कर्तव्य पथ पर अडिग समाजसेवी सुन्दर सिंह चौहान बन रहे बेसहारों का सहारा
देहरादून। एक मशहूर गीत ‘अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल जमाने के लिए’ समाजसेवी सुन्दर सिंह चौहान पर फिट बैठता है। कोरोना काल में जब पूरी मानवता संकट में थी, तब समाज से ही कई हाथ ऐसे भी थे जो जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे बढ़े। इन्हीं में से एक हैं उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के सतपुली के प्रसिद्ध व्यवसायी एवं समाजसेवी सुन्दर सिंह चौहान। वे कई शैक्षिक संस्थाओं के व्यवस्था तंत्र से जुड़े हुए है और सामाजिक कार्यों में अपनी सक्रिय भूमिका में रहे हैं। इन्होंने संकट के इस दौर में लोगों को भोजन पहुंचाने के साथ ही सैनिटाइजेशन के काम में भी सहयोग किया।
श्री चौहान ने समाजसेवा के कार्यों की शुरुआत अकेले ही की, लेकिन समय के साथ कारवां बढ़ता गया और उनकी सेवा का दायरा भी बढ़ता गया। सामाजिक कार्यों में सतत संलग्न श्री चौहान कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य में लोगों की मदद करने की भावना होना बहुत जरूरी है। वे न सिर्फ स्वयं लोगों की सेवा करते हैं बल्कि दूसरे लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। वह गरीब बच्चों को शिक्षा हासिल करने में भी मदद करते हैं।
पिछले लम्बे समय से कोरोना काल के प्रतिबंधों में उनके द्वारा जरुरतमंदों को पका भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और प्रवासी युवाओं को रोजगार की पहल की गयी है। विषम भौगोलिक युक्त सुदूरवर्ती पर्वतीय अंचल में राशन के किट उपलब्ध भी कराये जा रहा है। श्री चौहान निराश्रित कन्याओं के विवाह में भी सहयोग करते हैं और निर्धन बच्चों को शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करते है। बेसहारा लोगों को आश्रय रुपी आलय वृद्धाश्रम का निर्माण हो ऐसे अनेक सेवाकार्यों में अडिग, अग्रिणी समाजसेवी की भूमिका अदा की जा रही है।