देहरादून।  उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार मानवीय दखल के कारण तथा विकास की दौड़ में पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है जहां पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से तप रही है, वह़ी हिमालय विश्व को ऑक्सीजन और पानी जैसे मूलभूत तत्व उपलब्ध करा रहा है।  लेकिन मानव द्वारा प्रकृति का लगातार दोहन तथा संवेदनशील परिस्थितिक तंत्र में अपनी दखल देने के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण तंत्र को काफी नुकसान हो रहा है जिसके चलते कई प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं तथा कई वन्यजीव भी अब  विलुप्त होने के कगार पर हैं। वृक्षों को काटे जाने, वनाग्नि और निर्माण कार्य के चलते चिंताजनक दर से विलुप्त हो रहे पादपों की दृष्टि से यह पहल महत्वपूर्ण है ।

पर्यावरण दिवस के अवसर पर उत्तराखंड वन विभाग की शोध शाखा द्वारा पिछले वर्ष से शुरू की गई परंपरा को इस वर्ष भी जारी रखा गया वन विभाग द्वारा उत्तराखंड में माली क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर पाई जाने वाली कई विलुप्त होती प्रजातियों की सूची जारी की है।

उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने विश्व पर्यावरण दिवस पर शुक्रवार को हिमालयी क्षेत्र में स्थानीय तौर पर पाई जाने वाली और आईयूसीएन की लाल सूची में शामिल ‘संकटग्रस्त’ प्रजातियों समेत राज्य में संरक्षित की गई 1576 पादप प्रजातियों की एक सूची जारी की।

मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि वार्षिक तौर पर संरक्षित पादप प्रजातियों की सूची जारी करने की परंपरा शुरू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला प्रदेश है। प्रदेश में लगातार दूसरे साल ऐसी सूची जारी की गई है।

उन्होंने बताया कि हर संरक्षित प्रजाति पर विस्तृत सूचना वाली एक वृहद 268 पृष्ठों की रिपोर्ट में शामिल इस सूची में पूरे पादप जगत में पाई जाने वाली विविधता जैसे पेड़, झाड़ी, शाक सब्जी, घास, आर्किड, बांस, मॉस, लाइकेन, शैवाल, कवक और जलीय प्रजातियों को सम्मिलित किया गया है।

 पिछले साल उत्तराखंड में संरक्षित पादप प्रजातियों की संख्या 1147 थी जो इस साल बढ़कर 1576 हो गई । इनमें 73 पादप प्रजातियां संकटग्रस्त हैं जिन्हें उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने संकटग्रस्त घोषित किया है या वे आइयूसीएन की लाल सूची में शामिल हैं।

उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में स्थानीय तौर पर पाई जाने वाली तुमरी, डिप्लोमेरिस हिरसुता या स्नो आर्किड, बटरफ्लाई आर्किड, मीठा विष आदि को भी इस सूची में जगह दी गयी है।

सूची में शामिल 53 प्रजातियां उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र की स्थानीय हैं जबकि संरक्षित किए गये करीब 500 पादप औषधीय गुणों से भरपूर हैं।