विद्या भारती उत्तराखंड द्वारा कोविड 19 प्रतिबंधों में ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव और इसकी चुनौतियों पर वर्चुअल संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें वक्ताओं ने डिजिटल तकनीक पर आधारित शिक्षण का घातक परिणामों पर चिंता जताई। जहां डिजिटल तकनीक पर आधारित शिक्षण छात्रों के ज्ञानार्जन में एकांगी रूप लेता है। वहीं, परिवेशीय शिक्षण से छात्रों में बेहतर समझ विकसित होती है….

रुड़की (कमलकिशोर डुकलान)। विद्या भारती उत्तराखंड के तत्वावधान में ऑनलाइन वर्चुअल गोष्ठी में कोविड-19 के प्रतिबंधों ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव और इसकी चुनौतियों पर वर्चुअल गोष्ठी में वक्ताओं ने पिछले कोरोना काल से छात्रों में बिना परिवेशीय शिक्षण के बिना ऑनलाइन शिक्षण में आ रहे परिवर्तनों को रेखांकित किया तथा ऑनलाइन शिक्षण की नई तकनीकियों की आवश्यकताओं को महसूस किया।

वर्चुअल बैठक में प्रस्तावना रखते हुए आनन्द स्वरूप आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल दिल्ली रोड़ रुड़की के प्रधानाचार्य श्री अमरदीप सिंह ने कहा कि पिछले कोरोना प्रतिबंधों के बाद जैसे ही विद्यालयी शिक्षण में आनलाइन शुरू कराने का फैसला हुआ ऐसे समय में छात्रों की मुश्किलें बढ़ना स्वाभाविक था। इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यावहारिक मुश्किलों और तकनीकी संसाधनों के अभाव में आॅनलाइन शिक्षण की सुविधाएं सर्वसुलभ नहीं हैं और इसी वजह से छात्रों और शिक्षकों को इसमें तात्कालिक तौर पर दिक्कतों का सामना करना पड़ा। ऐसे समय में छात्र-शिक्षकों के सामने बदलती दुनिया में तकनीक के साथ चलने की एक चुनौती थी जिसे काफी हद तक दूर करने का प्रयास हुआ।

भारतीय शिक्षा समिति गढ़वाल के निरीक्षक एवं ई सर्वेक्षण के संयोजक श्री नत्थीलाल बंगवाल ने कहां कि पिछले एक वर्ष से अध्ययनरत छात्रों में कोविड-19 प्रतिबंधों से आनलाइन शिक्षण के प्रभाव और उसकी चुनौतियों पर विद्या भारती उत्तराखंड द्वारा ई.संवाद आनलाइन, आफलाइन दोनों प्रकार का उत्तराखंड के सभी सरकारी, गैस सरकारी, अशासकीय, निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों में कोविड-19 प्रतिबंधों में आते परिवर्तनों का राज्य भर के छात्रों का ई.सर्वेक्षण किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि विद्या भारती उत्तराखंड का इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि पिछले एक साल से घरों में छात्र-अभिभावक आनलाइन शिक्षण से सम्बन्धित उपलब्ध संसाधनों की उपलब्धता के बारे में कितना जानते हैं। शिक्षण संस्थानों के पास तो फिर संसाधन हो सकते हैं, भले सीमित हों,लेकिन छात्रों का बड़ा वर्ग ऐसा है जिसके पास आॅनलाइन शिक्षा के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं। यही वह प्रमुख बिंदु है जो आॅनलाइन शिक्षण को लेकर सबको चिंतित कर रहा है। इसी परिपेक्ष्य में विद्या भारती पृथ्वी कुल के द्वारा राज्य के सभी 95 विकास खण्डों के लिए ई.सर्वेक्षण प्रपत्र तैयार किया जा रहा है जिसमें सभी सर्वे में लगने वाले सम्बन्धित शिक्षकों द्वारा सर्वे कर जल्द ही तैयार किया जायेगा इसकी जानकारी पृथ्थीकुल के निर्देशक श्री अभिषेक वर्मा द्वारा बैठक में वर्चुअल जानकारी दी गई।

वर्चुवल संगोष्ठी के पालक अधिकारी एवं शिशु शिक्षा समिति उत्तराखंड के मंत्री डा. अनिल शर्मा जी ने कहां कि लम्बे समय से कोविड संक्रमण बचाव में जहां आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियां बंद होने से अपने घरों में बंद छात्रों के पास किताबों सहित दूसरी अध्ययन सामग्री नहीं हैं। ऐसे में छात्रों के सामने सवाल है कि कैसे पढ़ाई करें। इन छात्रों की यह मुश्किल तकनीकी संसाधनों के अभाव की वजह से है। छात्रों का एक बड़ा हिस्सा सुदूरवर्ती ग्रामीण ऐसे क्षेत्रों से आता है जहां इंटरनेट की समस्या है। पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसे छात्रों की संख्या भी कम नहीं है जिनके पास लैपटॉप जैसी सुविधा नहीं है। स्मार्टफोन के सहारे पढ़ाई संभव नहीं है। इसी तरह निशक्तजन छात्रों की विशेष जरूरतों पर भी ध्यान देना होगा, जिनकी आॅनलाइन पढ़ाई के लिए वांछित तकनीक तक पहुंच नहीं है और जो शिक्षण संस्थानों में मुहैया कराए जाने वाले संसाधनों और सुविधाओं पर ही पूरी तरह से निर्भर हैं।

वर्चुअल बैठक में डा. अनिल शर्मा ने कहां कि छात्रों के अल्पकालिक और दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखने के लिए शिक्षकों और छात्रों की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम शिक्षण संस्थानों में आए संकट से बाहर निकलने के लिए ऐसे उपायों पर अमल करें जिनमें सभी के हितों का समावेश हो। बैठक में अनेक शासकीय, अर्द्ध शासकीय, सहायता प्राप्त, शिक्षक संघों, निजी विद्यालयों के प्रधानाचार्य,शिक्षक संघों के शिक्षक पदाधिकारी,अनेकों विद्यालयों के प्रबंध पदाधिकारी वर्चुअल गोष्ठी में डा. अनिल शर्मा ने सबका आभार जताया।