नयी दिल्ली/देहरादून। केन्द्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ सोमवार को विभिन्न किसान यूनियन के भारत बंद का आंशिक असर देखने को मिला किसान यूनियन के 10 घंटे के इस बंद के चलते देश के कई क्षेत्रों में, विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनजीवन प्रभावित रहा। विभिन्न ट्रेनों के रद्द होने और राजमार्ग व प्रमुख सड़कों के बंद होने से हजारों यात्री फंसे रहे।
उत्तराखंड में भी किसानों के भारत बंद का असर सोमवार सुबह से ही दिखा। राज्य के हरिद्वार उधम सिंह नगर तथा देहरादून के कुछ क्षेत्रों में बंद का आंशिक असर दिखाई दिया किसान यूनियन के द्वारा कई स्थानों पर जबरन दुकानें एवं प्रतिष्ठानों को बंद कराने का प्रयास किया गया। देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल आदि जगहों पर बाजार खुला रहा।
राज्य के ऊधमसिंहनगर में भारत बंद और किसान व अन्य संगठनों के विरोध-प्रदर्शन का ज्यादा असर दिखाई दिया। रुद्रपुर में भारत बंद को लेकर किसानों, व्यापार मंडल पदाधिकारियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जुलूस निकाला। वहीं इस दौरान किसान नेता साहब सिंह सेखो ने मांग पूरी न होने पर आत्मदाह की धमकी दी। प्रदर्शनकारियों ने बाजपुर में हाईवे पर वाहनों को रोक दिया है। जसपुर में जुलूस निकालकर बाजार बंद कराए गए। काशीपुर का मुख्य बाजार भी बंद रहा। काशीपुर में भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिला। यहां मुख्य मार्केट की अधिकांश दुकानें बंद रहीं।
हल्द्वानी में भारत बंद सफल नजर नहीं आया। बाजार में अधिकतर दुकानें, फल-सब्जी मंडी खुली हुईं हैं। हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में धरना प्रदर्शन किया गया।
हरिद्वार में भारत बंद के समर्थन में जुलूस निकाला गया। इस दौरान पुलिस ने किसानों को ज्वालापुर से पहले एकड़ कला गांव में रोका। जिस पर किसान वहीं पर धरना करने लगे। हरिद्वार में भी बाजार खुले हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा के भारत बंद के तहत सोमवार को डोईवाला का बाजार सुबह पूरी तरह से बंद रहा। केंद्रीय कृषि बिल के विरोध में किसानों ने डोईवाला चौक पर नारेबाजी कर प्रदर्शन किया।
सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक के भारत बंद के दौरान कई जगहों पर प्रदर्शन हुए, जो अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए। इनमें किसी के घायल होने या गंभीर झड़पों की कोई खबर नहीं आई। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आसपास इसका सबसे अधिक असर दिखा, जो कृषि विरोध के केंद्र रहे हैं। इसके अलावा केरल, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बड़े इलाकों में भी इसका असर दिखा।
चालीस किसान संघों के छाता निकाय संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा बुलाए गए बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों ने राजमार्गों और मुख्य सड़कों को अवरुद्ध कर दिया और सुबह से ही कई स्थानों पर ट्रेन पटरियों पर बैठ गए।
हालांकि भारत का बड़ा हिस्सा बंद से अछूते रहे। उत्तर भारत में लगभग 25 ट्रेनें प्रभावित रहीं। इसके अलावा यात्री वाहनों के साथ-साथ आवश्यक सामान ले जाने वाले ट्रकों की आवाजाही भी अवरुद्ध रही। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में गुड़गांव, गाजियाबाद और नोएडा विशेष रूप से प्रभावित रहे, जिनमें हर दिन हजारों लोग आवाजाही करते हैं।
दिल्ली अधिकांशत: अप्रभावित रही, लेकिन इसकी सीमाओं पर ट्रैफिक जाम के कारण लोगों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लोगों को दफ्तर, कॉलेज और डॉक्टर के पास जाने में देरी हुईं। सड़कों पर वाहनों की लंबी-लंबी कतारें देखी गईं।
किसानों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर सहित राष्ट्रीय राजधानी में जाने वाली अन्य सड़कों को अवरुद्ध कर दिया। इसके अलावा हरियाणा के सोनीपत में कुछ दूर, कुछ किसान पटरियों पर बैठ गए। पंजाब के पटियाला में भी, बीकेयू-उग्राहन के सदस्य अपना विरोध दर्ज कराने के लिए पटरियों पर बैठ गए।
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने लिखा, ‘‘ मैं किसानों के साथ खड़ा हूं और केन्द्र सरकार ने तीन किसान विरोधी कानून वापस लेने की अपील करता हूं। हमारे किसान अपने अधिकारों के लिए एक साल से अधिक समय से लड़ रहे हैं और अब समय आ गया है जब उनकी आवाज सुनी जानी चाहिए। मैं सभी किसानों से अपनी बात शांतिपूर्वक तरीके से रखने की अपील करता हूं।’’
पड़ोसी हरियाणा में, सिरसा, फतेहाबाद और कुरुक्षेत्र में राजमार्ग अवरुद्ध कर दिए गए। दोनों राज्यों में कुछ स्थानों पर किसानों के रेल पटरियों पर बैठने की भी खबरें हैं।
उत्तर रेलवे के एक प्रवक्ता ने कहा, “दिल्ली, अंबाला और फिरोजपुर डिवीजनों में 20 से अधिक स्थानों को अवरुद्ध किया जा रहा है। इससे करीब 25 ट्रेनें प्रभावित हुई हैं।’
किसान नेता योगेंद्र यादव ने एक टीवी चैनल को बताया कि बंद ‘असाधारण रूप से सफल’ रहा। उन्होंने इसपर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि कई राज्यों में किसान संगठन सड़कों पर हैं। उन्होंने प्रभावित लोगों से माफी भी मांगी।
कई गैर-एनडीए दलों ने बंद को समर्थन दिया। इनमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, वाम दल और स्वराज इंडिया शामिल थे। आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस सरकार ने भी भारत बंद को समर्थन देने की घोषणा की थी।
पश्चिम बंगाल में भी बंद का असर देखा गया जहां वाम मोर्चे ने बंद के आह्वान का समर्थन किया है। कोलकाता से सामने आई तस्वीरों में प्रदर्शनकारियों को एक रेलवे ट्रैक पर बैठे देखा जा सकता है। इसी तरह की तस्वीरें पश्चिम मिदनापुर से भी आईं, जिसमें वाम मोर्चा समर्थकों ने आईआईटी खड़गपुर-हिजरी रेलवे लाइन को बाधित किया।
ओडिशा में भी सार्वजनिक परिवहन सड़कों से नदारद दिखा, जिससे राज्य में जनजीवन प्रभावित हुआ। कांग्रेस और वाम दलों के सदस्यों सहित बंद समर्थकों ने बारिश के बीच राज्य भर में महत्वपूर्ण चौराहों पर धरना दिया। भुवनेश्वर, बालासोर, राउरकेला, संबलपुर, बारगढ़, बोलांगीर, रायगढ़ा और सुबर्णपुर सहित अन्य जगहों पर सड़कें अवरुद्ध कर दी गईं।
लॉकडाउन के बाद फिर से खुलने वाले शैक्षणिक संस्थान भी भारत बंद के मद्देनजर नहीं खुले। बाजार बंद थे, लेकिन दवा दुकानों और दूध की दुकानों सहित आवश्यक वस्तुओं की बिक्री करने वाली दुकानें इससे अछूती रहीं। कई ट्रेड यूनियन और बैंक कर्मचारी संघ भी 12 घंटे के बंद का समर्थन कर रहे हैं।
केरल में सार्वजनिक परिवहन प्रभावित हुआ, जहां हड़ताल का सत्तारूढ़ एलडीएफ और विपक्षी कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ समर्थन कर रहा है। राज्य के लगभग सभी व्यापार संघों ने बंद का समर्थन किया और केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) की बसें भी सड़कों से नदारद रहीं। अधिकतर लोगों ने जरूरत पड़ने पर निजी वाहनों से ही यात्रा की।
‘इंटक’ के प्रदेश अध्यक्ष आर चंद्रशेखरन सहित यूनियन नेताओं का कहना है कि बंद शांतिपूर्ण रहेगा और वाहनों को रोका नहीं किया जाएगा या दुकानों को जबरन बंद नहीं कराया जाएगा।
कर्नाटक में शुरुआती कुछ घंटों में जनजीवन कुछ खास प्रभावित नहीं हुआ, सामान्य रूप से कामकाज हुआ तथा यातायात सेवाएं सामान्य रूप से उपलब्ध रहीं। हालांकि विरोध प्रदर्शनों और प्रमुख राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर किसानों द्वारा रास्ता रोकने के प्रयासों के कारण राज्य के कई हिस्सों, खासकर बेंगलुरु में वाहनों की आवाजाही बाधित हुई।
गुवाहाटी में ‘सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया’ के कार्यकर्ताओं ने विरोध मार्च निकाला। अस्पताल, दवा की दुकानें, राहत एवं बचाव कार्य सहित सभी आपातकालीन प्रतिष्ठानों, आवश्यक सेवाओं और किसी परेशानी का सामना कर रहे लोगों को हड़ताल से छूट दी गई है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों के ‘भारत बंद’ का समर्थन किया और कहा कि किसानों का अहिंसक सत्याग्रह अखंड है। गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘ किसानों का अहिंसक सत्याग्रह आज भी अखंड है, लेकिन शोषण करने वाली सरकार को ये नहीं पसंद है, इसलिए आज भारत बंद है।’’
कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं, राज्य इकाई प्रमुखों और अग्रिम संगठनों के प्रमुखों को ‘भारत बंद’ में हिस्सा लेने को कहा है। कई राजनीतिक दलों ने 10 घंटे के बंद का समर्थन किया है।
भारत बंद का मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर में कोई असर नहीं दिखा और जन-जीवन तथा कारोबारी गतिविधियां सामान्य बनी रहीं।
मुंबई में भी वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में कामकाज और स्थानीय परिवहन सेवाएं सामान्य रहीं। कांग्रेस के कार्यकर्ता हाथों में तख्तियां लिए अंधेरी और जोगेश्वरी जैसी कुछ जगहों पर जमा हुए और कृषि कानूनों के खिलाफ नारेबाजी की। इसके अलावा शहर में बंद का अब तक कोई असर नहीं दिखा।
वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस, वाम दलों, तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और अन्य ने राज्य में विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किए। विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं ने बसों का संचालन बाधित करने के लिए राज्य में विभिन्न स्थानों पर बस अड्डों के बाहर प्रदर्शन किया। केन्द्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार और तेलंगाना की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई। वनपर्थी, नलगोंडा, नागरकुरनूल, आदिलाबाद, राजन्ना-सिरसिला, विकराबाद और अन्य जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए।
राजस्थान में, किसानों के ‘भारत बंद’ का असर कृषि बहुल गंगानगर और हनुमानगढ़ सहित अनेक जिलों में दिखा जहां प्रमुख मंडियां तथा बाजार बंद रहे। किसानों ने प्रमुख मार्गों पर चक्काजाम किया और सभाएं की।
‘भारत बंद’ के कारण सोमवार को करीब 25 ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित हुई। उत्तर रेलवे के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘दिल्ली, अंबाला और फिरोजपुर संभागों में 20 से अधिक स्थानों पर जाम हैं। इसके कारण करीब 25 ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित हुई है।’’
गौरतलब है कि देश के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान, पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी केन्द्र के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। किसानों को भय है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली खत्म हो जाएगी। हालांकि सरकार इन कानूनों को प्रमुख कृषि सुधारों के रूप में पेश कर रही है। दोनों पक्षों के बीच 10 दौर से अधिक की बातचीत हो चुकी है, लेकिन सभी बेनतीजा रहीं।