भारतीय नीति निर्माताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि चीन अपनी आदत से बाज नहीं आता तो भारत के पास चीन विरुद्ध कार्रवाई के सभी विकल्प खुले हुए हैं…..


पिछले 29 एवं 30 अगस्त की रात को भारतीय और चीनी सेना में जिस प्रकार से एक बार फिर मुठभेड़ हो गई। इससे तो यहीं पता चलता है कि भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं। भारतीय सेना पीएलए के मंसूबों को ध्वस्त करते हुए भारतीय सेना उन ऊंची चोटियों पर काबिज हो गई, जहां से उसे बढ़त मिल सके। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बीजिंग के समक्ष स्पष्ट कर दिया है कि भारत अपने रणनीतिक लाभ की स्थिति को छोड़ने वाला नहीं है।

अंदेशा है कि भारी-भरकम सैन्य जमावड़े वाली सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच समय-समय पर झड़पें होती रहेंगी। इसका पता गत दिवस की उस झड़प से लगता भी है जिसमें चीनी सेना ने गोली चलाई। आगे भी एलएसी पर हालात तनावपूर्ण ही बने रहने के आसार हैं। चीन सीमा पर होने वाले संभावित टकराव भारत-पाक के बीच एलओसी पर अक्सर होने वाली तनातनी का स्मरण भी करवायेंगे। कुल मिलाकर अब यही नई परिपाटी बनती दिख रही है। इस साल अप्रैल-मई में जबसे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है तबसे हालिया टकराव के बीच एक ब्रिगेड स्तरीय फ्लैग मीटिंग की बात सामने आई है। हालांकि इसके नतीजे को लेकर अनिश्चितता और अस्थिरता का भाव ही अधिक है। वैसे भी दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच कई दौर की वार्ता के बावजूद इस संकट के दूर होने की कोई उम्मीद नहीं दिखती है।
भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की चीनी रक्षामंत्री की मनुहार के समकक्ष दो-टूक लहजे में ये कहना कि भारत की प्राथमिकता वार्ता के जरिये मसलों को सुलझाने की है, लेकिन भारत सरकार राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए भी पूरी तरह प्रतिबद्ध भी है।

ऐसी आशंकाएं बढ़ रही हैं कि एलएसी पर हल्की-फुल्की मुठभेड़, गोलीबारी और घात लगाकर किए जाने वाले हमलों में इजाफा होगा,जैसा कि हम कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच देखते आए हैं। ऐसे में पीएलए के किसी भी मंसूबे को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना को उसी हिसाब से पर्याप्त तैयारी करनी होगी। इन कदमों के अतिरिक्त रक्षा प्रतिष्ठान को सीमा के आसपास पर्याप्त सुरक्षा बलों की तैनाती पर भी ध्यान देना होगा।

चीन ने पिछले दिनों लद्दाख सीमा पर सैन्य जमावड़ा बढ़ाकर अपनी स्थिति पर मजबूती का संकेत दिया है। इसी कड़ी में चीन ने तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में जिन सैन्य साजोसामान की खेप बढ़ाई है उनमें हैवी आर्टिलरी गन, हैवी मशीन गन और एयरक्राफ्ट आदि शामिल हैं। पिछले दिनों के टकराव ने चीन अपने धमकाने वाले अंदाज में कैलास-मानसरोवर क्षेत्र में भी जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें तैनात की हैं। इस मिसाइल बेस पर 2,200 किमी तक मारक क्षमता वाली डीएफ-21 बैलिस्टिक मिसाइल भी मौजूद हैं। यह ब्रह्मपुत्र, सतलज, सिंधु और करनाली जैसी उन नदियों के मुहाने पर है जो देशों की सीमाओं से दूसरी ओर बहती हैं। इनमें से करनाली तो गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है। यह निश्चित रूप से भारत के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि डीएफ-21 भारत के भीतरी शहरों को भी निशाना बना सकती है। यह मिसाइल किसी भी पारंपरिक हमले की स्थिति में एक अहम कवच मुहैया कराती है। ऐसे में भारत को जवाबी कार्रवाई के लिए प्रतिरोधक क्षमताओं के साथ अपने सामरिक जमावड़े को भी बढ़ाना होगा।

भारत को अपनी रक्षात्मक रणनीति के साथ सीमा टकराव की जुड़ी कमियों को दूर करते हुए जवाबी हमले की सटीक रणनीति भी बनानी होगी। 2013 से ही भारतीय सैन्य बलों ने एलएसी पर जमावड़ा बढ़ाकर सीमित आक्रामक नीति अपनाई है। अब भारत को लंबी अवधि के संघर्ष के लिए स्वयं को तैयार करना होगा। इसमें स्थानीय स्तर पर लचीलापन अहम भूमिका निभाएगा। मिसाल के तौर पर भारतीय सेना और वायु सेना को नागरिक हवाई अड्डों का भी प्रभावी उपयोग करना चाहिए। हमले के बाद उससे उबरने की अचूक रणनीति तैयार करना निर्णायक होगा। भारत को अपनी हवाई क्षमताओं को इस प्रकार विस्तार देना होगा कि जिन स्थानों को निशाना बनाने की अधिक आशंका हो, उन्हें जल्द से जल्द दोबारा तैयार किया जा सके।
अब इसकी आशंका अधिक है कि चीन भारतीय जमीन पर अपनी नीयत और खराब करता रहेगा। अतिक्रमण उसे सबसे असरदार विकल्प लगेगा जैसा कि लद्दाख में उसने किया भी। भारतीय सेना भी हरसंभव तरीके से ऐसी कोशिशों का प्रतिकार करती रहेगी। ऐसे में चीनी सैन्य सनक से निपटने के लिए भारत को कुछ अलहदा विकल्प भी तलाशने होंगे। यदि एलएसी के हालात भी एलओसी जैसे बन जाएंगे तो बहस परमाणु शस्त्रों की ओर भी बढ़ जाएगी। अलहदा रणनीति में आक्रामकता का भाव शामिल करना ही होगा।

भारत को अड़ियल चीन और उसकी सेना को यही संकेत देने होंगे कि तनाव बढ़ने से उसे फर्क नहीं पड़ने वाला। यह न तो भारत के लिए आसान विकल्प है और न ही ऐसा कि उसे इसकी कोई कीमत न चुकानी पड़े, परंतु दशकों से चीन की पारंपरिक चुनौती के आगे अपनी अपेक्षित क्षमताओं को न बढ़ाने के चलते भारत के समक्ष विकल्प सिकुड़ते जा रहे हैं।
जब भारत एलएसी पर नए दस्तूर का सामना कर रहा है तो उस स्थिति में वह पुराने रणनीतिक ढांचे पर भरोसा नहीं कर सकता। यह अच्छा है कि भारतीय नीति निर्माताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि चीन अपनी आदत से बाज नहीं आता तो उनके पास सभी विकल्प खुले हुए हैं। उन्हें बीजिंग के समक्ष यह भी स्पष्ट करना होगा कि वे किसी भी विकल्प पर आगे बढ़ने को तैयार हैं। यह संतुलन साधने की नाजुक कवायद भले हो, लेकिन आवश्यक अवश्य है। खासतौर से अगर भारत उस बहस से बाहर निकलना चाहता है कि उसके पास चीन के खिलाफ कोई सैन्य विकल्प नहीं है अथवा विकल्पों की तो भरमार है, लेकिन उनमें किसी का रहस्य प्रकट नहीं किया है।

कमल किशोर डुकलान
ब्रह्मपुर रुड़की (हरिद्वार)