कमल किशोर डुकलान

मानवीय भूलों के कारण बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और जल संचय के अभाव में जिस तरह हमें प्रकृति में दुष्परिणाम दिखने को मिल रहे हैं, उससे आने वाले समय में देश की एक चौथाई आबादी उन देशों की रहेगी जहां पानी की गम्भीर और बार-बार कमी रहेगी इसके लिए आम जन को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी….

पृथ्वी पर लगातार बढ़ते प्रदूषण और जल संचय के अभाव के कारण आज धरती पर जल संकट पैदा हो गया है। प्रकृति के साथ मानवीय भूलों के गंभीर दुष्परिणाम हमें धीरे-धीरे देखने को मिल रहे हैं। हर वर्ष लाखों लोग,अधिकांश बच्चे,अपर्याप्त जल आपूर्ति और स्वच्छता की कमी से उत्पन्न होने वाली बीमारियों से मरते हैं। शायद 2050 तक दुनिया की एक-चौथाई आबादी संभवतःउन देशों में रहेगी,जहां पानी की गंभीर और बार-बार कमी रहेगी। 1990 से शुद्ध पेयजल सुलभ हुआ है, लेकिन अब भी आंधी से अधिक आबादी स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं।
2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 75 प्रतिशत घरों को अब तक पाइपलाइन से नहीं जोड़ा गया है। यही नहीं,जल गुणवत्ता में भारत की रैंकिंग 122 देशों में 120वीं है, जो भारत में जल प्रबंधन की समस्या को प्रदर्शित करता है। भारत में विश्व का चार फीसदी ही पेयजल है। भारत कृषि प्रधान देश है, जहां सिर्फ कृषि में ही 80 प्रतिशत जल का उपयोग होता है। आवश्यकता है कि जल का प्रबंधन कैसे किया जाए,जिससे कि कम जल में ज्यादा का उत्पादन हो सके। इसके लिए तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। लगातार बढ़ती आबादी, तीव्र औद्योगिकीकरण और अनियोजित शहरीकरण में लगातार हो रही वृद्धि से जल प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। अगर हम नदियों,तालाबों आदि को प्रदूषित करते रहे, तो वह दिन दूर नहीं,जब नदियों का पानी बिल्कुल भी उपयोग के लिए लायक नहीं होगा। नदियों में प्रदूषण रोकने के लिए सरकार ने कुछ प्रयास भी किए,जिसका कोई विशेष असर नहीं दिख रहा है।विभिन्न प्रयासों के बाद भी गंगा में गंदगी जस की तस है। स्वच्छता के प्रयासों का असफल होने का एक कारण यह भी था कि सरकार वहां ध्यान नहीं दे पाई, जो प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। नदियां सबसे ज्यादा प्रदूषित उद्योगों से निकलने वाले कचरे से हो रही हैं।इस पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए हम जर्मनी की राइन नदी से सीख सकते हैं।
नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य में 2030 तक,सबके लिए सुरक्षित और किफायती पेयजल सर्वत्र और समान रूप से सुलभ कराने का लक्ष्य रखा गया है। कोरोना काल में इस लक्ष्य को प्राप्त करना बड़ी चुनौती है। सुरक्षित स्वच्छता और सुरक्षित भविष्य के लिए सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने अनेक सुझाव दिए हैं।
भारत जैसे बड़े देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जल प्रबंधन करना अति आवश्यक है। जिस देश में 80 प्रतिशत जल का उपयोग कृषि कार्यों में हो जाता है, वहां हमें कृषि में जल प्रबंधन के बारे में अविलंब कदम उठाने की जरूरत है। पानी की असली कीमत तो वही आदमी बता सकता है, जो रेगिस्तान की तपती धूप से निकल कर आया हो। इसलिए जल संरक्षण के महत्व को सभी व्यक्तियों को समझना होगा और अपनी जिम्मेदारियां निभानी होगी।