उत्तराखण्ड की आवाज के मुख्य संयोजक एवं आन्दोलनकारी नेता श्री रविन्द्र जुगरान
संयुक्त पत्रकार वार्ता में आन्दोलनकारियों ने बताया संगठन के गठन का कारण
देहरादून। उत्तराखण्ड की आवाज संगठन राज्य के गठन की परिकल्पना एवं आमजन की समस्याओं को लेकर समान विचारधारा के संगठनों एवं व्यक्तियों को एक मंच पर लगकर राज्य के विकास के लिए निरन्तर प्रखरता, मुख्यरता व निडरता से संघर्ष करता रहेगा। यह बात उत्तराखण्ड की आवाज के मुख्य संयोजक एवं आन्दोलनकारी नेता श्री रविन्द्र जुगरान ने पत्रकार वार्ता में कहीं। उन्होंने उत्तराखण्ड की आवाज संगठन का गठन करने की आवश्यकता एवं लक्ष्य के बारे में बताते हुए कहा कि राज्य गठन उपरान्त जनता की आशाओं-आकांक्षाओं व गठन की मूल अवधारणा समाप्त हुई है व पर्वतीय राज्य की परिकल्पना विगत 20 वर्षों में धरातल से गायब हो गयी है। उत्तराखण्ड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास, नियोजन, नीति निर्धारण के साथ-साथ राज्य के विकास की कोई दूरगामी योजना सरकारों ने नहीं बनायी है। श्री जुगरान ने कहा कि आज राज्य में आबकारी एवं खनन ही आय का मुख्य स्रोत हो गया है और सभी सरकारों की इन पर निर्भरता रही है। राज्य में सरकारी नौकरी ही एक मात्र रोजगार का जरिया है और सरकारी नौकरियों में भी पिछले दरवाजे से नियुक्तियों एवं भाई-भतीजावाद व भ्रष्टाचार चरम पर है। राज्य में पारम्परिक स्वरोजगार के साधनों की घोर उपेक्षा के कारण हाशिये पर चले गये हैं। राज्य के पर्वतीय एवं मैदानी जनपदों के सापेक्ष बजट आवंटन में असंतुलन एवं विसंगतियां है, जिसके कारण सुनियोजित विकास की परिकल्पना छूमिल हो रही है। उन्होंने कहा कि राज्य की परिसम्पतियों का मामला भी अभी नहीं सुलझ पाया है और एशिया की सबसे बड़ी विद्युत परियोजना टिहरी में भी राज्य की हिस्सेदारी का निर्धारण नहीं किया गया है, जिससे राज्य को आर्थिक नुकसान हो रहा है। प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है, पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए अभी भी पलायन करना पड़ रहा है। प्रदेश के महानगरों एवं कस्बों में मास्टर प्लान न होने के कारण अनियोजित विकास हो रहा है, जिसके दूरगामी परिणाम भंयकर होंगे। पत्रकार वार्ता में बोलते हुए श्री जुगरान ने हिमाचल की भांति उत्तराखण्ड में भी सशक्त भू-कानून लाने एवं चकबन्दी की परैवी की। उन्होंने कहा कि सरकारों की अव्यवहारिक एवं गलत नीतियों के कारण पर्वतीय क्षेत्रों से भारी पलायन होने के कारण तराई एवं मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव बढ़ गया है, जिसके कारण विधानसभाओं के परिसीमन में पर्वतीय विधानसभाओं की संख्या कम हो रही है। संयुक्त पत्रकार वार्ता में आन्दोलनकारियों ने कहा कि जिस अवधारणा को लेकर राज्य आन्दोलन की लड़ाई लड़ी गयी, वह आज सिस्टम की कार्यशैली एवं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी है। नतीजन राज्य निर्माण के ऐतिहासिक संघर्ष एवं शहादतों के उपरान्त राज्य की जनता ठगा सा महसूस कर रही है। वक्ताओं ने कहा कि राज्य के विकास के लिए जनता को जागरूक करते हुए राज्य के हित का हर मुद्दा प्रमुखता और प्रखरता से उठाया जायेगा। इस अवसर पर विजय प्रताप मल्ल, अजय शर्मा, जगमोहन सिंह नेगी, जितेन्द्र नेगी, रघुवीर सिंह बिष्ट, दर्शन डोभाल, प्रदीप कुकरेती एवं ओमी उनियाल आदि उपस्थित रहे।