डॉ. प्रभात ओझा

हम-आप व्यक्तिगत तौर पर भले भूल गये हों, पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए बात पुरानी नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान हाल में ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिलकर स्वदेश लौटे थे। तब उन्होंने कहा था कि ऐसा लग रहा कि एक बार फिर वर्ल्ड कप जीतकर आया हूं। बताना जरूरी है कि इमरान खान क्रिकेटर रहे हैं और उनकी कप्तानी में एक बार वर्ल्ड कप पाकिस्तान के हाथ भी लग गया था। बहरहाल, देश तो खेल की भावना से चलता नहीं। दुनियाभर में बहुत कुछ होता रहता है। देश में आतंकी कैंप पालने की वजह से पाकिस्तान पहले से ही बदनाम देशों की सूची में है। इससे दुनिया का ध्यान हटाने के लिए उसने जम्मू-कश्मीर पर पहले से भी ज्यादा राग अलापना शुरू कर दिया है। इमरान खान भले दिवास्वप्न देख रहे थे, राष्ट्रपति ट्रम्प से मिलकर आने पर वर्ल्ड कप जीतने जैसी खुशी उन्हें इसी मसले पर मिलती हुई लग रही थी। हुआ यह कि इमरान के साथ ट्रम्प ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में यह कह दिया था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनसे जम्मू-कश्मीर पर मध्यस्थता की इच्छा जताई है। बहरहाल, इमरान खान की खुशी अधिक दिन नहीं रह सकी। उनके स्वदेश आने के नौवें दिन ही भारत की हमारी संसद ने एक प्रस्ताव के जरिए जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता वाले अनुच्छेद को ही निष्प्रभावी कर दिया। इमरान खान की खुशी किस तरह काफूर हुई है, करीब एक महीने बाद यह भारत को उनकी ओर से परमाणु युद्ध तक की धमकी में देखा जा सकता है। बड़ी बात तो यह हुई है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अब अपने ही देश में न सिर्फ हल्के हो गये हैं, उनकी कूटनीतिक क्षमता पर सवाल खड़ा किया जाने लगा है।
पाकिस्तान के लिए भारत में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों ही निहितार्थ हैं। देश में इसे आजादी के बाद इस राज्य के विकास के लिए सीधे दिल्ली की चिंता के रूप में देखा जा रहा है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा भी है कि लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में से समय आने पर जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा। दूसरी ओर, दुनिया के देशों के लिए संदेश यह है कि हम सिर्फ कहने के लिए जम्मू-कश्मीर का भारत में अंतिम रूप से विलय की बात नहीं दोहराते।
इमरान खान तो इस राज्य पर अमेरिकी राष्ट्रपति की मध्यस्थता का सपना बुन रहे थे। इधर भारत ने न केवल अपनी संसद, वरन दुनिया के मंच पर भी साफ कर दिया कि जम्मू-कश्मीर सहित किसी भी मसले पर किसी भी देश को पड़ने की जरूरत नहीं है। फ्रांस में जी-7 देशों की बैठक के समय अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात में पीएम मोदी ने पहले हुई राष्ट्रपति ट्रम्प-इमरान वार्ता को निर्मूल ही कर दिया। इमरान खान से ट्रम्प की बातचीत का जिक्र किए बिना मोदी ने साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर के सवाल पर किसी को ‘कष्ट करने’ की जरूरत नहीं है। इस पर ट्रम्प ने भी हामी भरी कि भारत-पाकिस्तान इसे मिलकर सुलझाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर इतना ही नहीं हुआ है। पाकिस्तान जहां जम्मू.कश्मीर का सवाल हर मंच पर रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं उसे असफलता हाथ लग रही है। यहां तक कि मुस्लिम देशों के संगठन तक ने इसे भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला कहा है। फ्रांस के प्रेसिडेंट इमैनुएल मैक्रों की मोदी से मुलाकात में भी कहा गया कि यह मसला भारत और पाकिस्तान के बीच का ही है। इसके बाद तो प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त अरब अमीरात ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जायेद’ से भी सम्मानित किया है। इन हालात में इमरान खान और अधिक बौखला उठे हैं। अब वह ऐलान करते हैं, ‘दुनिया कश्मीर पर साथ दे या न दे’ पाकिस्तान इसके लिए आखिरी दम तक लड़ेगा।
पाकिस्तान हमारे देश से क्या लड़ेगा? उसके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी पीएम मोदी को मिले ‘ऑर्डर ऑफ जायेद’ पर कहते हैं कि ‘डिप्लोमेसी धर्म से अलग होती है।’ सच यह है कि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति वहां की सरकार को डिप्लोमेसी पर फेल मानने लगी है। अब अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ट्वीटर पर सवाल करते है, ‘ट्रम्प अब कह रहे हैं कि भारत-पाकिस्तान कश्मीर समस्या को आपस में सुलझा लेंगे तो क्या मध्यस्थता वाली बात यूं ही थी?’ वहां की प्रमुख विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने भी कहा है कि इमरान खान समझ नहीं पा रहे हैं कि अब कश्मीर पर क्या करें। बिलावल यहीं नहीं रुके। उन्होंने यहां तक कह दिया, ‘पाकिस्तान पहले श्रीनगर लेने की बात करता था। अब मुजफ्फराबाद बचाने की बात कर रहा है।’ भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित इस ओर इशारा करते हैं कि पाकिस्तान मुस्लिम देशों का भी समर्थन नहीं जुटा पाया। उधर, पाकिस्तान के रेल मंत्री मो. राशिद अक्टूबर-नवम्बर में भारत के साथ युद्ध की तिथि तय करने में लगे हैं। यह हताशा नहीं तो और क्या है?
पाकिस्तान के मीडिया का सुर भी इस समय तीखा हो चला है। प्रमुख अखबार ‘डॉन’ अपनी एक संपादकीय में लिखता है, ‘हमारे घनिष्ठ मुस्लिम देश भी मोदी के स्वागत में लगे हैं। मुस्लिम देश कश्मीर में भारत के एकतरफा फैसले के बाद भी ऐसा कर रहे हैं। ट्रम्प ने भी पहले कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही लेकिन अब वो भी मोदी के साथ हो गए।’ साफ दिखता है कि पाकितान का विपक्ष हो, मीडिया अथवा पूर्व राजनयिक, सभी अपने प्रधानमंत्री की मलामत में ही लगे हैं। अब खुदा ही ऐसे पीएम की खैर कर सकता है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार की पाक्षिक पत्रिका ‘यथावत’ के समन्वय संपादक हैं।)