ग्रंथ को लिखा है।
रामचरित मानस में बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड,अरण्य काण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदर काण्ड, लंका काण्ड एवं उत्तर काण्ड सहित 7 काण्‍ड है। हिन्दू वर्ण व्यवस्था पर रामचरित मानस में जो विवाद पैदा हुआ वह विवाद उत्तरकाण्ड को लेकर है। माना जाता है कि वाल्मीकि रामायण में यह बाद में जोड़ा गया तो मानस में भी यह बाद का काण्‍ड ही माना जाता है। जबकि वाल्मीकि रामायण लंका काण्ड पर समाप्त हो जाती है।
भगवान श्री राम के चरित्र पर विवाद उठाने वाले वृहद रूप से शायद श्रीराम को नहीं समझते हैं। श्रीराम यदि शास्त्रों के ज्ञाता प्रकाण्ड विद्वान और ब्राह्मण कुल के रावण और उसके संपूर्ण कुल को नष्ट कर देते हैं तो फिर शंबूक वध पर बवाल क्यों? क्या कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे और केवट को गले लागा कर अपना परम मित्र बनाया था। उन्होंने ही तो गिद्ध का अपने पिता के सामान श्राद्ध किया था। वे कोल, भील, किरात, आदिवासी, वनवासी, गिरीवासी, कपिश अन्य कई जातियों के साथ जंगल में रहे और उन्हीं के दम पर राम ने रावण को हराया भी था। केवल शंबूक बद्ध पर कैसे माना जा सकता है कि राम में जातावादी भावना थी?
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥
जिन मानस की चौपाई पर समाज में विवाद पैदा हुआ उन मानस की चौपाई के पांच शब्द ढोलक,गवांर, वंचित,जानवर और नारी को पूरी तरह से जानने के विषय हैं। इन्हें जानें बगैर इनके साथ व्यवहार करने से सभी का अहित होता है। ढोलक को अगर सही से नहीं बजाया जाय तो उससे कर्कश ध्वनि निकलती है। अतः ढोलक पूरी तरह से जानने या अध्ययन का विषय है। इसी तरह अनपढ़ व्यक्ति आपकी किसी बात का गलत अर्थ निकाल सकता है। अतः उसके बारे में अच्छी तरह से जानकर ही उसको कोई बात समझाना चाहिए। वंचित व्यक्ति को भी जानकर ही आप किसी कार्य में उसका सहयोग प्राप्त कर सकते हैं। अन्यथा कार्य की असफलता पर संदेह रहेगा। इसी प्रकार पशु हमारे किसी व्यवहार,आचरण, क्रियाकलाप या गतिविधि से भयभीत या आहत हो जाते हैं और न चाहते हुए भी वे भयभीत होकर हमला कर सकते हैं। असुरक्षा का भाव उन्हें कुछ भी करने पर विवश कर सकता है। अतः पशु को भी भलीभांति जानकर ही उसके साथ व्यवहार करना चाहिए। इसी प्रकार जब तुलसीदासजी ने नारी शब्द का उपयोग किया तो वे भलिभांति जानते थे कि नारी मां,बहन और बेटी भी होती है। लेकिन लोग सिर्फ पत्नी के अर्थ में ही इसे लेते हैं। तुलसीदासजी मानना था कि नारी की भावना को समझे बगैर उसके साथ आप जीवन यापन नहीं कर सकते। ऐसे में आपसी सूझबूझ काफी आवश्यक होती है।
कुछ विद्वानों द्वारा मानस की चौपाई में बदलाव किया है,यह प्रक्षेप है। असली चौपाई में शूद्र नहीं क्षुब्द है और नारी नहीं रारी है। यानी ढोल, गवार, क्षुब्द पशु, रारी है यह सब ताड़न का अधिकारी। मानस की दूसरी जिस चौपाई पर विवाद खड़ा हुआ है वे हैं:-
पूजहि विप्र सकल गुण हीना,
पूजहि न शूद्र गुण ज्ञान प्रवीणा।।
तुलसीदासजी की इस चौपाई का इस तरह गलत अर्थ निकाला जाता है- ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित हो,उसकी पूजा करनी ही चाहिए और शूद्र चाहे कितना भी गुणी ज्ञानी हो, वो सम्माननीय हो।
विप्र यानी वेदपाठी और ब्राह्मण यानी ब्रह्म को जानने वाला व्यक्ति। अब यदि विप्र ने भले ही उस सारे वेद ज्ञान को आत्मसात नहीं किया है,सारे गुणहीन हो लेकिन वह पढ़ा-लिखा है इसीलिए वह पूज्जनीय है। शुद्र वेद प्रवीणा का अर्थ हुआ ऐसा व्यक्ति जो सारी किताबे पढ़-पढ़ के प्रवचन बांचता रहता है उसका मर्म नहीं समझता है और वह उसका अर्थ नहीं जानता है। फिर भी वो उसका दम्भ करता है पांडित्य दिखाता रहता है। ऐसे लोग पूज्जनीय नहीं है।
आजकल लोग जातिवाद के चलते चौपाई और श्लोकों के गलत अर्थ निकालने लगे हैं। उसके संदर्भ को काटकर वे उसके भाव को नहीं पकड़ते हैं। प्राचीनकाल के गुरु कुल में हर जाति और संप्रदाय का व्यक्ति पढ़कर उच्च बनता था। वेदों को लिखने वाले ब्रह्मण नहीं थे। रामायण किसी ब्राह्मण ने नहीं लिखी महाभारत और पुराण लिखने वाले वेद व्यासजी निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र थे।