✍️ कमल किशोर डुकलान


नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जो कि आजाद हिंद फौज के संस्थापक होने के साथ भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाने वाले प्रमुख लोगों में थे। नेताजी जी की अदम्य भावना और राष्ट्र के प्रति निःस्वार्थ सेवा, सम्मान की याद में भारत की भावी पीढ़ी विशेष रूप से युवाओं को प्रेरित करने के लिए प्रतिवर्ष उनका जन्मदिन 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रुप में मनाया जाता है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों में नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने देशवासियों में देशभक्ति की भावना जगाकर आजाद हिंद फौज तैयार कर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था। लेकिन हम इस फौज के बारे में कितना जानते हैं ? आखिर नेताजी द्वारा तैयार की गई ये फौज कैसी थी ? आखिर ये फौज कितनी ताकतवर थी ? उनकी 127वीं जन्म जयंती के अवसर पर आजाद हिंद फौज के बारे में अनेक खास बातें हैं, जिन्हें हमें समझना आवश्यक है।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस एक क्रांतिकारी नेता थे और वो किसी भी कीमत पर अंग्रेजों से किसी भी तरह का कोई समझौते के पक्ष में नहीं थे। उनका एक मात्र लक्ष्य था कि भारत को अंग्रेजों से कैसे आजाद कराया जाए। शुरुआत में नेताजी महात्मा गांधी के साथ देश को आजाद कराने की मुहिम से जुड़े रहे, लेकिन बाद में उन्होंने अलग होकर वर्ष 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। सुभाष चंद्र बोस ने भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल किए जाने का विरोध किया, तो अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया। जहां नेताजी भूख हड़ताल पर बैठ गए। ऐसे में अंग्रेंजों ने उन्हें जेल से रिहा तो कर दिया, लेकिन उनके ही घर में उन्हें नजरबंद कर दिया।
इसी बीच नेता जी सुभाष चंद्र बोस जर्मनी भाग गए और वहां जाकर युद्ध मोर्चा देखा और युद्ध लड़ने की ट्रेनिंग भी ली। यहीं नेताजी ने सेना का गठन भी किया। जब वो जापान में थे, तो उन्हें आजाद हिंद फौज के संस्थापक रासबिहारी बोस ने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को आमंत्रित किया और 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर के ‘कैथे भवन’ में आजाद हिंद फौज की कमान सौंपी। इसके बाद नेताजी ने इस फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई, जिसे कोरिया, चीन, जर्मनी, जापान, इटली, आयरलैंड समेत नौ देशों ने आजाद हिंद फौज को मान्यता भी दी।
सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को काफी शक्तिशाली बनाया और आधुनिक रूप से फौज को तैयार करने के लिए जन, धन और उपकरण जुटाए। यहां तक कि नेताजी ने राष्ट्रीय आजाद बैंक और स्वाधीन भारत के लिए अपनी मुद्रा के निर्माण के आदेश दिए। महिलाओं के बारे में अच्छी सोच रखते हुए सुभाष चंद्र बोस ने अपनी फौज में महिला रेजिमेंट का भी गठन किया था, जिसे रानी झांसी रेजिमेंट का नाम दिया गया। इसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपी गई। सुभाष चंद्र बोस ने ‘फॉरवर्ड’ नाम से पत्रिका के साथ ही आजाद हिंद रेडियो की भी स्थापना की। इसके माध्यम से वो लोगों को आजाद होने के प्रति जागरूक करते थे। वैसे तो कोहिमा और इंफाल के मोर्चे पर कई बार इस भारतीय ब्रिटेश सेना को आजाद हिंद फौज ने अनेकों बार युद्ध में हराया। लेकिन जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बेहद करीब था, तो 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिरा दिये। इसमें दो लाख से भी ज्यादा लोग मरे थे। इसके तुरंत बाद जापान ने युद्ध में आत्मसमर्पण किया।
जापान के आत्मसमर्पण के साथ बेहद कठिन परिस्थितियों में आजाद हिंद फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर इन सैनिकों पर लाल किले में मुकदमा भी चलाया गया। मुकदमा चलने की वजह से लोग अंग्रेजों पर भड़क उठे और जिस भारतीय सेना के दम पर अंग्रेज हमारी मातृभूमि पर राज कर रहे थे, वो ही सेना विद्रोह पर उतर आई। इन सौनिकों के विद्रोह ने अंग्रेजों को इस देश से जाने को लेकर आखिरी मजबूत काम किया। इसके बाद अंग्रेज समझ गए कि अब उन्हें भारत छोड़कर जाना ही पड़ेगा, उन्होंने आजादी के लिए बनी इण्डियन नेशनल कांग्रेस को सत्ता हस्तांतरण कर भारत छोड़ने की घोषणा कर दी। सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता के लिए किया गया संघर्ष भारत ही नहीं,बल्कि तीसरी दुनिया के तमाम देशों के लिए प्रेरक साबित हुआ।उनको वैश्विक स्तर पर ‘आजादी का नायक’ स्थापित किया गया। सम्पूर्ण देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती के अवसर पर महान राष्ट्र के लिए उनके अतुल्य योगदान को याद करने के लिए पिछले वर्ष से भारत सरकार ने उनके जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रुप में मनाने का स्वागत योग्य निर्णय किया है, ताकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका सम्मान किया जा सकें।