पहाड़ों में जल संरक्षण का पारंपरिक तरीका चालखाल का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने किया
देहरादून। उत्तराखंड में ‘पाणी राखो’ आंदोलन के प्रणेता एवं प्रसिद्ध पर्यावरणविद् श्री सच्चिदानंद भारती के जल और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मन की बात कार्यक्रम में उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के शिक्षक सच्चिदानंद भारती ने मेहनत और लगन से क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर कर दी। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में ग्रामीण पहले पानी की समस्या से बहुत ही ज्यादा परेशान थे, लेकिन आज भारती जी की मेहनत की बदौलत गांव और आसपास के क्षेत्रों में वर्षभर पानी की सप्लाई हो रही है।
उन्होंने कहा कि पहाड़ों में जल संरक्षण के लिए एक पारंपरिक तरीका अपनाया जाता है जिसे, चालखाल भी कहा जाता है। सच्चिदानंद भारती का जिक्र किया और उनके द्वारा जंगल संरक्षण के लिए किए गए कार्यों की सराहना की।
उन्होंने बताया कि पारंपरिक चालखाल तरीके में पानी के लिए गड्ढा खोदा जाता है। मोदी ने कहा कि चालखाल तरीके का इस्तेमाल करते हुए नवीनतम तकनीक को भी जोड़ा गया, जिससे पानी के संकट से निजात मिल पाई। पीएम मोदी ने कहा कि भारती जी ने गांव में छोटे-बड़े तालाब बनवाए जिससे न सिर्फ ग्रामीणों की पेयजल की समस्या दूर हुई बल्कि क्षेत्र में हरियाली भी पुन: लौट आई। मोदी ने भारती जी की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि भारती जी ने जल संरक्षण और पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए अब तक 30 हजार जल तलईया बनवाई हैं। “ यहीं नहीं, भारती जी का यह भगीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा भी दे रहे हैं ताकि आसपास के गांवों में भी पेयजल संकट दूर किया जा सके। ”
उत्तराखंड में जल और जंगल के संरक्षण के लिए काम कर रहे पर्यावरणविद् सच्चिदानंद भारती का कहना है कि जल, जंगल और जमीन के साथ प्रकृति हमारे जीवन का आधार है। केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि समस्त जीव सृष्टि इस पर निर्भर है। सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिसमें हम जीवन श्रृखंला कहते हैं। यदि इसमें एक भी कड़ी टूटती है तो समूचा जीवन प्रबंध बुरी तरह प्रभावित होता है। हम सभी लोग प्रकृति के ही अंग हैं। इसलिए हमारी प्रकृति के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। हमें अपनी जीवन पद्धति को प्रकृति के अनुरूप ढालना ही होगा।
बता दें कि बीरोंखाल ब्लाक (जिला पौड़ी गढ़वाल) के गाडखर्क गांव के मूल निवासी सच्चिदानंद भारती पिछले चार दशक से पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। उनका पाणी राखो आंदोलन विश्व प्रसिद्ध है। पिछले कई सालों से कोटद्वार के भाबर स्थित घमंडपुर गांव में निवास कर रहे सच्चिदानंद भारती इंटर कालेज उफ्रैंखाल से सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, जिनकी पर्यावरण के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हैं। भारती का कहना है कि पानी का बाजारीकरण भविष्य का बड़ा संकट है। पानी पर सबका समान अधिकार रहे, इसके लिए आंदोलन की जरूरत है। सच्चिदानंद भारती ने वर्ष 1989 में बीरोंखाल के उफ्रैंखाल में इस काम को शुरू किया। इसके तहत उन्होंने छोटे-छोटे चाल खाल बनाए। जिनमें बरसात के पानी का संरक्षण किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में जल संरक्षण के लिए किए गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि- ”हमारे देश में अब मानसून का सीजन भी आ गया है। बादल जब बरसते हैं तो केवल हमारे लिए ही नहीं बरसते, बल्कि बादल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बरसते हैं। बारिश का पानी जमीन में जाकर इकठ्ठा भी होता है, जमीन के जलस्तर को भी सुधारता है। और इसलिए मैं जल संरक्षण को देश सेवा का ही एक रूप मानता हूँ। आपने भी देखा होगा, हम में से कई लोग इस पुण्य को अपनी ज़िम्मेदारी मानकर लगे रहे हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सच्चिदानंद भारती जी। भारती जी एक शिक्षक हैं और उन्होंने अपने कार्यों से भी लोगों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है। आज उनकी मेहनत से ही पौड़ी गढ़वाल के उफरैंखाल क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट समाप्त हो गया है। जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वहाँ आज साल-भर जल की आपूर्ति हो रही है।
साथियों, पहाड़ों में जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीक़ा रहा है जिसे ‘चालखाल’ भी कहा जाता है , यानि पानी जमा करने के लिए बड़ा सा गड्ढा खोदना। इस परंपरा में भारती जी ने कुछ नए तौर –तरीकों को भी जोड़ दिया। उन्होंने लगातार छोटे-बड़े तालाब बनवाये। इससे न सिर्फ उफरैंखाल की पहाड़ी हरी-भरी हुई, बल्कि लोगों की पेयजल की दिक्कत भी दूर हो गई। आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि भारती जी ऐसी 30 हजार से अधिक जल-तलैया बनवा चुके हैं। 30 हजार ! उनका ये भागीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।
साथियों, इसी तरह यूपी के बाँदा ज़िले में अन्धाव गाँव के लोगों ने भी एक अलग ही तरह का प्रयास किया है। उन्होंने अपने अभियान को बड़ा ही दिलचस्प नाम दिया है – ‘खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में’। इस अभियान के तहत गाँव के कई सौ बीघे खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़ बनाई गई है। इससे बारिश का पानी खेत में इकठ्ठा होने लगा, और जमीन में जाने लगा। अब ये सब लोग खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने की भी योजना बना रहे हैं। यानि अब किसानों को पानी, पेड़ और पैसा, तीनों मिलेगा। अपने अच्छे कार्यों से, पहचान तो उनके गाँव की दूर-दूर तक वैसे भी हो रही है। साथियों, इन सभी से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आस-पास जिस भी तरह से पानी बचा सकते हैं, हमें बचाना चाहिए। मानसून के इस महत्वपूर्ण समय को हमें गंवाना नहीं है।
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे शास्त्रों में कहा गया है –“नास्ति मूलम् अनौषधम्”।अर्थात, पृथ्वी पर ऐसी कोई वनस्पति ही नहीं है जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण न हो! हमारे आस-पास ऐसे कितने ही पेड़ पौधे होते हैं जिनमें अद्भुत गुण होते हैं, लेकिन कई बार हमें उनके बारे में पता ही नहीं होता! मुझे नैनीताल से एक साथी, भाई परितोष ने इसी विषय पर एक पत्र भी भेजा है। उन्होंने लिखा है कि, उन्हें गिलोय और दूसरी कई वनस्पतियों के इतने चमत्कारी मेडिकल गुणों के बारे में कोरोना आने के बाद ही पता चला ! परितोष ने मुझे आग्रह भी किया है कि, मैं ‘मन की बात’ के सभी श्रोताओं से कहूँ कि आप अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में जानिए, और दूसरों को भी बताइये।”