देहरादून। उत्तराखंड में गंगा की निर्मलता और स्वच्छता एक सपना ही रह सकती है और यह आशंका इसलिए पैदा हुई है, क्योंकि गंगा साफ रहे और उसमें गंदगी न गिरे इसके लिए बनने वाले एसटीपी अभी आधे ही बने हैं।. इसका अर्थ यह है कि करीब आधी जगह मैला और गंगा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। जो बन गए हैं उनकी हालत पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये ठीक से काम कर पा रहे हैं या नहीं। गंगा को निर्मल और स्वच्छ बनाने के लिए नमामि गंगे परियोजना शुरू की गई। मकसद था कि गंगा में गिराने वाले नालों और सीवेज का ट्रीटमेंट किया जाए लेकिन शायद उत्तराखंड में यह नहीं हो पा रहा है। दरअसल नमामि गंगे परियोजना में उत्तरकाशी से हरिद्वार तक 21 एसटीपी यानि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण होना था लेकिन अभी तक सिर्फ 10 ही बन पाए हैं। इस प्रोजेक्ट की डेडलाइन दिसंबर 2019 तक ही है। राज्य कार्यक्रम प्रबंधन ग्रुप नमामि गंगे के कार्यक्रम निदेशक उदयराज सिंह दावा करते हैं कि अगले साल जुलाई तक सभी एसटीपी बनकर तैयार हो जाएंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि इस डेडलाइन में तो गंगा में सीवेज का गिरना बंद नहीं होने वाला। बहरहाल जो एसटीपी बने हैं उन पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में उत्तराखंड नमामि गंगे कमेटी के सदस्य अनिल गौतम कहते हैं कि इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि एसटीपी कितने प्रभावी हैं या सीवेज को कितना साफ कर पा रहे हैं। गौतम ने कहा कि समय पर काम भी नहीं किया जा रहा है और यह स्पष्ट है कि लक्ष्य गंगा की सफाई नहीं, इसके नाम पर आए पैसे को खर्च करना है। गंगा को साफ करने के लिए अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो गए हैं। गंगा तो साफ नहीं हुई है लेकिन इसके नाम पर सरकार की तिजोरी साफ जरूर हुई है।