क्रिकेट के जादुगर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने के लिए केंद्र सरकार ने जब से नियमों में बदलाव किया तभी से हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को भारतरत्न देने की बहस छिड़ी हुई है।
शिद्दत से करो कोशिश,
चिराग जलाने की।
कौन जाने तुम्हीं से कल,
रोशन सारा जहां हो।
किसी व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी शायर की ये पंक्तियां जोश और उत्साह साथ प्रोत्साहित करने भी वाली है। कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है। कोई भी बाधा प्रतिभा को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है। अपनी विलक्षण प्रतिभा के धनी हॉकी के जादूगर ध्यानचंद ने लगातार तीन ओलंपिक खेलों में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाकर दुनिया में भारत का मान-सम्मान बढ़ाया,जो कि देशवासियों के लिए प्रेरणादायक,गौरवमयी अपितु अनुकरणीय है।
कहा जाता है कि मेजर ध्यानचंद के जैसा हॉकी का खिलाड़ी आज तक न कोई हुआ है,और न आगे होगा। मेजर ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में डॉन ब्रेडमैन के बराबर माना जाता है। वर्ष 2012 में मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए 29 अगस्त को उनके जन्मदिन के अवसर पर भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और वर्ष 2012 से प्रतिवर्ष 29 अगस्त को इसी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
लंबे समय से मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने को लेकर अनेकों बार अलग अलग मंचों से मांग उठती रही है, लेकिन उन्हें भारत रत्न देने के प्रति केंद्र की सरकारों ने जो उदासीनता दिखाई है, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अब प्रश्र उठता है कि तीन भारत को ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाकर पूरी दुनिया में गौरवान्वित करने वाले मेजर ध्यानचंद की भारत रत्न के लिए लगातार अनदेखी करना कहां तक उचित है? हॉकी के समर्थकों और खेल प्रेमियों में बेचैनी है कि हॉकी के जादूगर को सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाएगा या नहीं? अब तो यह बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि सरकारें वर्षो से भारत रत्न देने के फैसले में अपना सियासी नफा-नुकसान देखती रही हैं। यह मेजर ध्यानचंद के साथ मजाक के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह सरकार ने वर्ष 2011 में संसद के उन 82 सांसदों की मांग ठुकरा दी थी, जिन्होंने हॉकी के जादूगर
मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की सिफारिश की थी।
हो सकता है कि कुछ लोगों का इससे अलग विचार हों,अगर देखा जाए तो सचिन तेंदुलकर से पहले भारत रत्न सम्मान के असली हकदार मेजर ध्यानचंद थे। मुंबई के वानखेडे स्टेडियम पर वर्ष 2013 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सचिन तेंदुलकर की लोकप्रियता को भुनाने के लिए भारत रत्न देने की सारी औपचारिकता महज 24 घंटों में पूरी कर ली थी। वर्ष 2014 में सचिन तेंदुलकर और सीएनआर राव को भारत रत्न देने के साथ-साथ मेजर ध्यानचंद को भी यह सम्मान दिया जा सकता था, परंतु कांग्रेस नीत मनमोहन सरकार ने ऐसा नहीं किया। भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और खिलाड़ियों को भी इससे सम्मानित किए जाने के लिए वर्ष 2013 में ही इसके पात्रता के मानदंड में संशोधन किया गया।
एक समय था जब श्री नरेन्द्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग उस समय की कांग्रेस नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार से की थी। आज श्री नरेन्द्र मोदी जी स्वयं प्रधानमंत्री हैं, ऐसे में हॉकी के जादूगर मेजर
ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने में देरी होना दुर्भाग्य ही कहां जा सकता है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और महामना मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से नवाजा। उस समय ध्यानचंद को भी यह पुरस्कार दिया जा सकता था, परंतु मोदी सरकार ने ऐसा नहीं किया। वर्ष 2019 में मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख और गायक भूपेन हजारिका जैसी जानीमानी हस्तियों को भारत रत्न से सम्मानित किया।
हम सबको पता होगा कि वर्ष 1936 में बर्लिन में हॉकी ओलंपिक का फाइनल मैच भारत और जर्मनी के बीच हुआ था। जिसमें जर्मनी के शासक हिटलर भी मैच देख रहे थे। भारत ने उस मैच में जर्मनी को 8-1 से हराया था। मैच समाप्ति के बाद जर्मनी शासक हिटलर ने ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर उन्हें जर्मनी की नागरिकता के साथ जर्मनी सेना में कर्नल बनाने तक का प्रस्ताव रखा। हालांकि मेजर ध्यानचंद ने जर्मनी शासक हिटलर के इस प्रस्ताव को बड़ी विनम्रता के साथ यह कहकर ठुकराकर देशभक्ति का परिचय दिया कि मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा।
देश के लिए लगातार तीन ओलंपिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाले मेजर ध्यानचंद ने 1948 में हॉकी से संन्यास लिया। और वर्ष 1956 में भारत सरकार ने मेजर ध्यानचंद को भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। तीन दिसंबर 1979 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके सम्मान में दिल्ली में स्थित नेशनल स्टेडियम को वर्ष 2002 में ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम दिया गया।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम तमाम ऐसी उपलब्धियां हैं, जिस कारण मेजर ध्यानचंद को अब भारत रत्न से सम्मानित करने की प्रबल सम्भावनाएं दिखती हैं।

 

कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)