देहरादून। शासन ने भवन उपविधि का संशोधित शासनादेश जारी कर रियल स्टेट में राहत पहुंचाने का कदम उठाया है। उत्तराखंड में आवासीय जमीन की किल्लत को देखते हुए सरकार ने 12 जुलाई को आयोजित केबिनेट बैठक में बिल्डिंग बायलॉज में अहम बदलाव किए थे। अब सोमवार को इसका जीओ जारी होते ही बदलाव लागू हो गए हैं।
प्रदेश में अब 500 वर्गमीटर के भूखंड पर भी आवासीय प्लॉटिंग हो सकेगी। इसके साथ ही ग्रुप हाउसिंग भी पहले के मुकाबले आधे भूखंड पर हो सकेगी।
सरकार ने छोटे प्लॉट पर भी प्लाटिंग और ग्रुप हाउसिंग का रास्ता खोल दिया है। प्रदेश में अब तक ग्रुप हाउसिंग और प्लाटिंग की एक ही परिभाषा थी। अब इसे मैदान और पहाड़ की जरूरत के अनुसार बांट दिया गया है। पहले न्यूनतम दो हजार वर्गमीटर के प्लॉट पर ही प्लॉटिंग और ग्रुप हाउसिंग स्कीम तैयार होती थी। अब ग्रुप हाउसिंग के लिए पहाड़ में पांच सौ और मैदान में एक हजार वर्गमीटर जमीन की आवश्यकता होगी। इसी तरह दोनों जगह न्यूनतम पांच सौ वर्गमीटर की जमीन पर भी प्लॉटिंग हो सकेगी। हालांकि इसमें बेचे जाने वाले प्लॉट का साइज 100 वर्गमीटर से कम नहीं होगा। इसमें डेवलेपर को न्यूनतम नौ मीटर चौड़ाई की मुख्य सड़क के साथ ही साढ़े सात मीटर चौड़ाई वाली आंतरिक सड़कें देनी होंगी।
सरकार ने इस बदलाव के जरिए लगातार मंदी का सामना कर रहे रियल एस्टेट सेक्टर को कई छूट दी हैं। अब चार हजार वर्गमीटर से कम क्षेत्रफल वाली प्लाटिंग और ग्रुप हाउसिंग स्कीम में पार्क देने की बाध्यता भी खत्म कर दी गई है। अब डेवलेपर पार्किंग एरिया के बराबर सर्किल रेट का मूल्य संबंधित विकास प्राधिकरण को चुका कर इस छूट का लाभ ले सकता है। प्राधिकरण इसके इसके एवज में आस पास पार्क विकसित करेगा। चार हजार वर्गमीटर से अधिक बड़ी परियोजनाओं में यह छूट लागू नहीं होगी। इसी के साथ बिल्डर को अब शेल्टर फंड या निर्बल वर्ग के मकान बनाने दोनों का विकल्प दिया है। अब तक बिल्डर को शेल्टर फंड ही जमा करना पड़ता था। इसी तरह अब तक डेवलेपर को ले आउट स्वीकृत कराने के लिए कई मदों में पैसा चुकाना पड़ता था, अब इसे सरल करते हुए दो हजार वर्गमीटर तक एक लाख और चार हजार वर्गमीटर तक दो लाख तय कर दिया गया है। डेवलेपर के एक लाख रुपए अतिरिक्त चुकाने पर संबंधित प्राधिकरण ही ले आउट भी तैयार करके देगा। इसी तरह सरकार ने ग्रुप हाउसिंग में सरकार ने कमर्शियल एरिया भी बढ़ा दिया है। अब तक कुल क्षेत्रफल का एक प्रतिशत तक ही कमर्शियल इस्तेमाल की इजाजत मिलती थी, जिसे अब सात प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।